Book Title: Kasaypahudam Part 05
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh

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Page 384
________________ गा० २२ ] अणुभागविहत्तीए हाणपरूवणा ३५५ वग्गणे त्ति । अधवा दिवड्डगुणहाणिहाणंतरेण कालेण अवहिरिजंत । 5 ५६५. तदो विदियाए वग्गणाए कम्मपदेसपमाणेण सव्ववग्गणकम्मपदेसा केवचिरेण कालेणं अवहिरजति ? सादिरेयदिवडगुणहाणिहाणंतरेण कालेण अवहिरिजंति । तं जहा-पढमवग्गणकम्मपदेसपमाणेण सव्ववग्गणकम्मपदेसपिंडे कदे दिवडगुणहाणिमेत्तपढमवग्गणाओ होति । संपहि विदियादिवग्गणावहारकाले इच्छिज्जमाणे दिवडगुणहाणि विरलेदूण सव्वदव्वं समखंड कादण दिएणे एक कस्स रुवस्स पढमवग्गणपमाणं पावदि । पुणो विदियवग्गणपमाणेण अवहिरिदुमिच्छामो त्ति हेहा णिसेगभागहारं विरलेदृण पढमवग्गणाए समखंड कादूण दिण्णाए एक कस्स रूवस्स वग्गणविसेसपमाणं पावदि। पुणो एत्थ एगरूवधरिदवग्गणविसेसपमाणेण उवरिमविरलणरूवं पडि हिदपढमवग्गणासु अवणिदे अवणिदसेसे दिवगुणहाणिमेत्तविदियवग्गणाओ होति । अवणिदवग्गणविसेसा वि दिवट्टगुणहाणिमेत्ता होति । पुणो एदे वि तप्पमाणेण कस्सामो। तं जहा–रूवूणणिसैगभागहारमेत्तवग्गणविसेसे घेत्तूण जदि एगविदियअपहार किया जा सकता है। इसी प्रकार अन्तिम वर्गणा पर्यन्त ले जाना चाहिये। अथवा डेढ़ गुणहानिस्थानान्तर कालके द्वारा उनका अपहार हो सकता है। विशेषार्थ—अपहारकालको सरल रूपसे समझनेके लिये अङ्कसंदृष्टि इस प्रकार हैसब वर्गणाओंके कर्मप्रदेशोंका प्रमाण ४६१५२; गुणहानिका प्रमाण ६४; डेढ़गुणहानि ९६; दो गुणहानि ६४४२=१२८; प्रथम वर्गणा ५१२; वर्गणाविशेषका प्रमाण दो गुणहानि अथवा निषेकभागाहारसे भाजित प्रथम वर्गणा ५१२ १२८ =४। पहली वर्गणाके कर्मप्रदेश ५१२ से यदि सब वर्गणाओंके कर्मप्रदेश ४९१५२ का अपहार किया जाय तो डेढ़ गुणहानि कालमें उनका अपहार हो सकता है ४९१५२ : ५१२-९६= ६४ x १३ अर्थात् डेढ़ गुणहानि। ६५९५, अनन्तर दूसरी वर्गणामें जितने कर्मप्रदेश हैं उतने प्रमाणसे सब वर्गणाओंके कर्मप्रदेशोंका अपहार कितने काल में होता है ? कुछ अधिक डेढ़ गुणहानि स्थानान्तर कालके द्वारा उनका अपहार होता है। उसका खलासा इस प्रकार है-प्रथम वर्गणामें जितने कर्मप्रदेश हैं उतने प्रमाणसे समस्त वर्गणाओंके कप्रदेशोंके पिण्ड करने पर डेढ़ गुणहानिप्रमाण प्रथम वर्गणाएँ होती हैं। अब द्वितीय आदि वर्गणाओंका अपहारकाल लाना इष्ट होनेपर डेढ़ गुणहानिका विरलन करके सब द्रव्यके समान खण्ड करके प्रत्येकके ऊपर देनेपर एक एक अंकके प्रति प्रथम वर्गणाका प्रमाण आता है। पुनः द्वितीय वर्गणाके प्रमाणसे अपहार करनेकी इच्छा है इसलिए नीचे निषेकभागहारका विरलन करके प्रत्येकके ऊपर सम खण्ड करके प्रथम वर्गणाके देनेपर एक एक रूपके प्रति वर्गणाविशेषका प्रमाण आता है। पुन: यहां एक अंकके प्रति प्राप्त वर्गणाविशेषके प्रमाणको उपरिभ विरलनके प्रत्येक एक पर स्थित प्रथम वर्गणामेंसे घटा देनेपर डेढ़ गुणहानिप्रमाण द्वितीय वर्गणाएँ होती हैं और घटाये गये वर्गणाविशेष भी डेढ़ गुणहानि प्रमाण होते हैं। पुन: इन्हें भी द्वितीय वर्गणाके प्रमाणसे करते हैं। उसका खुलासा इस प्रकार है-एक कम निषेकभागहार प्रमाण वर्गणाविशेषोंको लेकर यदि एक द्वितीय वर्गणाका प्रमाण १. ता० प्रतौ कालंतरेण अविहिरिजंति इति पाठः । २. ता० प्रतौ केचिरं कालेण इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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