Book Title: Kasaypahudam Part 05
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh

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Page 300
________________ गा० २२ ] अणुभागविहत्ती अप्पाबहु २७१ ० अप्पा हु परुविद तहा एत्थ वि परूवेयव्वं अविसेसादो। संपहि बंधप्पा बहुआ दो थोवयरविसेसाणुविद्धं संतकम्ममप्पा हुअमेवमणुगंतव्वं । तं जहा -- अनंताणुबंधिलोभजहण्णाणुभागस्सुवरि हस्सजहण्णाणुभागों अनंतगुणो, असण्णिपच्छायदणेर इयहदसमुप्पत्तियजहण्णाणुभागग्गहणादो । रदीए जहण्णाणुभागो अनंतगुणो । पुरिस० जहण्णाणुभागो अनंतगुणो । इत्थि० जहण्णाणुभागो अनंतगुणो । दुगंछा जहण्णाणुभागो अनंतगुण । भय० जह० अनंतगुणो । सोग ० जह अनंतगुणो । अरइ० जह० अनंतगुणो । णवंसयवेदस्स जह० अनंतगुणो । अपच्चक्खाणमाण० जह० अनंतगुणो । कोह० जहण्णाणुभागो विसेसाहिओ । माया० जह० विसे० । लोभ० जह० विसे० । पच्चक्खाणमाण० जहाणुभागो अनंतगुणो । कोह० जह० विसेसाहियो । माया० जह० विसे० । लोभ० जह० विसे० । माणसंजलण० जहणाणुभागो अनंतगुणो । कोहसंजल० जहण्णाणुभागो विसेसाहिओ । मायासंज० जह० विसे० । लोभसंज० जह० विसे० । मिच्छत्तजहएणाणुभागो अनंतगुणो । एवं चुणिमुत्तमस्सिदूण जहण्णाणुभागस्स अप्पाबहुअपरूवणं करिय संपहि उच्चारणमस्सिऊण परूवेमो | 1 जिस प्रकार अल्पबहुत्व कहा है उसी प्रकार यहां भी कहना चाहिये, क्योंकि दोनोंमें कोई अन्तर नहीं है । फिर भी अनुभागबंधके अल्पबहुत्वसे थोड़ी सी विशेषताको लिये हुए अनुभागसत्कर्म क अल्पबहुत्व जानना चाहिये । यथा - अनन्तानुबन्धी लोभके जघन्य अनुभाग के ऊपर हास्यका जघन्य अनुभाग अनन्तगुणा है, क्योंकि यहाँ असंज्ञी पञ्चेन्द्रिय से आकर उत्पन्न हुए नारकी के हतसमुत्पत्तिक जघन्य अनुभागका ग्रहण किया है। उससे रतिका जघन्य अनुभाग अनन्तगुणा है। उससे पुरुषवेदका जघन्य अनुभाग अनन्तगुणा है। उससे स्त्रीवेदका जघन्य अनुभाग अनन्तगुणा है । उससे जुगुप्साका जघन्य अनुभाग अनन्तगुणा है। उससे भयका जघन्य अनुभाग अनन्तगुणा है । उससे शोकका जघन्य अनुभाग अनन्तगुणा है । उससे अरतिका जघन्य अनुभाग अनन्तगुणा है। उससे नपुंसक वेदका जघन्य अनुभाग अनन्तगुणा है। उससे अप्रत्याख्यानावरण मानका जघन्य अनुभाग अनन्तगुणा है। उससे प्रत्याख्यानावरण क्रोधका जघन्य अनुभाग विशेष अधिक है। उससे अप्रत्याख्यानावरण माया का जघन्य अनुभाग विशेष अधिक है। उससे प्रत्याख्यानावरण लोभका जघन्य अनुभाग विशेष अधिक है। उससे प्रत्याख्यानावरण मानका जघन्य अनुभाग अनन्तगुणा है । उससे प्रत्याख्यानावरण क्रोधका जघन्य अनुभाग विशेष अधिक है। उससे प्रत्याख्यानावरण मायाका जघन्य अनुभाग विशेष अधिक है। उससे प्रत्याख्यानावरण लोभका जघन्य अनुभाग विशेष अधिक है। उससे संज्वलन मानका जघन्य अनुभाग अनन्तगुणा है। उससे संज्वलन क्रोधका जघन्य अनुभाग विशेष अधिक है। उससे संज्वलन मायाका जघन्य अनुभाग विशेष अधिक है। उससे संज्वलन लोभका जघन्य अनुभाग विशेष अधिक है। उससे मिथ्यात्व का जघन्य अनुभाग अनन्तगुणा है । इस प्रकार चूर्णिसूत्र के आश्रयसे जघन्य अनुभागके अल्पबहुत्वका कथन करके अब उच्चारणाका आश्रय लेकर कथन करते हैं । १ ता० प्रा० प्रत्योः तं कथं इति स्थाने तं जहा इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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