Book Title: Kasaypahudam Part 05
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
View full book text
________________
गा० २२] अणुभागविहत्तीए पदणिक्खेवे सामित्तं
३०१ सोहम्मादि जाव सहस्सारे ति । एवं विदियादि जाव सत्तमि त्ति । गवरि सम्मत्त० उक्क० हाणी णत्थि । एवं पंचिदियतिरिक्खजोणिणी-भवण०-वाण०-जोदिसिए त्ति ।
५२०. पंचिंदियतिरिक्खअपज्ज. छब्बीसं पयडीणमुक्क० बड़ी कस्स ? जो तप्पाओग्गजहण्णाणुभागसंतकम्मिओ तेण तप्पाओग्गउक्कस्साणुभागे पबद्धे तस्स उक्कस्सिया वड्डी । उक्क हाणी कस्स ? अण्णदरो जो उक्कस्साणुभागसंतकम्मिो उक्कस्साणुभागखंडयमागाएदूण पुणो पंचिंदियतिरिक्वअपज्जत्तएसु उववण्णो तेण उक्कस्साणुभागखंडए घादिदे तस्स उक्कस्सिया हाणी। तस्सेव से काले उक्कस्समवहाणं । एवं मणुस०अपज्ज०।
___$ ५२१. आणदादि जाव णवगेवज्जा त्ति छब्बीसं पयडीणमुक्क० हाणी कस्स ? अण्णदरो जो पढमसम्मत्ताहिमुहो तेण पढमे अणुभागखंडए हदे तस्स उक्क. हाणी। तस्सेव से काले उक्कस्समवहाणं। णवरि अणंताणु०४ उक्क० वड्डी कस्स ? अण्ण. विसंजोएदूण संजुत्तस्स तप्पाओग्गउक्कस्ससंकिलेसं गदस्स तस्स उक्क० वड्डी । सम्मत्त० देवोघं । अणुदिसादि जाव सव्वदृसिद्धि त्ति छब्बीसं पयडीणमुक्क० हाणी कस्स ? अण्णादरो जो अणंताणुबंधिचउक्क विसंजोएमाणओ तेण पढमे अणुभागखंडए हदे तस्स उक्क० हाणी। तस्सव से काले उकस्समवहाणं । सम्मत्त० देवोघं । एवं जाणिदूण णेदव्वं जानना चाहिए । इसी प्रकार दूसरीसे लेकर सातवीं पृथिवी तकके नारकियोंमें जानना चाहिए। इतना विशेष है कि वहाँ सम्यक्त्वकी उत्कृष्ट हानि नहीं होती। इसी प्रकार पञ्चेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिनी, भवनवासी, व्यन्तर और ज्योतिषी देवोंमें जानना चाहिए।
६५२०. पञ्चेन्द्रियतिर्यञ्चअपर्याप्तकोंमें छब्बीस प्रकृतियोंकी उत्कृष्ट वृद्धि किसके होती है ? जिसके अपने योग्य जघन्य अनुभागकी सत्ता है उसके अपने योग्य उत्कृष्ट अनुभागका बन्ध करने पर उत्कृष्ट वृद्धि होती है। उत्कृष्ट हानि किसके होती है ? जिसके उत्कृष्ट अनुभागकी सत्ता है वह उत्कृष्ट अनुभागकाण्डकको ग्रहण कर पुन: पञ्चेन्द्रियतिर्यञ्च अपर्याप्तकोंमें उत्पन्न हुआ। वहाँ उसके द्वारा उत्कृष्ट अनुभागकाण्डकका घात किये जाने पर उसके उत्कृष्ट हानि होती है। तथा उसीके अनन्तर समयमें उत्कृष्ट अवस्थान होता है। इसी प्रकार मनुष्य अपयाप्तकोंमें जानना चाहिए।
६५२१. आनतसे लेकर नववेयक तकके देवोंमें छब्बीस प्रकृतियोंकी उत्कृष्ट हानि किसके होती है ? जो जीव प्रथम सम्यक्त्वके अभिमुख है उसके द्वारा प्रथम अनुभाग काण्डकका घात किये जाने पर उसके उत्कृष्ट हानि होती है । तथा उसीके अनन्तर समयमें उत्कृष्ट अवस्थान होता है। इतना विशेष है कि अनन्तानुबन्धीचतुष्ककी उत्कृष्ट वृद्धि किसके होती है ? अनन्तानुबन्धी कषायका विसंयोजन करके जो जीव पुनः उनसे संयुक्त होकर तत्प्रायोग्य उत्कृष्ट संक्लेशको प्राप्त होता है उस जीवके उत्कृष्ट वृद्धि होती है। सम्यक्त्व प्रकृतिका भङ्ग सामान्य देवोंके समान है। अनुदिशसे लेकर सवार्थसिद्धि तकके देवोंमें छब्बीस प्रकृतियोंकी उत्कृष्ट हानि किसके होती है ? अनन्तानुबन्धीचतुष्कका विसंयोजन करनेवाला जो जीव प्रथम अनुभाग काण्डकका घात करता है उसके उत्कृष्ट हानि होती है। तथा उसीके अनन्तर समयमें उत्कृष्ट अवस्थान होता है। सम्यक्त्वका भङ्ग सामान्य देवोंके समान है। इस प्रकार जानकर अनाहारी
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org