Book Title: Kasaypahudam Part 05
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh

Previous | Next

Page 357
________________ ३२८ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [अणुभागविहत्ती ४ सम्मामि० अवहि० ज० एगसमो, उक्क० पलिदो० असंखे०भागो। ५६५. आणदादि जाव गवगेवज्जा त्ति वावीसं पयडीणं अणंतगुणहाणि० ज० एगस०, उक्क० सत्त रादिदियाणि । अवढि० सम्म०-सम्मामि० अवहि० गत्थि अंतरं । दोण्हमवत्त० सम्म० अणंतगुणहाणि० अणंताणु० सव्वपदा० देवोघं । अणुदिसादि जाव सव्वहसिद्धि त्ति सत्तावीसं पयडीणमणंतगुणहाणि० ज० एगस०, उक्क० वासपुधत्तं पलिदो० संखे० भागो'। एदेसिमवहि० सम्मामि० अवहि० णत्थि अंतरं । एवं जाणिदण णेदव्वं जाव अणाहारि त्ति ।। ___५६६. भावाणु० सव्वत्थ ओदइओ भावो । एवं जाणिदूण णेदव्वं जाव अणाहारि त्ति । $ ५६७. अप्पाबहुगाणु० दुविहो जिद्द सो-ओघेण श्रादेसेण य । ओघेण वावीसं पयडीणं सव्वत्थोवा अणतभागहाणिविहत्तिया जीवा। असंखेजभागहाणिवि. असंखे०गुणा । संखेभागहाणिवि० संखे०गुणा । संखे गुणहाणिवि० संखे० गुणा । असंखे.गुणहाणिवि० असंखेगुणा। अणंतभागवडिविह. असंखेगुणा । असंखे० भागवडिवि० असंखे०गुणा । संखे० भागवड्डिवि० संखे०गुणा । संखे०गुणवडिवि० अवस्थितविभक्तिका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण है। ५६५. आनतसे लेकर नवग्रैवेयक तकके देवोंमें बाईस प्रकृतियोंकी अनन्तगुणहानिका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर सात रात दिन है। बाईस प्रकृतियोंकी अवस्थित विभक्तिका तथा सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी अवस्थितविभक्तिका अन्तर नहीं है। सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी प्रवक्तव्य विभक्तिका, सम्यक्त्वकी अनन्तगुणहानिका और अनन्ता न्धाचतुष्कक सब पदोंका अन्तर सामान्य देवोंकी तरह है। अनदिशसे लेकर सर्वार्थसिद्धि तकके देवोंमें सत्ताईस प्रकृतियोंकी अनन्तगुणहानिका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर अनुदिशसे अपराजित तक वर्षपृथक्त्व और सवाथेसिद्धिमें पल्यके संख्यातवं भागप्रमाण है। इन प्रकृतियोंकी तथा सम्यग्मिथ्यात्व प्रकृतिकी अवस्थित विभक्तिका अन्तर नहीं है। इस प्रकार जानकर अनाहारी पर्यन्त ले जाना चाहिये। ६५६६. भावानुगमकी अपेक्षा सर्वत्र औदायिक भाव है। इस प्रकार जानकर अनाहारी पर्यन्त ले जाना चाहिये। ६५६७. अल्पबहुत्वानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश। ओघसे बाईस प्रकृतियोंकी अनन्तभागहानि विभक्तिवाले जीव सबसे थोड़े हैं। इनसे असंख्यात भागहानि विभक्तिवाले जीव असंख्यातगुणे हैं। इनसे संख्यातभागहानि विभक्तिवाले जीव संख्यातगुणे हैं। इनसे संख्यातगुणहानि विभक्तिवाले जीव संख्यातगुणे है। इनसे असंख्यातगुणहानि विभक्तिवाले जीव असंख्यातगुणे हैं। इनसे अनन्तभागवृद्धि विभक्तिवाले जीव असंख्यातगुणे हैं। इनसे असंख्यातभागवृद्धि विभक्तिवाले जीव असंख्यातगुणे हैं। इनसे संख्यातभागवृद्धि विभक्तिवाले जीव संख्यातगुणे हैं। इनसे संख्यातगुणवृद्धि विभक्तिवाले जीव संख्यातगुणे हैं। 1. ता. प्रतौ पलिदो० असंखेजदिभागो इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438