Book Title: Kasaypahudam Part 05
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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गा० २२]
अनुभागविहत्तीए पोसणं तियभंगो । णवरि सम्मामि० सम्मत्तभंगो ।
$ ६६२. देवेसु छब्बीसंपयडीणं उक्कस्साणुक्कस्स० लोग० असंखे०भागो अहणवचोदसभागा वा देमूणा । सम्मत्त-सम्मामि० उक्कस्साणु० लोग० असंखे०भागो अहणव चोदस० देसूणा । सम्मच. अणुक्क० लोग० असंखे०भागो। एवं सव्वदेवाणं । णवरि सग-सगपोसणं वत्तव्यं । भवण-वाण-जोदिसि० सम्मत. अणुक्क० णत्थि । एवं जाणिदूण णेदव्वं जाव अणाहारि त्ति ।
३६३. जहणणए पयदं । दुविहो णि सो-ओघेण आदेसेण य । अोघेण मिच्छत्त--अहकसाय. जहण्णाजहएण० सव्वलोगो । सम्मत-सम्मामि० जह० खेत्तं। अज० लोग० असंखे०भागो अहचोदसभागा वा देसूणा सव्वलोगो वा । संसपयडीणं
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सम्यक्त्वकी
३६२. देवोंमें छब्बीस प्रतियोंकी उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट अनुभागविभक्तिवालोंने लोकके असंख्यातवें भाग प्रमाण और चौदह भागों से कुछ कम आठ और नव भाग प्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्व की उत्कृष्ट अनुभागविभक्तिवालोंने लोकके असंख्यातवें भाग प्रमाण और चौदह भागोंमेंसे कुछ कम आठ और नौ भाग प्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। सम्यक्त्व की अनुकृष्ट अनुभागविभक्तिवालोंने लोकके असंख्यातवें भाग प्रमाण क्षेत्रका स्पशन किया है। इसी प्रकार सब देवोंमें जानना चाहिए। इतना विशेष है कि सबमें पृथक पृथन अपना अपना स्पर्शन कहना चाहिये। भवनवासी,व्यन्तर और ज्योतिषी देवोंमें सम्यक्त्वका अनुरस्कृष्ट अनुभाग नहीं है । इस प्रकार जानकर अनाहारी पर्यन्त ले जाना चाहिये।
विशेषार्थ-नारकियोंमें छब्बीस प्रकृतियोंके दोनों अनुभागवाले जीवोंने तथा सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वके उत्कृष्ट अनुभागवाले जीवोंने अतीतकालमें मारणान्तिक और उपपाद पदके द्वारा कुछ कम छह बटे चौदह राजू स्पर्शन किया है और अतीत तथा वर्तमान काल में संभव शेष पदोंके द्वारा लोकके असंख्यातवें भागका स्पर्शन किया है। सम्यग्मिथ्यात्वका अनुत्कृष्ट अनुभाग नरकमें नहीं होता। सम्यक्त्वका अनत्कृष्ट अनभाग केवल प्रथम नरकमें होता है, अत: उसका स्पर्शन लोकका असंख्यातवाँ भाग है। दूसरेसे लेकर सातवें नरक तक छब्बीस प्रकृतियोंके दोनों अनुभागवाले जीवोंका स्पर्शन लोकका असंख्यातवाँ भाग पूर्ववत् है तथा अतीतकालमें मारणान्तिक और उपपाद पदके द्वारा क्रमशः एक बटे चौदह आदि भाग है । इसी प्रकार तिर्यञ्च और उसके भेद प्रभेदोंमें यथायोग्य लोकका असंख्यातवाँ भाग और सर्वलोक स्पर्शन समझना चाहिए। देवोंमें छब्बीस प्रकृतियोंके दोनों अनुभागवालों तथा सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वके उत्कृष्ट अनुभागवालोंका स्पर्शन अतीतकालमें विहारवत्स्वस्थान, वेदना, कषाय और विक्रिया पदके द्वारा कुछ कम आठ बटे चौदह राजु और मारणान्तिक पदके द्वारा नीचे दो ऊपर सात इस तरह कुछ कम नौ बटे चौदह राजू है और अतीत तथा वर्तमान कालमें शेष संभव पदोंके द्वारा लोकका असंख्यातवाँ भाग स्पर्शन है।
३६३. जघन्यका प्रकरण है। निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश। ओघसे मिथ्यात्व और पाठ कषायोंकी जघन्य और अजघन्य अनुभागविभक्तिवालोंने सर्वलोक प्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्व की जघन्य विभक्तिवालोंका स्पर्शन क्षेत्र की तरह है अर्थात् जो उनका क्षेत्र है वही स्पर्शन है। इनके अजघन्य अनुभागवालोंने लोकके असंख्यातवें भाग, चौदह भागों में से कुछ कम आठ भाग और सर्व लोक प्रमाण क्षेत्रका
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