Book Title: Kasaypahudam Part 05
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [अणुभागविहत्ती ४ मिच्छत्तजहण्णफद्दयादो उवरिमणंताणि फहयाणि गंतूणाणताणुबंधीणं जहण्णाणुभागहाणस्स फद्दयरयणा परिसमप्पदि। कुदो एवं णव्वदे? उवरिमादेसप्पाबहुअसुत्तादो । सम्मामिच्छत्तउक्कस्साणुभांगो पुण मिच्छत्तजहण्णफद्दयाणुभागादो अणंतगुणहीणो; तत्तो हेहिमउव्वंकावहाणादो । सम्मामिच्छत्तजहण्णाणुभागो पुणो सगुकस्साणुभागादो अणंतगुणहीणो, संखेजेसु अणंतगुणहाणिकंडएसु पदिदेसु पत्तजहण्णभावादो'। तदो सम्मामिच्छत्तजहण्णाणुभागादो अणंताणुबंधिमाणजहण्णाणुभागो अणंतगुणो ति सिद्धं ।
8 कोधस्स जहरणाणुभागो विसेसाहियो । $ ४४३. केत्तियमेत्तेण ? अणंतफदयमेत्तेण । सेसं सुगमं ।
मायाए जहएणणुभागो विसेसाहियो । ४४४. केत्तियमेत्तो विसेसो ? अणंतफद्दयमेत्तो। ॐ लोभस्स जहएणो अणुभागो विसेसाहियो ।
६४४५. केत्तियमेत्तो विसेसो ? अणंतफद्दयमेत्तो । कदो ? साभावियादो। स्थानके स्पर्धकोंकी रचना मिथ्यात्वके जघन्य स्पर्धकसे ऊपर अनन्त स्पर्धक जाकर समाप्त होती है।
शंका-यह किस प्रमाणसे जाना ? समाधान-आगे आदेश की अपेक्षा अल्पबहुत्वका प्रतिपादन करनेवाले सूत्रसे जाना।
सम्यग्मिथ्यात्वका उत्कृष्ट अनुभाग तो मिथ्यात्वके जघन्य अनुभागस्पर्धकसे अनन्तगुणा हीन है, क्योंकि वह उससे अधस्तन उर्वमें अवस्थित है। तथा सम्यग्मिथ्यात्वका जघन्य अनुभाग अपने उत्कृष्ट अनुभागसे अनन्तगुणा हीन है, क्योंकि संख्यात अनन्तगुणहानि काण्डकों के होनेपर उसे जघन्यपना प्राप्त होता है। अर्थात् उत्कृष्ट अनुभागमें जब संख्यात अनन्तगुण हानि काण्डक होते है तब वह उत्कृष्ट अनुभाग जघन्यपनेको प्राप्त होता है अत: उससे वह अनन्तगुण हीन है। अत: सम्यग्मिथ्यात्वके जघन्य अनुभागसे अनन्तानुबन्धी मानका जघन्य अनुभाग अनन्त गुणा है यह सिद्ध हुआ।
* उससे अनन्तानुवन्धी क्रोधका जघन्य अनुभाग विशेष अधिक है।
४४३. शंका-अनन्तानुबन्धी मानके जघन्य अनुभागसे अनन्तानुबन्धी क्रोधका जघन्य अनुभाग कितना अधिक है ?
समाधान-अनन्त स्पर्धकमात्र अधिक है। शेष सुगम है। * उससे अनन्तानुबन्धि मायाका जघन्य अनुभाग विशेष अधिक है। $ ४४१. शंका-कितना अधिक है। समाधान-अनन्त स्पर्धकमात्र अधिक है। * लोभका जघन्य अनुभाग विशेष अधिक है। $ ४४५. शंका-कितना विशेष अधिक है ? समाधान-अनन्त स्पर्धकमात्र अधिक है ? क्योंकि ऐसा होना स्वाभाविक है। १. प्रा० प्रतौ पत्तजहण्णामावादो इति पाठः ।
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