Book Title: Kasaypahudam Part 05
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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गा० २२] अणुभागविहत्तीए भुजगारे पोसणं
२९१ असंखे०भागे । एवं सव्वणेरइय-सव्वपंचिंदियतिरिक्ख-सव्वमणुस्स-सव्वदेवे ति । एवं जाणिदण णेदव्वं जाव अणाहारि ति ।
६४६७. पोसणाणु० दुविहो णिद्दे सो-अोघेण आदेसेण य । श्रोघेण छब्बीसं पयडीणं तिषिण पदवि० खेत्तभंगो । अणंताणु०चउक्क० अवतव्व० सम्म० सम्मामि० अवतव्य० लोग० असंखे०भागो अहचोदस० देसूणा । सम्म-सम्मामि० अप्पद० खेत्तं । अवहि० लोग० असंखे भागो अढचोदस० देसूणा सव्वलोगो वा।
४६८. आदेसेण णेरइएमु छब्बीसं पयडीणं तिएिणपदवि० सम्मत्त०-सम्मामि० अवहि० लोग० असंखे०भागो छचोदस० देसूणा । सम्म० अप्प० छएहमवत्तव्व० खेत्तं । पढमपुढवि० खेतं । विदियादि जाव सत्तमि ति छब्बीसं पयडीणं तिएिणपदवि० सम्म०-सम्मामि० अवहि० सगपोसणं । छएहमवत्तव्व० खेत्तं ।
४६६. तिरिक्ख० छब्बीसं पयडीणमोघं । णवरि अणंताणु०चउक्क० अवतव० खेत्तं । सम्म० अप्पद०-अवत्तव्व० सम्मामि० अवत्त० खेत्तं । दोण्हमवहि लो० असंखे भागो सव्वलोगो वा। पंचिंदियतिरिक्वतियम्मि छब्बीसं पयडीणं
क्षेत्र लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण है। इसी प्रकार सब नारकी, सब पंचेन्द्रियतियच, सब मनुष्य, और सब देवोंमें जानना चाहिए। इस प्रकार जानकर अनाहारी पर्यन्त ले जाना चाहिए ।
४९७. स्पर्शनानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है- ओघ और आदेश। ओघसे छब्बीस प्रकृतियों की तीन विभक्तिवालो का स्पर्शन क्षेत्रके समान है। अनन्तानुबन्धीचतुष्ककी अवक्तव्यविभक्तिवाले जीवो ने और सम्यक्व तथा सम्यग्मिथ्यात्वकी अवक्तव्यविभक्तिवाले जीवो ने लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण और चौदह राजुमेंसे कुछ कम आठ भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी अल्पतर विभक्तिवाले जीवों का स्पर्शन क्षेत्रके समान है । अवस्थितविभक्तिवाले जीवो ने लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण और चौदह राजुमेंसे कुछ कम आठ भागप्रमाण और सर्व लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है।
४९८. श्रादेशसे नारकियोंमें छब्बीस प्रकृतियोंकी तीन विभक्तिवाले जीवोंने और सम्यक्त्व तथा सम्यग्मिथ्यात्वकी अवस्थितविभक्तिवाले जीवो ने लोकके असंख्तातवें भागप्रमाण और चौदह राजुमेंसे कुछ कम छह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है । सम्यक्त्वकी अल्पतरविभक्ति वालों का तथा सम्यक्त्व, सम्यग्मिथ्यात्व और अनन्तानुबन्धीचतुष्क इन छह प्रकृतियो की प्रवक्तव्यविभक्तिवालो का सर्शन क्षेत्रके समान है । पहली पृथिवीमें स्पर्शन क्षेत्रके समान है। दूसरीसे लेकर सातवीं पृथिवी तकके नारकियों में छब्बीस प्रकृतियो की तीन विभक्तिवालो का और सम्यक्त्व तथा सम्यग्मिथ्यात्वकी अवस्थित विभक्तिवालो का अपना अपना स्पर्शन जानना चाहिए। छ प्रकृतियों की प्रवक्तव्यविभक्तिवालो का स्पर्शन क्षेत्रके समान है।
४९९, सामान्य तिर्यंचो में छब्बीस प्रकृतियो का स्पर्शन ओषकी तरह है। इतना विशेष है कि अनन्तानुबन्धीचतुष्ककी अवक्तव्यविभक्तिवालो का स्पर्शन क्षेत्रके समान है। सम्यक्त्वकी अल्पतर और अवक्तव्यविभक्तिवालो का तथा सम्यग्मिथ्यात्वकी अवक्तव्यविभक्तिवालो का स्पर्शन क्षेत्रके समान है। सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी अवस्थितिविभक्तिवाले जीवों ने
१. श्रा० प्रती सम्मामि० अप्पद० खेत्त । अवढि० इति पाठः ।
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