Book Title: Kasaypahudam Part 05
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh

View full book text
Previous | Next

Page 350
________________ गा० २२] अणुभागविहत्तीए वड्डीए खेत्तं ३२१ सम्मामि० अवहि० असंखेजा । एवं मणुसअपज्न । $ ५५२. मणुसेसु छब्बीसंपयडीणं तेरसपदवि० सम्म०-सम्मामि० अवहि. असंखेज्जा । अणंताणुचउक्क० अवत्त० सम्म०-सम्मामि० अणंतगुणहाणी० अवत्त० संखेज्जा । मणुसपज्ज.-मणुसिणीसु अट्ठावीसंपयडीणं सव्वपदवि० संखेज्जा । आणदादि जाव अवराइदो ति अहावीसंपयडीणं सव्वपदवि० असंखेज्जा । णवरि सम्मत्त० अणंतगुणहाणि० संखेजा। सव्वदृसिद्धिविमाणे अट्ठावीसंपयडीणं सव्वपदवि० संज्जा । एवं जाणिदण णेदव्वं जाव अणाहारि ति ।। ___५५३. खेत्ताणुगमेण दुविहो णि सो-ओघेण आदेसेण य । ओघेण छब्बीसंपयडीणं तेरसपदवि० केवडि खेत्ते ? सव्वलोगे। अणंताणु०चउक्क० अवत्त० सम्म०सम्मामि० सव्वपदविहत्ति० के० खेत्त० १ लोग० असंखे० भागे। एवं तिरिक्खोघं । णवरि सम्मामि० अणंतगुणहाणी णत्थि । सेसमग्गणासु सव्वपयडीणं सव्वपदविह० लोग० असंखे०भागे । एवं जाणिदूण णेदव्वं जाव अणाहारि त्ति । ५५४. पोसणाणु० दुविहो णिद्दे सो-ओघेण आदेसेण य। ओघेण छब्बीसंपयडीणं तेरसपदवि० के० खेतं पोसिदं ? सव्वलोगो। अणंताणु०चउक्क० अवत्त० सम्यक्त्व तथा सम्यग्मिथ्यात्वकी अवस्थित विभक्तिवाले जीव असंख्यात हैं। इसी प्रकार मनुष्य अपर्याप्तको में जानना चाहिए । ६५५२. सामान्य मनुष्यों में छब्बीस प्रकृतियो की तेरह पदविभक्तिवाले और सम्यक्त्व तथा सम्यग्मिथ्यात्वकी अवस्थित विभक्तिवाले जीव असंख्यात हैं। अनन्तानुबन्धीचतुष्ककी अवक्तव्य विभक्तिवाले, तथा सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्व प्रकृतिकी अनन्तगुणहानि और अवक्तव्य विभक्तिवाले जीव संख्यात हैं। मनुष्यपर्याप्त और मनुष्यिनियों में अट्ठाईस प्रकृतियो की सब पद विभक्तिवाले जीव संख्यात हैं। आनतसे लेकर अपराजित विमान तकके देवों में अट्ठाईस प्रकृतिया की सब पद विभक्तिवाले जीव असंख्यात हैं। इतना विशेष है कि सम्यक्त्व प्रकृतिकी अनन्तगुणहानि विभक्तिवाले जीव संख्यात हैं। सवार्थासद्धि विमानमें अट्ठाईस प्रकृतियो की सब पद विभक्तिवाले जीव संख्यात हैं। इस प्रकार जानकर अनाहारी पर्यन्त ले जाना चाहिये। ६५५३. क्षेत्रानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश। ओघसे छब्बीस प्रकृतियोंकी तेरह पद विभक्तिवाले जीवोंका कितना क्षेत्र है ? सब लोक क्षेत्र है। अनन्तानुबन्धीचतुष्कका अवक्तव्य विभक्तिवाले तथा सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी सर्व पद विभ जीवा का कितना क्षेत्र है ? लाकके असंख्यातवं भागप्रमाण क्षेत्र है। इसी प्रकार सामान्य तिर्यञ्चो में जानना चाहिए। इतना विशेष है कि तिर्यञ्चोंमें सम्यग्मिथ्यात्वकी अनन्तगुणहानि नहीं होती। शेष मार्गणाओं में सब प्रकृतियों की सब पद विभक्तिवाले जीवो का लोकके असं. ख्याठवें भागप्रमाण क्षेत्र है। इस प्रकार जानकर अनाहारी पर्यन्त ले जाना चाहिए। ५५४. स्पर्शनानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश। ओघसे छब्बीस प्रकृतियो की तेरह पद विभक्तिवाले जीवोंने कितने क्षेत्रका स्पर्शन किया है ? सर्व लोकका स्पर्शन किया है। अनन्तानुबन्धीचतुष्ककी अवक्तव्य विभक्तिवालो ने लोकके असंख्यातवें भागका Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438