Book Title: Kasaypahudam Part 05
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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गा० २२] अणुभागविहत्तीए पोसणं
२३१ भागो। अज० सव्वलोगो वा । पंचिंदियतिरिक्खतियगि छब्बीसं पयडीणं जहण्णाजहण्णाणु० लोग० असंखे०भागो सव्वलोगो वा । णवरि अणंताणु०चउक्क० ज० खेतं । सम्मत्त०-सम्मामि० तिरिक्खोघं । णवरि जोणिणीसु सम्मत्त० जहण्णं णत्थि । पंचिं. तिरि० अपज्ज.-मणुसअपज्ज० छब्बीसं पयडीणं जहण्णाजहण्णाणुछ लोग० असंखे०भागो सव्वलोगो वा । सम्मत्त-सम्मामि० अज० उक्कस्सभंगो।
३६६. मणुसतियम्मि मिच्छत-अटक० जहण्णाजहण्णाणु० लोग० असंखे०भागो सव्वलोगो वा। सेसाणं पयडीणं ज० खेत्तं । अज० लोग० असंखे० भागो सव्वलोगो वा ।
३६७. देवेसु मिच्छत्त--सम्मत्त--बारसक०--णवणोक० जह० खेत्तं । अज० लोग. असंखे० भागो अह--णवचोदसभागा देसूणा । अणंताणु०चउक्क० ज० लोग० असंखे० भागो अहचोदसभागा देमृणा । अज. लोग० असंखे०भागो अह-णवचोदसभागा वा देसूणा । एवं भवण-वाण। णवरि सगपोसणं । सम्मत्त० जहण्णं णत्थि। जोदिसियदेवेसु छब्बीसं पयडीणं जहण्णाणु० लोग० असंखे०भागो अद्धह-अहचो० स्पर्शन किया है। पञ्चेन्द्रियतिर्यञ्च, पञ्चेन्द्रियतिर्यञ्चपर्याप्त और पञ्चेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिनी जीवों में छब्बीस प्रवृतियों की जघन्य और अजघन्य अनुभागविभक्तिवालोंने लोकके असंख्यातवें भाग और सर्व लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। इतना विशेष है कि अनन्तानुबन्धी चतुष्क की जघन्य अनुभागविभक्तिवालोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है। सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वका स्पर्शन सामान्य तिर्यञ्चों की तरह है। इतना विशेष है कि योनिनियों में सम्यक्त्व की जघन्य अनुभागविभक्ति नहीं है। पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्च अपर्याप्त और मनुष्य अपर्याप्तको में छब्बीस प्रकृतियो की जघन्य और अजघन्य अनुभागविभक्तिवालो ने लोकके असंख्यातवें भाग और सर्व लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्व की अजघन्य अनुभागविभक्तिवालो का स्पर्शन उत्कृष्ट अनुभागविभक्तिवालो की तरह है।
३६६. सामान्य मनुष्य, मनुष्य पर्याप्त और मनुष्यिनियों में मिथ्यात्व और आठ कषायो की जघन्य और अजघन्य अनुभागविभक्तिवालो ने लोकके असंख्यातवें भाग और सर्वलोक प्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। शेष प्रकृतियो की जघन्य अनुभागविभक्तिवालो का स्पर्शन क्षेत्र की तरह है। अजघन्य अनुभागविभक्तिवालो ने लोकके असंख्यातवें भाग और सर्व लोक प्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है।
३६७. देवों में मिथ्यात्व, सम्यक्त्व, बारह कषाय और नव नोकषायो की जघन्य अनुभागविभक्तिवालो का स्पर्शन क्षेत्रके समान है। अजघन्य अनुभागविभक्तिवालो ने लोकके असंख्यातवें भाग और चौदह भागो मेसे कुछ कम आठ और कुछ कम नौ भाग प्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। अनन्तानुबन्धीचतुष्ककी जघन्य अनुभागविभक्तिवालोंने लोकके असंख्यातवें भाग
और चौदह भागो मेसे कुछ कम आठ भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। अजघन्य अनभागविभक्तिवालो ने लोकके असंख्यातवें भाग और चौदह भागो मेंसे कुछ कम आठ और कुछ कम नौ भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। इसी प्रकार भवनवासी और व्यन्तरो म जानना चाहिए। इतना विशेष है कि उनमें अपना अपना स्पर्शन कहना चाहिए। उनमें सम्यक्त्व की जघन्य अनुभागविभक्ति नहीं है। ज्योतिष्क देवो में छब्बीस प्रकृतियों की जघन्य अनुभाग
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