Book Title: Kasaypahudam Part 05
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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ग० २२ ] अणुभागविहत्तीए हाणपरूवणा
३५७ ५६६. तदियवग्गणपमाणेण अवहिरिज्जमाणे दोफालिमत्ता वग्गणविसेसा होति । ताओ दोफालीओ आयामेण संधिदे तिएिणगुणहाणिमेत्ता वग्गणविसेसा होंति ? पुणो ते तदियवग्गणपमाणेण अवहिरिजमाणे दुरूवूणवेगुणहाणिमेत्तवग्गणविसेसखेत्तं घेतूण पुव्ववेत्तस्सुवरिं ठविदे एगं भागहाररूवमहियं लब्भदि। पुणो
५०८
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एक एकके प्रति वर्गणाविशेषका प्रमाण आता है-४
४ ४ ४
..............१२८ बार ।
"९ १ १ १ १............... १२८ बार। इस वर्गणाविशेषको उपरिम विरलन पर स्थित डेढ़ गुणहानिप्रमाण प्रथम वर्गणाओंमें से घटा देने पर ( ५१२-४ ) ९६=५०८ x ९६ डेढ़ गुणहानि प्रमाण द्वितीय वर्गणाएँ होती हैं। घटाये गये वर्गणाविशेष भी डेढ़ गुणहानिप्रमाण होते हैं ५१२४९६-५०८४ ९६ =४४९६। यदि एक कम निषेकभागहार ( १२८-१)= १२७ वर्गणाविशेषोंकी ( १२७ x ४) एक द्वितीय वर्गणा होती है तो डेढ़ गुणहानिप्रमाण वर्गणाविशेषों (९६४४) की-९३४४४१ = ३८४ द्वितीय वर्गणा होती है। ३८४ को डेढ़ गुणहानि ९६ में मिला देने पर कुछ अधिक डेढ़ गुणहानि ९६ ३८४
= ४९११२ द्वितीय वर्गणाका भागाहार होता है। अब क्षेत्रकी अपेक्षा इस भागाहारको सिद्ध करते हैं-डेढ़ गुणहानिप्रमाण लम्बा और प्रथम वर्गणाप्रमाण चौड़ा क्षेत्र स्थापित करके उसमें से एक वर्गणाविशेषप्रमाण चौड़े और डेढ़ गुणहानि --डेढ़ गुणहानि-> प्रमाण लम्बे “अ” क्षेत्रको फालिरूपसे अलग करने पर ।। अ
व ०वि० शेष “ब” क्षेत्र डेढ़ गुणहानिप्रमाण लम्बा और द्वितीय ! वर्गणाप्रमाण चौड़ा होकर स्थित रहता है। पुनः द्वितीय ! वर्गणाके विष्कम्भके उपर तिरछे रूपसे उस फालिरूप "अ" । क्षेत्रको स्थापित करनेपर द्वितीय वर्गणाका विष्कम्भ पूरा नहीं है। प्राप्त होता। उसमें एक कम अर्ध गुणहानिप्रमाण वर्गणा | विशेषोंकी कभी रहती है। क्योंकि "अ' फालिका प्रमाण डेढ़गुणहानि ९६ प्रमाण लम्बा और एक वर्गणाविशेष ४ मैं। प्रमाण चौड़ा=९६४४ है और द्वितीय वर्गणाका प्रमाण || ५०८ = १२७४४ है। (१२७ ४ ४)-(९६x४) = ३१४४ ! अर्थात् द्वितीय वर्गणा पूरी होनेमें एक कम अर्ध गुणहानि (१४-१-३१) प्रमाण वर्गणाविशेष (४) की कमी है । यदि -- डेढ़ गुणहानि -→ एक कम अर्धगुणहानिप्रमाण वर्गणाविशेष और होते तो एक द्वितीय वर्गणा पूरी हो जाती। परन्तु इतना यहाँ नहीं है, अतः सब द्रव्यको द्वितीय वर्गणाके प्रमाणसे करने के लिए वह साधिक डेढ़ गुणहानिसे अपहृत होता है यह कहा है।
५९६. समस्त वर्गणाओंके कर्मप्रदेशोंका तृतीय वर्गणाके प्रमाणके द्वारा अपहार करने पर दो फालीमात्र वर्गणाविशेष होते हैं। उन दो फालियोंको श्राथामके साथ जोड़ देने पर तीन गुणहानि प्रमाण वर्गणाविशेष होते हैं। पुन: उन तीन गुणहानिप्रमाण वर्गणाविशेषोंको . तृतीय वर्गणाके प्रमाणसे अपहृत करने पर; दो कम दो गुणहानिप्रमाण वर्गणाविशेष क्षेत्रको
--द्वितीय वर्गणा---
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