Book Title: Kasaypahudam Part 05
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh

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Page 371
________________ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [ अणुभागविहत्ती ४ उसे बन्धसमुत्पत्ति स्थानों में सबसे जघन्य कहा है। यह जघन्य स्थान अनन्तगुणवृद्धिरूप होनेसे अष्टांक प्रमाण कहा जाता है । वृद्धियां छह होती हैं - अनन्तभागवृद्धि, असंख्यात भागवृद्धि, संख्यातभागवृद्धि, संख्यातगुणवृद्धि, असंख्यातगुणवृद्धि और अनन्तगुणवृद्धि । इन वृद्धियों की सहनानी क्रमसे, उर्वक, चतुरङ्क, पञ्चांक, षष्ठांक, सप्तांक और अष्टांक है । काण्डकप्रमाण पहले की वृद्धि के होनेपर आगेकी वृद्धि होती है । जैसे काण्डकका प्रमाण यदि दो कल्पना करे तो दो बार पहले की वृद्धिके होनेपर एकबार आगेकी वृद्धि होती है । जिसमें छहों वृद्धियां हों उसे षट्स्थान कहते हैं । षट्स्थानमें अगली अगली वृद्धिके पूर्व काण्डकप्रमारण पिछली पिछली वृद्धि और अन्तमें एक अनन्तगुणवृद्धि होती है । तदनुसार एक स्थानकी संदृष्टि इस प्रकार है ३४२ उ उ ४ उ उ ४ उ उ४ उ उ ४ उ उ४ उ उ ४ उ उ ४ उ उ४ उ उ४ Jain Education International उ उ ४ उ उ ४ उ उ ४ उ उ ४ उ उ ४ उ उ ४ उ उ५ उ उ ५ उ उ५ उ उ५. उ उ५ उ उ ५ उ उ ४ उ उ ४ उ उ ५ उ उ ४ उ उ४ उ उ ४ उ उ ४ उ उ४ उ उ ४ उ उ४ उ उ ४ उ उ ४ उ उ४ उ उ ४ उ उ ४ उ उ ४ उ उ४ उ उ ५ उ उ ४ उ उ ५ उ उ ५ उ उ ५ उ उ ५ उ उ५ उ उ ५ उ उ ५ उ उ ४ For Private & Personal Use Only उ उ ४ उ उ ४ उ उ ४ उ उ ४ उ उ४ उ उ ४ उ उ ४ उ उ ४ उ उ ४ उ उ४ उ उ ४ उ उ४ उउ ४ उ उ ५ उ उ ४ उ उ५ उ उ ४ उउ४ उ उ ४ उ उ ४ उ उ ८ सूक्ष्म निगोदियाके जघन्य स्थानके ऊपर ये वृद्धियां होती हैं, अत: वह अष्टांकरूप है। यदि वह अष्टांक और उके बीच में स्थित होता तो उसपर केवल अनन्तगुणवृद्धि ही होती, अन्य वृद्धियां नहीं होतीं। और अनुभागस्थानकी वृद्धि केवल उत्कर्षणमात्रसे नहीं होती, क्योंकि उत्कर्षण द्वारा नीचे अल्प अनुभागवाले निषेकोंका ऊपरके अधिक अनुभागवाले निषेकोंमें निक्षेपण करके उनका अनुभाग बढ़ाया जाता है किन्तु इससे अनुभागस्थानकी वृद्धि नहीं होती, अनुभागस्थान तो ज्योंका त्यों रहता है, क्योंकि अन्तिम स्पर्धक की अन्तिम वर्गरणाके एक परमाणु में जो अनुभाग होता है उसे अनुभागस्थान कहते हैं । इसका विशेष खुलासा आगे करेंगे कि सबसे अधिक अनुभाग अन्तिम वर्गणा के अन्तिम परमाणु में ही होता है और उत्कर्षण के द्वारा उसमें क्षेपण होना संभव नहीं है। अतः उत्कर्षणके द्वारा कुछ परमाणुओं में अनुभागकी वृद्धि भले ही हो जाओ किन्तु अनुभागस्थानकी वृद्धि नहीं होती । पूर्व में अन्तिम स्पर्धककी अन्तिम वर्गणाके एक परमाणु जो अनुभाग होता है उसे अनुभागस्थान कहा है । इसपर एक शंका यह की गई है कि जैसे योग्यस्थानमें जीवके सब प्रदेशों का ग्रहण किया जाता है वैसे अनुभागस्थान में सब स्पर्धकोंके सब विभागी प्रतिच्छेदोंको न लेकर अन्तिम स्पर्धककी अन्तिम वर्गणा के एक परमाणु में पाये जानेवाले अविभागी प्रतिच्छेदों को ही क्यों लिया तो इसका यह समाधान किया गया कि यदि सब स्पर्धकोंके सब परमाणुओ में पाये जानेवाले अनुभागको अनुभागस्थान माना जायगा तो काण्डकघात के उ उ ४ उ उ ४ उ उ ४ उ उ ४ उ उ ६ उ उ ६ उ उ ७ उ उ ६ उ उ ६ उ उ ७ उ उ ६ उ उ ६ www.jainelibrary.org

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