Book Title: Kasaypahudam Part 05
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh

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Page 332
________________ गा०२२] अणुभागविहत्तीए पदणिक्खेवे सामित्तं ३०३ कम्मिओ सव्वजहण्णअणंतभागेण वडिदो तस्स जहणिया वड्डी। ज० हाणी कस्स ? अण्णदरस्स खवयस्स चरिमसमयसकसायस्स । जहण्णमवहाणं कस्स ? अण्णदरस्स खवयस्स चरिमे अणुभागखंडए वट्टमाणस्स । इत्थि-णqसयदाणं ज० वड्डी कस्स ? मुहुमेइंदियजहण्णाणुभागसंतकम्मियस्स तप्पाओग्गजहण्णअणंतभागवड्डीए वडिदस्स जहणिया वड्डी। जह० हाणी कस्स ? इत्थि-णqसयवेदोदएणुवहिदक्खवएणं चरिमे अणुभागखंडए हदे तस्स जहणिया हाणी। जहण्णमवहाणं कस्स ? तेणेव दुचरिमे अणुभागखंडए हदे तस्स जहएणमवहाणं। पुरिस० तिएहं संजलणाणं जहण्णवड्डीए मिच्छत्तभंगो। जहरिणया हाणी कस्स ? अण्णदरस्स खवयस्स चरिमसमयअणिल्लेविदस्स तस्स जह० हाणी। जहण्णमवहाणं कस्स ? अण्णद० खवगस्स चरिमे अणुभागस्स खंडए वट्टमाणस्प्त । छएणोक० जहएणवड्डीए मिच्छत्तभंगो । जह० हाणी कस्स ? खवगेण दुचरिमे अणुभागरखंडए हदे तस्स जहणिया हाणी। तस्सेव से काले जहण्णमवहाणं । एवं तिण्हं मणुस्साणं । णवरि मणुसपज्जत्तएम इत्थि० छण्णोकसायाणं भंगो । मणुसिणीसु पुरिस-णस० छण्णोकसायभंगो। १५२३. आदेसेण णेरइएमु मिच्छत्त--बारसक०-णवणोक० जहरिणया वड्डी है उसके जघन्य वृद्धि होती है। जघन्य हानि किसके होती है ? क्षपकके सकषाय अवस्थाके अन्तिम समयमें संज्वलन लोभकी जघन्य हानि होती है। जघन्य अवस्थान किसके होता है ? संज्वलन लोभके अन्तिम अनुभाग काण्डकमें वर्तमान अन्यतर क्षपकके जघन्य अवस्थान होता है। स्त्री वेद और नपुंसकवेदकी जधन्य वृद्धि किसके होती है ? जघन्य अनुभागकी सत्तावाले सूक्ष्म एकेन्द्रियके तत्प्रायोग्य जघन्य अनन्तभागवृद्धिके होने पर जघन्य वृद्धि होती है। जघन्य हानि किसके होती है ? स्त्रीवेद और नपुंसकरेदके उदयसे श्रेणिपर चढ़नेवाले क्षपकके द्वारा अन्तिम अनुभाग काण्डकका घात किये जाने पर स्त्रीवेद और नपुंसकवेदकी जघन्य हानि होती है। जघन्य अवस्थान किसके होता है ? उसी क्षपकके द्वारा द्विचरम अनुभाग काण्डकका घात किये जाने पर उसके जघन्य अवस्थान होता है। पुरुषवेद और लोभके सिवा शेष तीन संज्वलन कषायोंकी जघन्य वृद्धिका भङ्ग मिथ्यात्वके समान है। जघन्य हानि किसके होती है ? अन्तिम समयवर्ती अनिर्लेपित अन्यतर क्षपकके इन प्रकृतियोंकी जघन्य हानि होती है। जघन्य अवस्थान किसके होता है ? अन्तिम अनुभाग काण्डकमें वर्तमान क्षपकके जघन्य अवस्थान होता है। छह नोकषायों की जघन्य वृद्धिका भंग मिथ्यात्वके समान है। जघन्य हानि किसके होती है ? क्षपक के द्वारा द्विचरम अनुभाग काण्डकका घात किये जानेपर उसके छह नोकषायो की जघन्य हानि होती है । तथा उसी के अनन्तर समय में जघन्य अवस्थान होता है । इसी प्रकार तीनों प्रकार के मनुष्यों में जानना चाहिये। इतना विशेष है कि मनुष्य पर्याप्तकोंमें स्त्रीवेद का भङ्ग छह नोकषायों के समान है और मनुष्यिनियो में पुरुषवेद तथा नपुंसकवेदका भङ्ग छह नोकषायो के समान है। $ ५२३. आदेशसे नारकियोंमें मिथ्यात्व, बारह काषाय और नव नोकषायोंकी जघन्य १. ता० प्रतौ इत्थिणंवुसयवेदोदएणुवडिढदक्खवएण इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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