Book Title: Kasaypahudam Part 05
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh

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Page 383
________________ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [अणुभागविहत्ती ४ ५६१. एत्थ तिण्णि अणियोगदारिणि-परूवणा पमाणमप्पाबहुअं चेदि । परूवणाए अत्थि णाणापदेसगुणहाणिहाणंतरसलागाओ एगपदेसगुणहाणिअद्धाणं च । [परूवणा गदा।] $ ५६२. णाणापदेसगुणहाणिसलागाओ एगपदेसगुहाणिअद्धाणं च अभवसिद्धिएहि अणंतगुणं सिद्धाणमणंतभागमेत्तं होदि । पमाणपरूवणा गदा। ५६३. सव्वत्थोवाओ णाणापदेसगुणहाणिसलागाओ। एगपदेसगुणहाणिहाणंतरमणंतगुणं । को गुणगारो ? अभवसिद्धिएहि अणंतगुणो सिद्धाणमणंतभागमेत्तो। एवं सेढिपरूवणा गदा । ५६४. पढमाए वग्गणाए कम्मपदेसपमाणेण सव्ववग्गणकम्मपदेसा केवडिएण कालेण अवहिरिजंति ? अणंतेण कालेण अवहिरिजंति । एवं णेदव्वं जाव चरिमनिषेकभागहार १६ का भाग देनेसे एक एक वर्गणाके प्रति चयका प्रमाण १६ आता है। यह चय पहलेके प्रमाणसे आधा है, क्योंकि पहले भाज्यराशिका प्रमाण ५१२ था और अब २५६ है। यहाँ भी निषेकभागहारका आधा अर्थात् आठ स्थान जानेपर कर्मपरमाणुओंका प्रमाण आधा रह जाता है । इसी प्रकार आगे भी जानना चाहिए । यथा प्रथम कृणहानि २गुणहानि ३गुणहानि ४ गुणहानि ५गुणहानि चरम गुणहानि २८८ ३२० १४४ ३५२ १८६ १६२ २०८ २२४ ३८४ ४१६ ४४८ ४८० ५१२ 000 WॐHair MOR. ९६ १८४ ११२ १२० १२८ १५. २५६ १६ इस प्रकार जघन्य स्थानकी प्रथम वर्गणासे लेकर चरम वर्गणा पर्यन्त कर्मपरमाणुओंका प्रमाण जानना चाहिए। ६५९१. इसका कथन करनेके लिये भी तीन अनुयोगद्वार हैं-प्ररूपणा, प्रमाण और अल्पबहुत्व । प्ररूपणाकी अपेक्षा नानाप्रदेशगुणहानिस्थानान्तर शलाकाएँ हैं और एकप्रदेशगुणहानिअध्वान है। प्ररूपणा समाप्त हुई। $ ५९२. नानाप्रदेशगुणहानिशलाकाएं और एकप्रदेशगुणहानिआयाम अभव्य राशिसे अनन्तगुणे और सिद्धराशिके अनन्तवें भागप्रमाण हैं। प्रमाणप्ररूपणा समाप्त हुई। $ ५९३. नानाप्रदेशगुणहानिशलाकाएँ सबसे थोड़ी हैं। उनसे एकप्रदेशगुणहानिस्थानान्तर अनन्तगुणा है ? गुणकारका प्रमाण कितना है ? अभव्यराशिसे अनन्तगुणा और सिद्धराशिके अनन्तवें भागप्रमाण गुणकारका प्रमाण है। इस प्रकार श्रेणिप्ररूपणा समाप्त हुई। ६५९४. पहली वर्गणामें जितने कर्मप्रदेश हैं उतने प्रसारणसे यदि सब वर्गणाओंके कर्मप्रदेशोंका अपहार किया जाय तो कितने कालमें किया जा सकता है ? अनन्त कालमें उनका Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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