Book Title: Kasaypahudam Part 05
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [अणुभागविहत्ती ४ ४११. कुदो ? इत्थि-णqसयवेदोदएण खवगसेढिमारुहंताणं वासपुधत्तंतरुवलंभादो।
ॐ तिसंजलण-पुरिसवेदाणं जहएणाणुभागसंतकम्मियाणमंतर केवचिरं कालादो होदि?
४१२. सुगम । * जहएणेण एगसमझो।
४१३. सुगमं । * उक्कस्सेण वस्सं सादिरेयं ।
६४१४. पुरिसवेदस्स ताव उच्चदे । तं जहा–पुरिसवेदोदएण खवगसेढिं चढिय तस्स जहण्णाणुभागसंतकम्म काऊण छम्मासमंतरिय पुणो इत्थिवेदेण खवगसेढिं चढिय छम्मासमंतरिय पुणो णqसयवेदोदएण खवगसेटिं चढावेदव्यो । एवं संखेजेसु वारेसु गदेस पच्छा पुरिसवेदोदएण खवगसेटिं चढिय तस्स जहण्णाणुभागसंतकम्मे कदे सादिरेगेगवस्समेत्तमुक्कस्संतरं होदि । संखेज्जोणि वस्साणि किण्णं होंति ? ण, सव्वेसिमंतराणं छम्मासपमाणत्ताभावादो। सव्वाणि अणंताणि छम्मासपमाणाणि ण होति त्ति कुदो णव्वदे ? वासं सादिरेयमंतरमिदि सुत्तणि सादो। एवं तिहं संजलणाणं
४११. क्यो कि स्त्री वेद तथा नपुंसकोदके उदयसे क्षपकश्रेणी पर चढ़नेवालों का अन्तर वर्षपृथक्त्व पाया जाता है।
* तीन संज्वलन और पुरुषवेदके जघन्य अनुभागसत्कर्मवालोंका अन्तर काल कितना है ?
६४१२. यह सूत्र सुगम है। * जघन्य अन्तर एक समय है। ६ ४१३. यह सूत्र सुगम है। * उत्कृष्ट अन्तर कुछ अधिक एक वर्ष है।
४१४. पहले पुरुषदका अन्तर कहते हैं, जो इस प्रकार है-पुरुषवेदके उदयसे क्षपक श्रेणि पर चढ़कर और उसका जघन्य अनुभागसत्कर्म करके क्षपकणिका छह मासका अन्तर दिया पुनः स्त्रीवेदके उदयसे क्षयकोणि पर चढ़कर छह मासका अन्तर दिया पुन: नपुंसकवेदके उदयसे श्रेणिपर चढ़ाना चाहिए। इस प्रकार संख्यात वार होनेपर पीछे पुरुषवेदके उदयसे क्षपक श्रोणिपर चढ़कर पुरुषवेदका जघन्य अनुभागसत्कर्म होने पर पुरुषवेदके जघन्य अनुभागका उत्कृष्ट अन्तर कुछ अधिक एक वर्ष होता है।
शंका-संख्यात वर्ष अन्तर क्यों नहीं होता ? समाधान-नहीं, क्योंकि सभी अन्तरोंका प्रमाण छः मास नहीं है। शंका-सभी अन्तरोंका प्रमाण छः मास नहीं है यह कैसे जाना ?
१. ता. प्रती बस्ससहस्साणि किरण इति पाठः।
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