Book Title: Kasaypahudam Part 05
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh

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Page 354
________________ गा० २२ ] अनुभागविहत्तीए वड्डीए कालो ३२५ $ ५५६. आदेसैण णेरइएसु छब्बीसंपयडीणं पंचवडि-छहाणि० छण्हमवत्त० जह० एगस०, उक्क० आवलि० असंखे०भागो। अणंतगुणवड्डि-अवहि० सम्म०-सम्मामि० अवहि० सव्वद्धा । सम्म० अणंतगुहाणि० ओघं । एवं पढमपुढवि०-पंचिदियतिरिक्खपंचिं०तिरि०पज्ज०-देवोघं सोहम्मादि जाव सहस्सारो त्ति । विदियादि जाव सत्तमि त्ति एवं चेव । णवरि सम्मत्त० अणंतगुणहाणी णत्थि। एवं पंचिंदियतिरिक्खजोणिणीभवण-वाण-जोइसिए ति । पंचितिरि०अपज्ज. छब्बीसंपयडीणं तेरसपदवि० सम्म०-सम्मामि० अहि. णेरइयभंगो । एवं मणुसअपज० । णवरि छब्बीसंपयडीणमणंतगुणवडि--अवहि० सम्म०--सम्मामि० अवहि० ज० एगस०, उक्क० पलिदो० असंखे०भागो। ६५६०. मणुस्सेसु छब्बीसं पयडीणं तेरसपदवि० सम्म०-सम्मामि० अवधि. रइयभंगो । णवरि चदुसंज०-पुरिस०-सम्म० अणंतगुणहाणि० जह० एगस०, उक्क० अंतोमुहुत्तं । छण्णमवत्त० सम्मामि० अणंतगुणहाणि० जह• एगस०, उक्क० संखेज्जा समयो । मणुसपज्ज० छब्बीसं पयडीणं पंचवट्टी० ज० एगस०, उक्क० आवलि० असंखे० $ ५५९. श्रादेशसे नारकियोंमें छब्बीस प्रकृतियोंकी पांच वृद्धियों और छ हानियोंका तथा सम्यक्त्व, सम्यग्मिथ्यात्व और अनन्तानुबन्धीचतुष्ककी अवक्तव्य विभक्तिका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल आवलीके असंख्यातवें भागप्रमाण है। छब्बीस प्रकृतियोंकी अनन्तगुणवृद्धि और अवस्थित विभक्तिका तथा सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी अवस्थित विभक्तिका काल सर्वदा है। सम्यक्त्वकी अनन्तगुणहानिका काल ओघके समान है । इसी प्रकार पहली पृथिवी, पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्च, पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्च पयाप्त, सामान्य देव और सौधर्मसे लेकर सहस्रार स्वर्ग तकके देवोंमें जानना चाहिए। दूसरीसे लेकर सातवीं पृथिवी तकके देवोंमें इसी प्रकार जानना चाहिए । इतना विशेष है कि दूसरे आदि नरकोंमें सम्यक्त्व प्रकृतिकी अनन्तगुणहानि नहीं होती। इसी प्रकार पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्च योनिनी, भवनवासी, व्यन्तर और ज्योतिषियोंमें जानना चाहिए। पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्च अपर्याप्तकोंमें छब्बीस प्रकृतियोंकी तेरह पद विभक्तियोंका तथा सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी अवस्थित विभक्तिका काल नारकियोंके समान है। इसी प्रकार मनुष्य अपर्याप्तकोंमें जानना चाहिए। इतना विशेष है कि छब्बीस प्रकृतियोंकी अनन्तगुणवृद्धि और अवस्थित विभक्तिका तथा सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी अवस्थित विभक्तिका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण है। ६५६०. मनुष्योंमें छब्बीस प्रकृतियोंकी तेरह पद विभक्तियोंका तथा सम्यक्त्व और सम्यम्मिध्यात्वकी अवस्थित विभक्तिका काल नारकियोंके समान है। इतना विशेष है कि चारों संज्वलन कषाय, पुरुषवेद और सम्यक्त्वकी अनन्तगुणहानिका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है । छह प्रकृतियोंकी अवक्तव्य विभक्तिका और सम्यग्मिथ्यात्वकी अनन्त गुणहानिका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल संख्यात समय है। मनुष्य पर्याप्तकोंमें छब्बीस प्रकृतियोंकी पांच वृद्धियोंका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल १. प्रा. प्रतौ सम्म० अणंतगुणहाणी जह° एगस. उक्क. संखेजा समया इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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