Book Title: Kasaypahudam Part 05
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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गा० २२ ] अनुभागविहत्तीए सण्णियासो
२४९ भागो । अणुद्दिसादि जाव सव्व दृसिद्धि त्ति मिच्छत्त-बारसक०-णवणोक० ज० अज० पत्थि अंतरं। सम्मत्त-अणंताणु०चउक्क. जहण्णाणु० ज० एगस०, उक्क० वासपुधत्तं । सव्वहे पलिदो० संखे०भागो । अजह० गत्थि अंतरं । एवं जाणिदूण णेदव्वं जाव अणाहारि ति।
४१८. सण्णियासो दुविहो—जहण्णओ उक्कस्सओ चेदि। उक्कस्से पयदं। दुविहो णि सो-ओघेण आदेसेण य। ओघेण मिच्छत्तस्स जो उक्कस्साणुभागविहत्तिओ सो सम्मत्त-सम्मामिच्छत्ताणं सिया विहत्तिओ सिया अविहत्तिओ। जदि विहत्तिो णियमा उकस्सवित्तिओ। सोलसक०--णवणोक० णियमा विहत्तिओ। तं तु छटाणपदिदो। एवं सोलसक०--णवणोकसायाणं। सम्मत्त० उक्कस्साणुभागस्स जो विहत्तिओ सो सम्मामिच्छत्तस्स णियमा उक्कस्सविहत्तिओ। मिच्छत्त-बारसक०--णवणोक० णिय०
उत्कृष्ट अन्तर असंख्यात लोक है। अजघन्य अनुभागका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर पल्यके असंख्यातवें भाग प्रमाण है। अनुदिशसे लेकर सर्वार्थसिद्धि तकके देवोंमें मिथ्यात्व, बारह कषाय और नव नोकषायोंके जघन्य और अजघन्य अनुभागका अन्तर नहीं है। सम्यक्त्व और अनन्तानुबन्धीचतुष्कके जघन्य अनुभागका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर वर्षपृथक्त्वप्रमाण है। सर्वार्थसिद्धिमें इनका उत्कृष्ट अन्तर पल्यके संख्यातवें भागप्रमाण है। अजघन्य अनुभागका अन्तर नहीं है। इस प्रकार जानकर अनाहारी पर्यन्त लेजाना चाहिये।
विशेषार्थ-जघन्य अनुभागसत्कर्मका अन्तर जिस प्रकार चूर्णिसूत्रोंमें कहा है वैसे ही ओघसे और आदेशसे भी जानना चाहिए । श्रादेशसे कहीं कहीं कुछ विशेषता है, जैसे तिर्यञ्चयोनिनियोंमें और मनुष्य अपर्याप्तकोंमे छब्बीस प्रकृतियोंके जघन्य अनुभागसत्कर्मका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर असंख्यात लोक कहा है सो इन प्रकृतियोंका जघन अनुभाग इन पर्यायोंमे मरकर जन्म लेनेवाले हतसमुत्पत्तिककर्मा यथायोग्य एकेन्द्रियादिक जीवोंके होता है, उन्हींकी उत्पत्तिकी अपेक्षासे यह अन्तर काल कहा है। सम्यक्त्व प्रकृतिके जघन्य अनुभागका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर वर्षपृथक्त्व उसी प्रकृतिके अनुत्कृष्ट अनुभागके अन्तरकी तरह जानना।
४१८, सन्निकर्ष दो प्रकारका है-जघन्य और उत्कृष्ट । उत्कृष्टका अवसर है । निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश। ओघसे जो जीव मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट अनुभागविभक्तिवाला है वह कदाचित् सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी विभक्तिवाला होता है कदाचित् अविभक्तिवाला होता है । यदि विभक्तिवाला होता है तो नियमसे उत्कृष्ट विभक्तिवाला होता है। तथा वह सोलह कषाय और नव नोकषायोंकी अनुभागविभक्तिवाला नियमसे होता है किन्तु वह उत्कृष्ट भी होती है और अनुत्कृष्ट भी। यदि अनुत्कृष्ट होती है तो नियमसे षस्थानपतित होती है। इसी प्रकार सोलह कषाय और नव नोकषायों की अपेक्षा जानना चाहिए। जो जीव सम्यक्त्वके उत्कृष्ट अनुभागकी विभक्तिवाला है वह नियमसे सम्यग्मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट विभक्तिवाला होता है। तथा वह मिथ्यात्व बारह कषाय और नव नोकषायोंकी अनुभागविभक्तिवाला नियमसे होता है जो उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट अनुभागविभक्तिवाला होता है। यदि अनुत्कृष्ट अनुभागविभक्तिवाला ।
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