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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [अणुभागविहत्ती ४ देसूणा । अज० लोग० असंखे०भागो अद्धह--अह--णवचोद्दसभागा देसूणा। सम्मत्तसम्मामिच्छत्ताणमेवं चेव । णवरि जहण्णं णत्थि। सोहम्मीसाणदेवेसु छब्बीसंपयडीणं जहण्णाणु० लोग० असंखे०भागो अहचोदस० देसूणा । अज० लोग० असंखे०भागो अह-णवचोदसभागा देमूणा। सम्मत्त० देवोघं । एवं सम्मामि० । सणक्कमारादि जाव अच्चुदकप्पो त्ति एवं चेव । णवरि सगपोसणं । उवरि खेत्तभंगो। एवं जाणिदूर्ण णेदव्वं जाव अणाहारि ति । विभक्तिवालो ने लोकके असंख्यातवें भाग और चौदह भागो मेंसे कुछ कम साढ़े तीन तथा कुछ कम आठ भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है । अजघन्य अनुभागविभक्तिवालो ने लोकके असंख्यातवें भाग तथा कुछ कम साढ़े तीन, कुछ कम पाठ और कुछ कम नौ भाग प्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है । सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वका स्पर्शन इसी प्रकार है। इतना विशेष है कि इनमें उनका जघन्य नहीं है। सौधर्म और ईशान स्वर्गके देवो में छब्बीस प्रकृतियो की जघन्य अनुभागविभक्तिवालो ने लोकके असंख्यातवें भाग और चौदह भागोंमें से कुछ कम आठ भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। अजघन्य अनुभागविभक्तिवालो ने लोकके असंख्यातवें भाग और चौदह भागो मेंसे कुछ कम आठ और कुछ कम नौ भाग प्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है । सम्यक्त्वका स्पर्शन सामान्य देवा की तरह है। इसी प्रकार सम्यग्मिथ्यात्वका जानना चाहिए। सानत्कुमार स्वर्गसे लेकर अच्युतकल्प पर्यन्त स्पर्शन इसी प्रकार है। इतना विशेष है कि अपना अपना स्पर्शन जानना चाहिए। अच्युत कल्पसे ऊपर क्षेत्रके समान स्पर्शन है। इस प्रकार जानकर अनाहारी पर्यन्त ले जाना चाहिये।
विशेषार्थ-आदेशसे नारकियों में अजघन्य अनुभागवालो का स्पर्शन उत्कृष्ट अनुभागवालो के स्पर्शनकी तरह घटा लेना चाहिये। सामान्य तिर्यंचो में छब्बीस प्रकृतियों के दोनों अनुभागवालो का स्पर्शन सर्वलोक अओघकी तरह जानना चाहिए। सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वके अजघन्य अनुभागवालो ने मारणान्तिक और उपपाद पदके द्वारा सर्वलोक और शेषके द्वारा लोकका असंख्यातवाँ भाग स्पष्ट किया है । पञ्चेन्द्रियतिर्यंचत्रिकमें छब्बीस प्रकृतियों के दोनो अनुभागवालोंने वर्तमानकी अपेक्षा लोकका असंख्यातवाँ भाग
और अतीतकी अपेक्षा सर्वलोक स्पर्श किया है। मनुष्यत्रिकमें मिथ्यात्व और आठ कषायों के दोनो अनुभागवालो ने तथा शेष प्रकृतियोंके अजघन्य अनुभागवालो ने स्वस्थान स्वस्थान, विहारव स्वस्थान, वेदना, कषाय और विक्रिया पदके द्वारा लोकका असंख्यातवाँ भाग और मारणान्तिक तथा उपपाद पदके द्वारा सर्वलोक स्पर्श किया है। देवों में छब्बीस प्रतिया के अजघन्य अनुभागवालों का स्पर्शन वर्तमानकी अपेक्षा लोकका असंख्यातवाँ भाग है और अतीत कालकी अपेक्षा विहारवत्स्वस्थान, वेदना, कषाय और विक्रियाकी अपेक्षा कुछ कम आठ बटे चौदह राजु और मारणान्तिक समुद्घातकी अपेक्षा नौ बटे चौदह राजु है। ज्योतिष्क देवो में छब्बीस प्रकृतियो के जघन्य अनुभागवालो और अजघन्य अनुभागवालो का स्पर्शन वर्तमानकी अपेक्षा लोकका असंख्यातवाँ भाग है और अतीतकाल की अपेक्षा विहारव स्वस्थान, वेदना, कषाय और विक्रिया पदके द्वारा चौदह राजुमेंसे कुछ कम साढ़े तीन अथवा कुछ कम आठ राजू है तथा अजघन्य अनुभागवालो का स्पर्शन मारणान्तिक पद के द्वारा कुछ कम नौ बटे चौदह राजु है। इसी प्रकार सौधर्मादिकमें भी लगा लेना चाहिये।
१. ता. प्रतौ एवं [ खेत्तभंगो ] जाणिदूण इति पाठः ।
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