Book Title: Kasaypahudam Part 05
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh

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Page 351
________________ ३२२ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [ अणुभागविहत्ती ४ लो० असंखे०भागो अहचोदस० देसूणा । सम्म०-सम्मामि० अणंतगुणहाणि० खेतं । अवहि० लो० असंखे०भागो अहचोदस० देरणा सव्वलोगो वा । अवत्त० लोग० असंखे०भागो अहचोदस० देसूणा । $ ५५५. आदेसेण णेरइएमु छब्बीसंपयडीणं तेरसपदवि० सम्म० सम्मामि० अवहि० केव० १ लोग० असंखे०भागो छचोदस० देसूणा । सम्म० अणंतगुणहाणि. छण्हमवत्त ० खेत्तं । पढमपुढवि० खेत्तं । विदियादि जाव सत्तमि त्ति छब्बीसंपयडीणं तेरसपदवि० सम्म०-सम्मामि० अवहि. सगपोसणं बत्तव्वं । छण्हमवत्त० खेत्तं ।। $ ५५६. तिरिक्ख० छब्बीसंपयडीणं तेरसपदवि० ओघं । सम्मत्त० अणंतगुणहाणि० छण्हमवत्त० खेत्तं । सम्म०-सम्मामि० अवहि० लोग० असंखे०भागो सव्वलोगो वा । पंचिंदियतिरिक्ख-पंचिं०तिरि०पज्ज० छब्बीसंपयडीणं तेरसपदवि० सम्म०सम्मामि० अवहि० लोग० असंखे०भागो सव्वलोगो वा । सम्म० अणंतगुणहाणिक इत्थि-पुरिस० छवडी० छण्हमवत्त० खेतं । एवं जोणिणी० । णवरि सम्मत्त० अणंत और चौदह राजूमेंसे कुछ कम आठ राजु प्रमाण क्षेत्रके स्पर्शन किया है। सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी अनन्तगुणहानिवालो का स्पर्शन क्षेत्रके समान है । तथा अवस्थित विभक्तिवालोंने लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण, चौदह राजूमेंसे कुछ कम आठ राजू प्रमाण और सर्वलोक प्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। अवक्तव्य विभक्तिवाला ने लोकके असख्यातवें भागप्रमाण और चौदह राजूमेंसे कुछ कम आठ राजू प्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। ५५५, आदेशसे नारकियामें छब्बीस प्रकृतियोंकी तेरह पद विभक्तिवालों और सम्यक्त्व तथा सम्यग्मिथ्यात्वकी अवस्थित विभक्तिवालेने कितने क्षेत्रका स्पर्शन किया है ? लोकके असंख्यातवें भागका और चौदह राजूमेंसे कुछ कम छह राजू प्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। सम्यक्त्वकी अनन्तगुणहानिवालो का तथा सम्यक्त्व, सम्यग्मिथ्यात्व और अनन्तानुबन्धी चतुष्ककी अवक्तव्य विभक्तिवालो का स्पर्शन क्षेत्र के समान है। पहली पृथिवीमें क्षेत्रके समान स्पर्शन है। दूसरीसे लेकर सातवीं पृथिवी तकके नारकियों में छब्बीस प्रकृतियों की तेरह पद विभक्तिवालों तथा सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी अवस्थित विभक्तिवालो का अपना अपना स्पर्शन कहना चाहिये । सम्यक्त्व, सम्यग्मिथ्यात्व और अनन्तानुबन्धीचतुष्ककी अवक्तव्य विभक्तिवालोंका स्पर्शन क्षेत्र के समान है। ५५६ सामान्य तिर्यञ्चों में छब्बीस प्रकृतियों की तेरह पद विभक्तिवालो का स्पर्शन ओघके समान है। सम्यक्त्वकी अनन्तगणहानिवालोंका तथा सम्यक्त्व, सम्यग्मिथ्यात्व और अनन्तानुबन्धीचतुष्ककी अवक्तव्य विभक्तिवालो का स्पर्शन क्षेत्रके समान है। सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी अवस्थित विभक्तिवालो ने लोकके असंख्यातवें भाग और सर्वलोक प्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है । पञ्चेन्द्रियतिर्यञ्च और पञ्चेन्द्रियतिर्यञ्चपर्याप्तको में छब्बीस प्रकृतियो की तेरह पद विभक्तिवालो ने और सम्यक्त्व तथा सम्यग्मिथ्यात्वकी अवस्थितविभक्तिवालों ने लोकके असंख्यातवें भाग और सर्वलोक प्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। सम्यक्त्वकी अनन्तगुणहानिवालो का तथा स्त्रीवेद और पुरुषवेदकी छह वृद्धिवालो का और सम्यक्त्व, सम्यग्मिथ्यात्व और अनन्तानुबन्धीचतुष्ककी अवक्तव्य विभक्तिवालो का स्पर्शन क्षेत्रके समान Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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