Book Title: Kasaypahudam Part 05
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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होति ।
जयधवला सहिदे कसायपाहुडे
[ अणुभागवित्ती ४
मिच्छुरा अडकसायाणं जहण्णाणुभागसंतकम्मिया केवचिरं कालादो
९ ३७८. सुगमं ।
* सव्वद्धा ।
९ ३७६. कुदो १ एदेसिं वृत्तकम्माणं जहण्णाणुभागस्स तिसु वि कालेसु विरहाभावादो ।
* सम्मत्त अताणु बंधिचत्तारि चदुसंजलण-तिवेदाणं जहणणाणुभागकम्मंसिया केवचिरं कालादो होंति ।
९३८०. सुगमं ।
* जहणणेण एगसमचो ।
९ ३ ८१. कुदो १ सम्मत - चदुसंजलण-तिवेदाणं णिल्लेविज्जमाणचरिमसमए उप्पण्णजहण्णाणुभागस्स एगसमयावद्वाणं पडि विरोहाभावादो । संजुत्तपढमसमए समुपण्णअणताणुबंधिचक्क० जहण्णाणुभागस्स वि एगसमयावद्वाणं पडि विरोहाभावादो ।
विशेषार्थ - आदेश से नारकियो में सम्यक्त्व प्रकृति के अनुत्कृष्ट अनुभागवालों का काल जघन्यसे एक समय है, क्योकि जो कृतकृत्यवेदक मरण करके नरकमें जन्म लेते हैं उनके सम्यक्त्वका अनुत्कृष्ट अनुभाग होता है। एक साथ कई एक कृतकृत्यवेदक मरकर नरक में उत्पन्न हुए, दूसरे समय में सम्यक्त्व प्रकृति नष्ट करके वे क्षायिकसम्यक्त्वी हो गये, अतः एक समय जघन्य काल हुआ। और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है । सामान्य मनुष्यों में सब प्रकृतियों के उत्कृष्ट अनुभागवालो का काल जघन्यसे एक समय कहा है सो छब्बीस प्रकृतियों के उत्कृष्ट अनुभागका दूसरे समय में घात करनेकी अपेक्षा और सम्यक्त्व व सम्यग्मिथ्यात्वका उद्वेलनाकी अपेक्षा जानना चाहिए । शेष कथन स्पष्ट ही है ।
* मिध्यात्व और आठ कषायों के जघन्य अनुभागसत्कर्मवाले जीवों का कितना काल है ?
९ ३७८. यह सूत्र सुगम है ।
* सर्वदा है।
६ ३७९. क्योंकि इन उक्त कर्मों के जघन्य अनुभागका तीनों ही कालों में विरह नहीं
होता है ।
* सम्यक्त्व, अनन्तानुबन्धीचतुष्क, चारों संज्वलन कषाय और तीनों वेदोंके जघन्य अनुभाग सत्कर्मवाले जीवोंका कितना काल है ?
९३८०. यह सूत्र सुगम है ।
* जघन्य काल एक समय है ।
$ ३८१. क्यो ंकि सम्यक्त्व, चार संज्वलन और तीन वेदों का जघन्य अनुभाग क्षपकके अन्तिम समय में होता है अतः उसके एक समय तक रहने में कोई विरोध नहीं है। तथा विसंयोजनके पश्चात् अन्य कषायों के प्रदेशों को पुनः अनन्तानुबन्धी रूप परिणाम ने के प्रथम समय में अनन्तानुबन्धी चतुष्कका जघन्य अनुभाग उत्पन्न होता है, अतः उसके भी एक समय तक
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