Book Title: Kasaypahudam Part 05
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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गा० २२ ]
भागवित्तीए पास
२२७
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वरि चदुसंज० - णवणोकसायाणं मिच्छत्त भंगो । सम्मामि० जहणणं णत्थि । सेसमग्गणासु सव्वपयडीणं जहा जहरणापु० लोग० असंखे ० भागे । एवं जाणिदूण णेदव्वं जाव अणाहारिति ।
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३३५६. पोसणं दुविहं – जहरण मुकस्सं च । उक्कस्से पयदं । दुविहो णिद्द े सोओघेण आदेसेण य | ओघेण छब्बीसं पयडीणमुकस्साणुभागविहति एहि केवडियं खेत्तं पोसिदं ? लोग० असंखे० भागो अह चोदसभागा वा देसूणा सव्वलोगो वा । अणुकस्सविहत्तिएहि के० खे० पोसिदं ? सव्वलोगो । सम्मत्त - सम्मामि० उक्क० लोग० असंखे ० भागो अहचोद० देसूणा सव्वलोगो वा । अणुक्क० लोग० असंखे ० भागो । $ ३६०. देसेण णेरइएसु छब्बीसंपयडीणं उक्क० अणुक्क० लोग० असं खे भागो चोदभागा वा सूणा । सम्मार्मि० उक्क० लोग० असंखेभागो छचांदस देसूणा | सम्मत्त • उक्क० लोग० असंखे० भागो छचोदस० देसूणा । अणुक्क० लोग० संज्वलन और नव नोकषायों का मिथ्यात्वकी तरह भंग है । यहाँ सम्यग्मिथ्यात्वका जघन्य अनुभाग नहीं है । शेष मार्गणाओं में सब प्रकृतियों की जघन्य और अजघन्य अनुभागविभक्तिवाले जीवों का लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्र है । इस प्रकार जानकर अनाहारी पर्यन्त ले जाना चाहिये । $ ३५९. स्पर्शन दो प्रकार का है— जघन्य और उत्कृष्ट । उत्कृष्टका प्रकरण है । निर्देश दो प्रकारका है - और आदेश । ओघसे छब्बीस प्रकृतिय की उत्कृष्ट अनुभागविभक्तिवाले जीवोंने कितने क्षेत्रका स्पर्शन किया है ? लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण, चौदह भागों में से कुछ कम आठ भागप्रमाण और सर्वलोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। अनुत्कृष्ट अनुभागविभक्तिवालोंने कितने क्षेत्र का स्पर्शन किया है ? सर्वलोकका स्पर्शन किया है । सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वक उत्कृष्ट अनुभागविभक्तिवालोंने लोकके असंख्यातवें भाग, चौदह भागों में से कुछ कम आठ भाग और सर्व लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है । अष्ट अनुभागविभक्तिवालोंने लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है ।
विशेषार्थ - ओघसे छब्बीस प्रकृतियोंके उत्कृष्ट अनुभागसत्कर्म के स्वामी एकेन्द्रिय से लेकर पञ्चेन्द्रिय तक होते हैं, अत: ओघसे मारणान्तिक और उपपादकी अपेक्षा सर्वलोक विहारवत्स्वस्थान, वेदना, कषाय और विक्रियाकी अपेक्षा कुछ कम आठ बटे चौदह राजु और इतरकी अपेक्षा लोकका असंख्यातवाँ भाग स्पर्शन है । अनुत्कृष्ट अनुभागवाले जीव सर्वत्र पाये जाते हैं, अतः उनका स्पर्शन सर्वलोक है । सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्व प्रकृतिके उत्कृष्ट अनुभागवालों का स्पर्शन पूर्ववत् लोकका असंख्यातवाँ भाग, आठ बटे चौदह राजु और सर्वलोक है । तथा अनुत्कृष्ट अनुभागों का स्पर्शन लोकका असंख्यातवाँ भाग है, क्योंकि उनका अनुत्कृष्ट अनुभागसत्कर्म दर्शनमोहके क्षपकके ही होता है ।
$ ३६०. आदेशसे नारकियोंमें छब्बीस प्रकृतियों की उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट अनुभागविभक्तिवालो'ने लोकके असंख्यातवें भाग और चौदह भागों में से कुछ कम छ भागप्रमारण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। सम्यग्मिथ्यात्व की उत्कृष्ट अनुभागविभक्तिवाला ने लोकके असंख्यातवें भाग और चौदह भागो में से कुछ कम छ भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया हैं । सम्यक्त्वकी उत्कृष्ट अनु नागविभक्तिवालो ने लोकके असंख्यातवें भाग और चौदह भागा मेंसे कुछ कम छ भागप्रभाग क्षेत्र का १. प्रा० प्रता देलूए । सम्मत सम्मामि इति पाठः ।
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