Book Title: Kasaypahudam Part 05
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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जयधवलासहिदे कषायपाहुडे [अणुभागविहत्ती ४ होदु णाम संकमेण बंधावलियादिक्कतहिदीणं सरिसत्तं गाणुभागस्स सगबज्झमाणाणुभागसरूवेण संकामिज्जमाणपदेसाणुभागाणं परिणामुवलंभादो। बंधाणुसारी अणुभागसंतकम्मो त्ति कुदो णव्वदे ? जहा उक्कस्सबंधो तहा उक्कस्साणुभागअप्पाबहुअं णेदव्वमिदि चुण्णिमुत्तादो। बंधप्पाबहुआदो एदस्स अप्पाबहुअस्स विसेसपरूवणढमुत्तरमुत्तं भणदि।
एवरि सव्वपच्छा सम्मामिच्छत्तमणंतगुणहीण। $ ४३०. सव्वपच्छा बंधुक्कस्साणुभागसव्वप्पाबहुएहिंतो पच्छा हस्मुक्कस्साणुभागादो सम्मामिच्छत्तुक्कस्साणुभागो अणंतगुणहीणो त्ति वत्तव्वं । कुदो ? सम्मामिच्छत्तुकस्साणुभागसंतकम्मं दारुसमाणफद्दयाणमणंतिमभागे अवहिदं हस्सुक्कस्साणुभागबंधो पुण सेलसमाणफद्दएसु अवहिदो तेण हस्सुक्कस्साणुभागादो सम्मामिच्छत्तुक्कस्साणुभागो अणंतगुणहीणो। बंधे सम्मामिच्छत्तप्पाबहुअं किण्ण कयं ? ण, संतपयडीए बंधम्मि अहियाराभावादो। संक्रमणसे समान हो जाती हैं वैसे ही बन्धावलीसे बाह्य अनुभाग भी परस्परके संक्रमणसे समान हो जाता है। यदि कहा जाय कि संक्रमणसे बन्धावलीसे बाह्य स्थितियाँ भले ही समान हो जाओ, किन्तु अनुभाग समान कैसे हो सकता है; सो यह कहना भी ठीक नहीं है। क्योंकि संक्रमको प्राप्त होनेवाले प्रदेशो का अनुभाग, बँधनेवाले अपने कर्मों के अनुभागरूपसे परिणमन करता हुआ उपलब्ध होता है । तात्पर्य यह है कि विवक्षित कर्मका बन्ध होते समय बन्धावलि बाह्य विवक्षित कर्मका द्रव्य संक्रमण करता है, इसलिए उसमें अनुभागसंक्रमण भी हो जाता है, इसमें कोई बाधा नहीं है।
शंका-अनुभागसत्कर्म अनुभागबन्धके अनुसार ही होता है यह किसप्रमाणसे जाना ?
समाधान-जैसे उत्कृष्ट अनुभागबन्धका अल्प बहुत्व है वैसे ही उत्कृष्ट अनुभागसत्कर्मका अल्पबहुत्व जानना चाहिए इस चूर्णि सूत्रसे जाना।
उत्कृष्ट अनुभागबन्धके अल्पबहुत्वसे इस अल्पबहुत्वका अन्तर वतलानेके लिये आगेका सूत्र कहते हैं -
* किन्तु सबसे अन्तिम अनुभागसे सम्यग्मिथ्यात्वका उत्कृष्ट अनुभाग अनन्तगुणा हीन है।
४३०. सवपश्चात् अर्थात उत्कृष्ट अनुभागबन्धके सब अल्पबहुत्वोंमें अन्तिम हास्यके उत्कृष्ट अनुभागसे सम्यमिथ्यात्वका उत्कृष्ट अनुभाग अनन्तगुणा हीन है ऐसा कहना चाहिये, क्योंकि सम्यग्मिथ्यात्वका उत्कृष्ट अनुभागसत्कर्म दारु समान स्पर्धकोंके अनन्तवेंभाग में अवस्थित है और हास्यका उत्कृष्ट अनुभागबन्ध शैल समान स्पर्धकोंमें अवस्थित है अत: हास्यके उत्कृष्ट अनुभागसे सम्यग्मिथ्यात्वका उत्कृष्ट अनुभाग अनन्तगुणा हीन है।
शंका-बन्ध प्रकरणमें सम्यग्मिथ्यात्वका अल्पबहुत्व क्यों नहीं कहा ?
समाधान नहीं कहा, क्योकि सत्व प्रकृतिका बन्धमें अधिकार नहीं है। अर्थात् सम्यग्मिथ्यात्व प्रकृतिका बन्ध नहीं होता किन्तु वह सत्व प्रकृति है, अतः उसका ब-धमें कथन नहीं किया।
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