Book Title: Kasaypahudam Part 05
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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गा० २२ ]
अणुभागविहत्तीए अंतरं खीणत्तविरोहादो।
अणंताणुबंधीणं जहणणाणुभागसंतकम्मियंतरं केविचरं कालादो होदि ?
$ ४०६. सुगम। * जहणणेण एगसमत्रो। ४६७. सुगमं । * उक्कस्सेण असंखेज्जा लोगा।
४०८. कुदो ? संजुज्जमाणपरिणामाणमसंखे०लोगपमाणत्तादो । ण च सव्वेहि परिणामेहि संजुजंतस्स जहण्णाणुभागो होदि, सव्व विसुद्धपरिणामं मोत्तूण अण्णत्थ तदणुवलंभादो।
* इत्थि-णवुसयवेदजहण्णाणुभागसंतकम्मियाणमंतरं केवचिरं कालादो होदि ?
४०६. सुगमं । ॐ जहणणेण एगसमत्रो। ४१०. सुगमं । & उकस्सेण संखेजाणि वस्साणि ।
समाधान-नहीं, क्योंकि वे पुनः उत्पन्न स्वभाववाली हैं अत: उन्हें क्षीण मानने में विरोध प्राता है।
ॐ अनन्तानुबन्धी कायोंके जघन्य अनुभागसत्कर्मवालोंका अन्तर काल कितना है ?
४.६. यह सूत्र सुगम है। * जघन्य अन्तर एक समय है । ६४.७. यह सूत्र सुगम है। * उत्कृष्ट अन्तर असंख्यात लोकप्रमाण है।
४०८. क्योंकि अनन्तानबन्धी के संयोजनके कारणभूत परिणाम असंख्यात लोक प्रमाण हैं। और सभी परिणामोंसे संयुक्त होनेवालोंके अनन्तानुबन्धीका जघन्य अनुभाग नहीं होता, क्यो कि सर्वविशुद्ध परिणामको छोड़कर अन्यत्र वह नहीं पाया जाता है।
* स्त्रीवेद और नपुसकवेदके जघन्य अनुभागसत्कर्मवालोंका अन्तरकाल कितना है।
३४०९. यह सूत्र सुगम है। * जघन्य अन्तर एक समय है। $ ४१०. यह सूत्र सुगम है। * उत्कृष्ट अन्तर संख्यात वर्ष है ।
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