Book Title: Kasaypahudam Part 05
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh

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Page 352
________________ गा० २२] अणुभागविहत्तीए वड्डीए पोसणं ३२३ गुणहाणी णत्थि । पंचिंदियतिरिक्खअपज्ज. छब्बीसंपयडीणं तेरसपदवि० सम्म०सम्मामि० अवहि० लोग० असंखे०भागो सव्वलोगो वा । णवरि इत्थि-पुरिस० छवडी० खेत्तं । एवं मणुसअपज्ज० । तिण्हं मणुस्साणं पंचिं०तिरिक्खभंगो । णवरि सम्मत्त ०सम्मामि० अणंतगुणहाणि. ओघं ।। ५५७. देवेमु छब्बीसंपयडीणं तेरसपदवि० सम्म०--सम्मामि० अवहि. लोग० असंखे० भागो अह-णवचोद्दस० देसूणा । सम्मत्त० अणंतगुणहाणि. खेत्तं । छण्हमवत्त• इत्थि-पुरिस० छचड्ढी० लोग० असंखे०भागो अहचोद्द० देम्णा । एवं भवण-वाण-जोइसिए त्ति । णवरि सगपोसणं । सम्म० अणंतगुणहाणी णत्थि । सोहम्मादि जाव सहस्सारो ति छब्बीसंपयडीणं तेरसपदवि० सम्म०--सम्मामि० अवहि० छण्हमवत्त० लोग. असंखे०भागो अहचोद० देसूणा । सम्मत्त० अणंतगुणहाणि. खेतं । णवरि सोहम्मीसाणेसु अह-णवचोदसभागा देसूणा । आणदादि जाव अच्चु दो ति वावीसंपयडीणमवहि० अणंतगुणहाणि० अणंताणु० सव्वपदवि० सम्म०है। इसी प्रकार पञ्चेन्द्रियतिर्यञ्च योनिनियों में जानना चाहिए। इतना विशेष है कि उनमें सम्यक्त्वकी अनन्तगणहानि नहीं है। पञ्चेन्द्रियतिर्यञ्च अपर्याप्तको में छब्बीस प्रकृतियों की तेरह पद विभक्तिवाला'ने तथा सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी अवस्थित विभक्तिवालो ने लोकके असंख्यातवें भाग और सर्वलोक प्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। इतना विशेष है कि स्त्रीवेद और पुरुषवेदकी छह वृद्धिवालो का स्पर्शन क्षेत्रके समान है। इसी प्रकार मनुष्य अपर्याप्तको में जानना चाहिए। शेष तीन प्रकारके मनुष्यों में पञ्चन्द्रियतिर्यञ्चोंके समान भंग है। इतना विशेष है कि सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी अनन्तगुणहानिका स्पर्शन ओघके समान है। ६५५७. देवों में छब्बीस प्रकृतियों की तरह पद विभक्तिवालो ने और सम्यक्त्व तथा सम्यग्मिथ्यात्वकी अवस्थितविभक्तिवालोंने लोकके असंख्यातवें भाग और चौदह राजूमेंसे कुछ कम आठ और कुछ कम नौ राजू प्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। सम्यक्त्वकी अनन्तगणहानिवालोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है। सम्यक्त्व, सम्यग्मिथ्यात्व और अनन्तानुबन्धीचतुष्ककी अवक्तव्य विभक्तिवालो ने तथा स्त्रीवेद और पुरुषवेदकी छह वृद्धिवालो ने लोकके असंख्यातवें भाग और चौदह राजूमेंसे कुछ कम आठ राजू प्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। इसी प्रकार भवनवासी, व्यन्तर और ज्योतिषियों में जानना चाहिए । इतना विशेष है कि वहाँ अपना-अपना स्पर्शन लेना चाहिए। तथा उनमें सम्यक्त्वकी अनन्तगुणहानि नहीं है । सौधर्मसे लेकर सहस्रार स्वर्ग तकके देवों में छब्बीस प्रकृतियो की तेरह पद विभक्तिवालो ने सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी अवस्थितविभक्तिवालो ने तथा सम्यवत्व, सम्यग्मिथ्यात्व और अनन्तानुबन्धी चतुष्ककी अवक्तव्यविभक्तिवालो ने लोकके असंख्यातवें भाग और चौदह राजूमेंसे कुछ कम आठ राजू प्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। सम्यक्त्वकी अनन्तगुणहानिवालो का स्पर्शन क्षेत्र के समान है । इतना विशेष है कि सौधर्म और ईशान स्वर्गमें चौदह राजूमेंसे कुछ कम आठ और कुछ कम नौ राजू प्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। आनतसे लेकर अच्युत स्वर्ग तकके देवों में बाईस प्रकृतियों की अवस्थित विभक्ति और अनन्तगुणहानिवालो ने, अनन्तानुबन्धी चतुष्ककी सर्व पद विभक्तिवालो ने तथा सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी अवस्थित और Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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