Book Title: Kasaypahudam Part 05
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh

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Page 297
________________ २६८ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [ अणुभागविहत्ती ४ . * मायाए जहएणाणुभागो विसेसाहिओ। ४५४. सुगमं । * लोभस्स जहएणाणुभागो विसेसाहित्रो। ४५५. सुगमं । * पच्चक्खाणमाणस्स जहएणाणुभागो अणंतगुणो। ४५६. कुदो ? देससंजमघादिअपच्चक्खाणावरणाणुभागादो पञ्चक्रवाणावरणाणुभागस्स अणंतगुणत्ताभावे तस्स देससंजमादो अणंतगुणसयलसंजमघाइताणुववत्तीदो । ® कोधस्स जहरणाणुभागो विसेसाहियो । { ४५७. केत्तियमेत्तेण ? अणंतफद्दयमेतेण । * मायाए जहण्णाणुभागो विसेसाहियो । ४५८. सुगमं । * लोभस्स जहएणाणुभागो विसेसाहिओ। ४५६. सुगमं । * मिच्छत्तस्स जहण्णाणुभागो विसेसाहियो । ४६०. पञ्चक्खाणावरणाणुभागादो मिच्छत्ताणुभागेण समाणेण होदव्वं, सव्व * उससे अप्रत्याख्यानावरण मायाका जघन्य अनुभाग विशेष अधिक है। ६४५४. यह सूत्र सुगम है । * उससे अप्रत्याख्यानावरण लोभका जघन्य अनुभाग विशेष अधिक है। ६४५५. यह सूत्र सुगम है। * उससे प्रत्याख्यानावरण मानका जघन्य अनुभाग अनन्तगुणा है । ६४५६. क्योकि देशसंयमके घाती अप्रत्याख्यानावरण कषायके अनुभागसे प्रत्याख्यानावरण कषायका अनुभाग यदि अनन्तगुणा न हो तो वह देशसंयमसे अनन्तगुणे सकलसंयमका घाती नहीं हो सकता है। * उससे प्रत्याख्यानावरण क्रोधका जघन्य अनुभाग विशेष अधिक है। ४५७ शंका-कितना अधिक है ? समाधान-अनन्त स्पर्धक मात्र अधिक है। * उससे प्रत्याख्यानावरण मायाका जघन्य अनुभाग विशेष अधिक है। $ ४५८. यह सूत्र सुगम है। * उससे प्रत्याख्यानावरण लोभका जघन्य अनुभाग विशेष अधिक है। ४.९. यह सूत्र सुगम है। * उससे मिथ्यात्वका जघन्य अनुभाग अनन्तगुणा है। ६४६०. शंका-मिथ्यात्वका अनुभाग प्रत्याख्यानावरणके अनुभागके समान होना चाहिए, wwwwwwwwwwwww wwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwxx १. ता. प्रा. प्रत्योः अणंतफयमेरोण इति स्थाने पयडिविसेसेण इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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