Book Title: Kasaypahudam Part 05
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh

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Page 331
________________ ३०२ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [अणुभागविहत्ती ४ जाव अणाहारि त्ति । ५२२. जहण्णए पयदं । दुविहो जिद्द सो-ओघेण आदेसेण य । ओघेण मिच्छस-अढकसाय० तिराहं पदाणं जहण्णि. कस्स' ? अएणदरो जो मुहमेइंदियजहण्णाणुभागसंतकम्मिो तेण अणंतभागवड्डीए एगपक्खेवे वडिदूण पबद्धे जहणिया वडी । तम्मि चेव घादिदे जहणिया हाणी । एगदरत्थ अवहाणं । सम्मत्त० जहणिया हाणी कस्स ? अण्णदरो जो चरिमसमयअक्खीणदंसणमोहणीयो तस्स जहरिणया हाणी। जहएणमवहाणं कस्स ? चरिममणुभागखंडयोवत्तस्स । सम्मामि० जह. हाणी कस्स ? अण्णदरो जो दंसणमोहक्खवओ तेण दुचरिमे अणुभागखंढए हदे तस्स जहणिया हाणी। तस्सेव से काले जहण्णमवहाणं । अणंताणु०चउक्क० ज० वड्डी कस्स ? अण्णदरो जो विसंजोएदूण पुणो संजुज्जमाणओ तस्स तप्पाओग्गविसुद्धस्स विदियसमयसंजुत्तस्स जहणिया वड्डी । जहणिया हाणी कस्स ? अण्णदरो जो विसंजोएदूण अंतोमुहुत्तसंजुत्तो विस्संतो जाव सुहुमेइंदियजहण्णाणुभागसंतकम्मादो हेट्टा बंधदि ताव तेण सव्वत्थोवे अणुभागे घादिदे तस्स जहणिया हाणी। तस्सेव से काले जहण्णमवहाणं । लोभसंजलण. जह० वड्डी कस्स ? जो मुहुमेइंदियअणुभागसंत-- पर्यन्त ले जाना चाहिये। ५२२. प्रकृतमें जघन्यसे प्रयोजन है। निर्देश दो प्रकारका है-- ओघ और आदेश । ओघसे मिथ्यात्व और आठ कषायोंकी जघन्य वृद्धि, जघन्य हानि और जघन्य अवस्थान किसके होता है ? जघन्य अनुभागकी सत्तावाला जो सूक्ष्म एकेन्द्रिय जीव अनन्तभागवृद्धिमें एक . प्रक्षेपकको बढ़ाकर बन्ध करता है उसके जघन्य वृद्धि होती है। उसी प्रक्षेपकके घात किये जाने पर जघन्य हानि होती है। तथा दोनोंमेंसे किसी एक जगह जघन्य अवस्थान होता है । सम्यक्त्वकी जघन्य हानि किसके होती है ? दर्शनमोहका क्षय करनेवालेके अन्तिम समयमें सम्यक्त्व प्रकृतिकी जघन्य हानि होती है। जघन्य अवस्थान किसके होता है ? अन्तिम अनुभाग काण्डकका अपवर्तन करनेवालेके सम्यक्त्व प्रकृतिका जघन्य अवस्थान होता है। सम्यग्मिथ्यात्वकी जघन्य हानि किसके होती है ? दर्शनमोहके क्षपकके द्वारा द्विचरम अनुभाग काण्डकका घात किये जाने पर उसके जघन्य हानि होती है। उसीके अनन्तर समयमें जघन्य अवस्थान होता है। अनन्तानुबन्धीचतुष्ककी जघन्य वृद्धि किसके होती है ? अनन्तानुबन्धीका विसंयोजन करके पुन: उसका संयोजन करनेवाले तत्प्रायोग्य विशुद्ध परिणावाले जीवके संयोजनके दूसरे समयमें जघन्य वृद्धि होती है । जघन्य हानि किसके होती है ? जो विसंयोजन करके अन्तमुहूते बाद संयोजन कर लेने पर विश्राम करता हुआ जब तक सूक्ष्म एकन्द्रि जघन्य अनुभाग सत्कर्मसे नीचे बंध करता है तब तक उसके द्वारा सबसे थाड़े अनुभागका धात किये जाने पर उसके जघन्य हानि होती है। तथा उसीके अनन्तर समयमें जघन्य अवस्थान होता है। लोभसंज्वलनकी जघन्य वृद्धि किसके होती है ? जघन्य अनुभागकी सत्ता वाले जिस सूक्ष्म एकेन्द्रिय जीवके सबसे जघन्य अनन्तवें भागप्रमाण अनुभागकी वृद्धि होती १. ता० प्रतौ पदाणं जहरिण • [ वड्ढी ] कस्स, अ० प्रतौ पदाणं जहरण कस्स इति पाठः । दियके Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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