Book Title: Kasaypahudam Part 05
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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जयधवलास हिदे कसायपाहुडे
* जहण्णाणुभागकम्मंसियंतरं पापाजीवेहि । $ ४०१. सुगममेदं अहियार संभालणमुत्तत्तादो | * मिच्छत्त - श्रट्ठकसायाणं एत्थ अंतरं । $ ४०२. कुदो ? आतियादो ।
8 सम्मत्त - सम्मामिच्छत्त-लोभसंजल- छुणोकसायाणं जहण्णाणुभाग कम्मं सियाणमंतरं केवचिरं कालादो होदि ?
९४०३. सुगमं ।
२४४
* जहरणेण एगसमचो ।
$ ४०४. सुगमं ।
* उक्कस्सेण छम्मासा |
९४०५. खवगसेढीए एदासि पयडीणं जहण्णाणुभागसमुप्पत्तीदो । का खवगसेढी णाम ? कम्मखवणपरिणामपंती । जदि एवं तो अनंताणुबंधिचक्क० विसंजोयणपरिणामपंतीए वि खवगसेढी सण्णा पावदे ? ण, तेसिं पुणरूप्पज्जमाण सहावाणं
है और उसका अन्तरकाल भी इतना ही बतलाया है । नत से लेकर सर्वार्थसिद्धि तक छब्बीस प्रकृतियों का उत्कृष्ट तथा अनुत्कृष्ट अनुभाग और सम्यक्त्व तथा सम्यग्मिध्यात्वका उत्कृष्ट अनुभाग सदा पाया जाता है, अतः अन्तर नहीं है । सम्यक्त्व के अनुत्कृष्ट अनुभागका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर वर्षपृथक्त्व है जो कि वहां उत्पन्न होनेवाले कृतकृत्यवेदक सम्यग्मिदृष्टियो' की अपेक्षा जानना, क्यों कि उन्हीं के सम्यक्त्वका अनत्कृष्ट अनुभाग होता है । इतना विशेष है कि सर्वार्थसिद्धिमें यह अन्तरकाल पल्य के असंख्यातवें भागप्रमाण है ।
* नाना जीवोकी अपेक्षा जघन्य अनुभागसत्कर्मवालोंका अन्तर कहते हैं । ४०१. यह सूत्र सुगम है, क्योंकि इसमें अधिकारको सम्भाला गया है ।
* मिथ्यात्व और आठ कषायोंके जघन्य अनुभाग सत्कर्मवालोंका अन्तर नहीं है | $ ४०२. क्योंकि इनका प्रमाण अनन्त है ।
[ अणुभागविहत्ती ४
* सम्यक्त्व, सम्यग्मिथ्यात्व, संज्वलन लोभ, और छ नोकपायोंके जघन्य अनुभागसत्कर्मवालोंका अन्तरकाल कितना है ?
९४०३. यह सूत्र सुगम है ।
* जघन्य अन्तर एक समय है । ४०४. यह सूत्र सुगम है ।
* उत्कृष्ट अन्तर छह मास है ?
$ ४०५. क्योकि इन प्रकृतियों का जघन्य अनुभाग क्षपकश्रेणी में उत्पन्न होता है । शंका- क्षपकश्रेणी किसे कहते हैं ?
समाधान-कर्म के क्षपणके कारणभूत परिणामों की पंक्तिको क्षपकश्रेणी कहते हैं । शंका- यदि क्षपकश्रेणीका यह लक्षण है तो अनन्तानुबन्धी चतुष्कका विसंयोजन करनेपरिणामो की पंक्तिको भी क्षपकश्रेणी नाम प्राप्त होता है ?
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