Book Title: Kasaypahudam Part 05
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh

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Page 365
________________ ३३६ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [अणुभागविहत्ती ४ दोसो संभवइ, उक्कड्डिदे अणुभागहाणाविभागपडिच्छेदाणं वुड्डीए अभावादो। अणुभागहाणं णाम चरिमफद्दयचरिमवग्गणाए एगपरमाणुम्हि हिदअणुभागहाणाविभागपडिच्छेदकलावो। ण सो उक्कड्डणाए वड्ढदि, बंधेण विणा तदुक्कड्डणाणुववत्तीदो। ण च बंधेण जादवड्डी उक्कड्डणावडि त्ति वुच्चदि, बंधे उक्कड्डणाए पहाणत्ताभावादो । ण च हेहिमपरमाणूणमणुभागे अणणुभागहाणे उक्कड्डणाए वडिदे अणुभागहाणस्स वुड्डी होदि, अण्णवुड्डीए अण्णस्स वुडिविराहादो। ण च उक्कड्डणाए इव बंधेण वि अणुभागहाणवुडीए अभावो, पुग्विल्लअणुभागहाणसण्णिदअणुभागाविभागपडिच्छेदकलावादो संपहियअणुभागहाणसण्णिदअणुभागाविभागपडिच्छेदकलावस्स अणंतभागादिसरूवेण वडिदंसणादो। चरिमफद्दयचरिमवग्गणाए एगपरमाणुम्हि हिदअणुभागस्स हाणत्ते इच्छिज्जमाणे एगाणुभागहाणम्मि अणंताणि फद्दयाणि ति सुत्तेण सह विरोहो होदि त्ति णासंकणिज्जं, जहण्णहाणस्स जहण्णफद्दयप्पहुडि उवरिमासेसफद्दयाणं तत्थुवलंभादो। ण च हेहिमाणुभागहाणाणं तत्थाभावो, तेहि विणा पयदाणुभागहाणस्स वि अभावप्पसंगेण तेसि तत्थ अत्थित्तसिद्धीदो। एगपरमाणुम्मि अवहिदगुणस्स अणुभागहाणते . समाधान-अब इस शंकाका समाधान करते हैं जो इस प्रकार है-प्रथम पक्षमें दिया गया दोष तो संभव नहीं है, क्योंकि उत्कर्षणके होने पर अनुभागस्थानके अविभागी प्रतिच्छेदोंकी वृद्धि नहीं होती है। अन्तिम स्पर्धककी अन्तिम वर्गणाके एक परमाणुमें स्थित अनुभागके अविभागी प्रतिच्छेदोंके समूहको अनुभागस्थान कहते हैं। अनुभागके अविभागी प्रतिच्छेदोंका समूहरूप वह अनुभागस्थान उत्कर्षणसे नहीं बढ़ता है, क्योंकि बंधके बिना उसका उत्कषण नहीं बन सकता है। यदि कहा जाय कि बंधके द्वारा होनेवाली वृद्धिको उत्कर्षण वृद्धि कहते हैं सो भी कहना ठीक नहीं है, क्योंकि बंधमें उत्कर्षणका प्राधान्य नहीं है। यदि कहा जाय कि नीचेके परमाणुओंके अनुभागमें जो कि अनुभागस्थान नहीं है, उत्कर्षणके द्वारा बढ़ने पर अनुभागस्थानकी वृद्धि हो जायगी सो भी कहना ठीक नहीं है, क्योंकि अन्यकी वृद्धि होने पर अन्यकी वृद्धिका विरोध है। शायद कहा जाय कि जैसे उत्कर्षणके द्वारा अनुभागस्थानकी वृद्धि नहीं होती है वैसे ही बन्धके द्वारा भी नहीं होती, किन्तु ऐसा कहना ठीक नहीं है, क्योंकि पहलेके अनुभागस्थान संज्ञावाले अनुभागके अविभागी प्रतिच्छेदोंके समूहसे साम्प्रतिक अनुभागस्थान संज्ञावाले अनुभागके अविभागी प्रतिच्छेदोंके समूहकी अनन्तभाग आदि रूपसे वृद्धि देखी जाती है। शंका-अन्तिम स्पर्धककी अन्तिम वर्गणाके एक परमाणमें स्थित अनुभागको अनुभागस्थान मानने पर एक अनुभागस्थानमें अनन्त स्पर्धक होते हैं इस सूत्रके साथ विरोध आता है ? समाधान-ऐसी आशंका नहीं करना चाहिये, क्योंकि जघन्य अनुभागस्थानके जघन्य स्पर्धकसे लेकर ऊपरके सब स्पर्धक उसमें पाये जाते हैं। शायद कहा जाय कि नीचेके अनुभागस्थानोंका उसमें अभाव है, किन्तु ऐसा कहना ठीक नहीं है, क्योंकि उसके विना प्रकृत अनुभागस्थानके भी अभावका प्रसंग उपस्थित होता है, अत: उसमें नीचे के अनुभागस्थानोंका अस्तित्व है यह सिद्ध होता है। शंका-यदि एक परमाणुमें स्थित अनुभागके अविभागी प्रतिच्छेदोंके समूहको अनुभाग Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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