Book Title: Kasaypahudam Part 05
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh

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Page 385
________________ जयधवला सहिदे कसायपाहुडे [ अणुभागविहत्ती ४ गणपमाणं लब्भदि तो दिवडुगुणहाणिमेत्तवग्गणविसेसेसु केत्तियं विदियवग्गणपमाणं लामो ति फलगुणिदिच्छाए पमाणेणोवट्टिदाए जं लद्धं तं दिवडूगुणहाणीए पक्खित्ते सादिरेयदिवडूगुणहाणिमेत्तो विदियणिसेगभागहारो होदि । अथवा दिवडूगुणहाणिमेत्तं पढमवग्गणाखेत्तं ठविय पुणो एगवग्गणविसेस विक्खंभ-दिवडूगुणहाणिआयाममेत्तफालिमवणिदे सेसखेत्तं दिवड्डायामं विदियवग्गणfarari होण चेदि । पुणो तं फालिं घेत्तू विदियवग्गणविक्वं भस्सुवरिं तिरिच्छेण पादिय उविदे दिवड्डायामपमाणं विदियवग्गणविक्खंभं ण पावदि । पुणो केत्तियमेत्तेण पावदित्ति भणिदे गुणहाणिअद्धरूवूणमेत्तवग्गणविसेसखेत्तं जदि होदि तो पावदि । पक्खेवरूवं पि एवं लब्भदि । ण च एत्तियखेत्तमत्थि तेण सादिरेयदिवडुगुणहाणिहाणंतरेण कालेन अवहिरिज्जदि ति सिद्धं । ३५६ १ आता है तो डेढ़ गुणहानिप्रमाण वर्गणाविशेषोंमें द्वितीय वर्गणाओंका कितना प्रमाण प्राप्त होता है ऐसा त्रैराशिक करने पर फलराशिसे गुणित इच्छाराशिको प्रमाण राशिका भाग देनेपर जो लब्ध आवे उसे डेढ़ गुणहानिमें मिला देनेपर कुछ अधिक डेढ़ गुणहानिप्रमाण द्वितीयवर्गाका भागद्दार होता है । अथवा डेढ़ गुणहानिप्रमाण प्रथम वर्गणा के क्षेत्रको स्थापित करके पुनः एक वर्गणाविशेषप्रमाण चौड़ी और डेढ़ गुणहानिप्रमाण लम्बी फालिको निकाल देनेपर शेष क्षेत्र डेढ़ गुणहानि लम्बा और द्वितीय वर्गण प्रमाण चौड़ा होकर स्थित रहता है । पुनः उस फालिको लेकर द्वितीय वर्गणाके विष्कम्भके ऊपर तिरछे रूपसे स्थापित करने पर वह डेढ़ गुणहानि लम्बा होकर द्वितीय वर्गणाके विष्कम्भको नहीं प्राप्त होता है । पुन: कितने मात्र से प्राप्त होता है ऐसा प्रश्र करने पर कहते हैं कि यदि वर्गणाविशेषका क्षेत्र एक कम अर्द्ध गुणहानिप्रमाण और होता तो प्राप्त होता और प्रक्षेपरूप भी एक प्राप्त होता किन्तु इतना क्षेत्र नहीं है अतः कुछ अधिक डेढ़ गुणहानि स्थानान्तर कालके द्वारा अपहार होता है यह सिद्ध हुआ । विशेषार्थ - प्रथम वर्गणा के प्रमाण से द्वितीय वर्गणाका प्रमाण एक वर्गणाविशेष हीन होता है, अतः द्वितीय वर्ग के कर्मप्रदेशों का प्रमाण ५१२ - ४ = ५०८ है । इससे सब वर्गणाओं के कर्मप्रदेशों का अपहार करने पर ४९१५२ ÷ ५०८ = ९६ कुछ अधिक डेढ गुणहानि प्रमाण अपहार - ३८४ ५०८ काल होता है। डेढ़ गुणाहानि ९६ का विरलन करके, सब द्रव्य ४९१५२ के समान खंड करके .९६ वार | प्रत्येकके ऊपर देने पर प्रथम वर्गरणा ५१२ आती है – ५१२ ५१२ ५१२ ५१२ १ १ १ १ निषेकभागाहार १२८ का विरलन करके प्रत्येकके ऊपर सम खंड करके प्रथम वर्गणा के देने पर १. ता० प्रा० प्रत्योः इत्यकारेणोपलभ्यते । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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