Book Title: Kasaypahudam Part 05
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
View full book text
________________
गा० २२ ]
अणुभागविहत्तीए भुजगारे भंगविचओ
२८७
भंगा तिरि । सम्मत्तभंगा णव । अनंताणु ० चक्क० सत्तावीसं । उवरि सत्तावीसं पयडीणं भंगा तिरिण० । सम्मामि० भंगा णत्थि । एवं जाणिदूण णेदव्वं जाव अणाहारि त्ति ।
देवों तेईस प्रकृतियों के तीन भङ्ग होते हैं, सम्यक्त्व प्रकृतिके नौ भङ्ग होते हैं और अनन्तानुबन्धी चतुष्कके सत्ताईस भङ्ग होते हैं । नवप्रैवेयकसे ऊपर सत्ताईस प्रकृतियोंके तीन भङ्ग होते हैं । सम्यग्मिथ्यात्वके भङ्ग नहीं होते। इस प्रकार जानकर अनाहारी पर्यन्त लेजाना चाहिए ।
/
विशेषार्थ - घसे अनन्तानुबन्धी चतुष्ककी भुजगार, अल्पतर और अवस्थितविभक्तिवाले जीव सदा पाये जाते हैं और अवक्तव्यविभक्तिवाले जीव विकल्पसे पाये जाते हैं अतः तीन भंग होते हैं । कदाचित् उक्त विभक्तिवाले जीवो के साथ एक जीव अवक्तव्यविभक्तिवाला होता है, कदाचित् उक्त विभक्तिवालों के साथ अनेक जीव अवक्तव्यविभक्तिवाले होते हैं। मूल भंगके साथ तीन भंग होते हैं । सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्व की अवस्थितविभक्तिवाले जीव सदा पाये जाते हैं और शेष विभक्तिवाले जीव विकल्पसे पाये जाते हैं, अतः नौ भंग होते हैं । अवस्थितविभक्तिवालों के साथ १ कदाचित् एक जीव अल्पतर विभक्तिवाला होता है, २ कदाचित् अनेक जीव अल्पतर विभक्तिवाले होते हैं, ३ कदाचित् एक जीव अवक्तव्यविभक्तिवाला होता है, ४ कदाचित् अनेक जी अवक्तव्य विभक्तिवाले होते हैं, ५ कदाचित् एक जीव अल्पतरवाला और एक जीव अवक्तव्य वाला होता है, ६ कदाचित् एक जीव अल्पतरवाला और अनेक जीव अवक्तव्यवाले होते हैं, ७ कदाचित् अनेक जीव अल्पतरवाले और एक जीव अवक्तव्यवाला होता है, ८ कदाचित् अनेक जीव अल्पतरवाले और अनेक जीव अवक्तव्यवाले होते हैं। मूल भंगके साथ ये नौ भंग होते हैं। आदेशसे नारकियोंमें छब्बीस प्रकृतियोंकी भुजगार और अवस्थितविभक्तिवाले तथा सम्यक्त्व और सम्यग्मध्यात्व की अवस्थितविभक्तिवाले नियमसे होते हैं शेष विभक्तिवाले विकल्पसे होते हैं । अत: बाईस प्रकृतियोंके तीन भंग हैं। बाईस प्रकृतियोंकी भुजगार और अवस्थित विभक्तिवालोंके साथ कदाचित् एक जीव अल्पतर विभाक्तवाला होता है, कदाचित् अनेक जीव अल्पतर विभक्तिवाले होते हैं। मूल भङ्गके साथ ये तीन भंग होते हैं। नरक में सम्यग्मिथ्यात्व प्रकृतिकी अल्पतर (विभक्ति नहीं हाती, अतः उसके भी तीन भंग होते हैं- सम्यग्मध्यात्वकी अवस्थित विभक्तिके साथ कदाचित् एक जीव अवक्तव्य विभक्तिवाला हाता है, कदाचित् अनेक जीव अवक्तव्य विभक्तिवाले होते हैं, मूल भंगके साथ ये तीन भङ्ग हाते हैं । सम्यक्त्व और अनन्तानुबन्धीक नौ भङ्ग हाते हैं । सम्यक्त्वकी अल्पतर और अवक्तव्य विभक्ति विकल्पसे हाती है, अत: अवस्थित विभक्तिकं साथ १ कदाचित् एकः जीव अल्पतरवाला हाता है, २ कदाचित् अनेक जीव अल्पतरवाले होते हैं इत्यादि, पूर्ववत् जानना । इसी तरह, अनन्तानुबन्धाकी भुजगार और अवस्थित विभक्तिवालोंके साथ शेष दो विभक्तिवालोंको मिलानेसे भी नौ भङ्ग हाते हैं । दूसरेसे लेकर सातवें नरक तक, पञ्चेन्द्रिय तिर्यश्व योनिनी तथा भवनत्रिकमे सम्यक्त्व प्रकृतिको अवस्थित विभक्तिवाले नियमसे होते हैं । अल्पतरवाले होते ही नहीं हैं और अवक्तव्यवाले विकल्प से होते हैं, इसलिए तीन ही भङ्ग होते हैं । पञ्च ेन्द्रिय तिर्यञ्च अपर्याप्तकों में सम्यक्त्व और सम्यग्मध्यात्वक अवस्थित विभक्तिवाले नियमसे होते हैं इसलिए भङ्ग नहीं है । शेष सब प्रकृतियोंकी भुजगार व अवस्थित विभक्तत्वाले नियमसे होते हैं इसलिये प्रत्येक प्रकृतिके तीन तीन भङ्ग हाते हैं। मनुष्य अपयाप्त सान्तर मार्गणा है अतः सभी प्रकृतियोंके सभी पद भजनीय हैं। और एक एक प्रकृति के तीन तीन पद होते हैं अतः प्रत्येक प्रकृतिके छब्बीस छब्बीस भङ्ग होते हैं । सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वका केवल एक अवस्थित पद ही होता है, अतः दो दो भङ्ग होते हैं— कदाचित् एक जीव अवस्थितवाला होता है, कदाचित् अनेक जीव अवस्थितवाले होते हैं। नत से
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org