Book Title: Kasaypahudam Part 05
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
View full book text
________________
३३४
जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [अणुभागविहत्ती ४ गुणब्भहियहाणं होदि । संखेजगुणवडिकंडयं गंतूण असंखेज्जगुणब्भहियहाणं होदि । असंखे०गुणवडिकंडयं गंतूण अणंतगुणब्भहियहाणं होदि त्ति वेयणाए कंडयपरूवणामुत्तादो णव्वदे। ण च जहण्णहाणे अणड के संते तदुवरि संपुषणकंडयमेत्ताणं पंचएहं वडढीणमेगअणंतगुणवडढीए च संभवो अत्थि, विरोहादो। किं कंडयं णाम ? सूचिअंगुलस्स असंखे०भागो । तस्स को पडिभागो ? तप्पाओग्गअसंखे०रूवाणि ।
५७२. एसा च कंडयआयामसंखा छसु वि वडीसु सरिसा ति ददृव्वा । कुदो ? सुत्ताविरुद्धाइरियवयणादो। एदं जहण्णाणुभागहाणं संतकम्मट्टाणं बंधहाणसमाणमिदि कदो णव्वदे ? अणुभागसंकमजहण्णपदणिक्वेवसुत्तादो । तं जहाप्रमाण संख्यातभागवृद्धिके होनेपर संख्यातगुणवृद्धिस्थान होता है। काण्डक प्रमाण सख्यातगुणवृद्धिके होनेपर असंख्यातगुणवृद्धि स्थान होता है। काण्डकप्रमाण असंख्यातगुणवृद्धिके होनेपर अनन्तगुणवृद्धि स्थान होता है। काण्डकका कथन करनेवाले वेदनाखण्डके इस सूत्रसे जाना । यदि जघन्य अनुभागस्थान अष्टांक प्रमाण न होता तो उसके ऊपर सम्पूर्ण काण्डकप्रमाण पांचों वृद्धियां और एक अनन्तगुणवृद्वि संभव नहीं होती, क्योंकि ऐसा होनेमें विरोध है ।
शंका-काण्डक किसे कहते हैं ? समाधान-सूच्यंगुलके असंख्यातवें भागको काण्डक कहते हैं। शंका-उसका प्रतिभाग क्या है ? समाधान-उसके योग्य असंख्यात उसका प्रतिभाग है।
विशेषार्थ सूक्ष्म निगोदिया जीवका जो सबसे जघन्य अनुभाग स्थान होता है वह सब अनुभागस्थानोंमें प्रथम अनुभाग स्थान है उससे जघन्य कोई दूसरा अनुभागस्थान, नहीं होता। मगर वह अनुभागस्थान घातसे उत्पन्न होता है और यहाँ कथन बन्ध समुत्पत्तिक स्थानोंका है तो उसका यहाँ ग्रहण नहीं होना चाहिये था। किन्तु घातसे उत्पन्न होने पर भी सूक्ष्म निगोदियाका जघन्य अनुभागस्थान बन्धसमुत्पत्तिक स्थानके समान ही है। और इसके दो कारण हैं-एक तो यह स्थान अष्टांक और उर्वकके बीचमें उत्पन्न नहीं होता, दूसरे इसके अविभागी प्रतिच्छेद बन्धसमुत्पत्तिक स्थानके अविभागी प्रतिच्छेदोंके बराबर ही होते हैं। इन दोनों कारणोंका विवेचन क्रमसे किया जाता है-(१) यह जघन्य अनुभाग स्थान अष्टांक रूप है, इसलिये इसकी उत्पत्ति अष्टांक और उर्वकके बीचमें नहीं होती। तथा इसके ऊपर सम्पूर्ण काण्डकप्रमाण पाँचों वृद्धियाँ और एक अनन्तगुणवृद्धि होती है इसलिये यह अष्टांक रूप है, क्योंकि अष्टांकके ऊपर ही इतनी वृद्धियाँ हो सकती हैं और जो स्थान अष्टांक और उर्वकके बीचमें उत्पन्न होता है उसपर केवल अनन्तगुणवृद्धि हा होती है, शेष वृद्धियाँ नहीं होती।
९५७२. सूत्रसे अविरूद्ध आचार्यवचनोंसे काण्डकका यह प्रमाण छहों वृद्धियोंमें समान जानना चाहिये।
शंका-यह जघन्य अनुभाग सत्कर्मस्थान बन्धस्थानके समान है यह कैसे जाना ? समाधान-अनुभाग संक्रम अनुयोगद्वारमें जघन्यपदनिक्षेपका कथन करनेवाले सूत्रसे
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org