Book Title: Kasaypahudam Part 05
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh

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Page 362
________________ गा० २२] अणुभागविहत्तीए हाणपरूवणा ३३३ मिच्छत्तस्स जहण्णयमणुभागसंतकम्मं कस्स ? सुहुमस्स हदसमुप्पत्तियकम्मियस्से ति सामिसुत्तादो । जदि एदं जहण्णाणुभागहाणं मुहुमणिगोदेण हदसमुप्पत्तियकम्मेणुप्पाइदं तो णेदं बंधसमुप्पत्तियहाणं, घादेणुप्पाइदस्स बंधदो समुप्पत्तिविरोहादो त्ति ? ण बंधसमुप्पत्ति यहाणमेवे ति उवयारेण हदसमुप्पत्ति यहाणस्स वि बंधसमुप्पत्तियहाणत्तं पडि विरोहाभावादो । कथमेदस्स बंधसमुप्पत्तियहाणसमाणत्तं ? ण, अदृक-उव्वंकाणं विच्चालेसु अणुप्पण्णत्तणेण बंधसमुप्पत्ति यहाणाणुभागाविभागपडिच्छेदेहि सरिसाविभागपडिच्छेदत्तणेण च बंधसमुप्पत्तियहाणसमाणत्तवलंभादो । एदं च जहण्णाणुभागहाणमहकावहिदं । किमकं णाम ? अणंतगुणवढी । कथमेदिस्से अहकसण्णा ? अहण्हमंकाणमणंतगुणवड्डी ति हवणादो । जहण्णाणुभागहाणमणंतगुणवडढीए अवहिदमिदि कदो णव्वदे ? अणंतभागवडिकंडयं गतूण असंखेजभागब्भहियहाणं होदि । असंखेजभागवडिकंडयं गंतूण संखेजभागब्भहियहाणं होदि । संखेजभागवडिकंडय गंतूण संखे० समा समाधान मिथ्यात्वका जघन्य, अनुभागसत्कर्म किसके होता है ? हतसमुत्पत्तिक कमवाले सूक्ष्म निगोदिया जीवके होता है इस स्वामित्वको बतलानेवाले सूत्रसे जाना। शंका-यदि यह जघन्य अनुभागस्थान निगोदिया जीवके द्वारा कमका घात करके उत्पन्न किया गया है तो यह बन्धसमुत्पत्तिक स्थान नहीं हुआ, क्योंकि जो अनुभास्थान घातसे उत्पन्न किया गया है उसकी बन्धसे उत्पत्ति होनेमें विरोध आता है। आशय यह है कि बन्धसमुत्पत्तिक स्थानोंकी यह चर्चा है और सबसे जघन्य बन्धसमुत्पत्तिक स्थान हतसमुत्पत्तिक कर्मवाले निगोदिया जीवके बतलाया है, अतः वह हतसमुत्पत्तिकस्थान हुआ बन्धसमुत्पत्तिक स्थान नहीं हुआ। समाधान-नहीं, क्योंकि यह बन्धसमुत्पत्तिक स्थान ही है। कारण कि उपचारसे हतसमुत्पत्तिक स्थानके भी बन्धसमुत्पत्तिक स्थान होनेमें कोई विरोध नहीं है। शंका यह हतसमुत्पत्तिक स्थान बन्धसमुत्पत्तिक स्थानके समान कैसे है ? समाधान-नहीं, क्योंकि प्रथम तो यह स्थान अष्टांक और उर्वकके बीचमें उत्पन्न नहीं हुआ है। दूसरे इसके अविभागी प्रतिच्छेद बन्धसमुत्पत्तिक स्थानके अनुभागके अविभागी प्रतिच्छेदोंके समान है, अत: यह स्थान बन्धसमुत्पत्तिक स्थानके समान पाया जाता है। यह जघन्य अनुभागस्थान अष्टांकरूपसे अवस्थित है। शंका-अष्टांक किसे कहते हैं ? समाधान-अनन्तगुणवृद्धिको। शंका-अनन्तगुणवृद्धिकी अष्टांक संज्ञा है ? समाधान-नहीं, क्योंकि आठके अंककी अनन्तगुणवृद्धिरूपसे स्थापना की गई है। शंका-जघन्य अनुभागस्थान अनन्तगुणवृद्धिरूपसे अवस्थित है यह कैसे जाना ? समाधान-काण्डक प्रमाण अनन्तभागवृद्धिके होनेपर असंख्यातभागवृद्धिस्थान होता है। काण्डक प्रमाण असंख्यातभागवृद्धि के होनेपर संख्यातभागवृद्विस्थान होता है। काण्डक १. श्रा० प्रती एवं च इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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