Book Title: Kasaypahudam Part 05
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [अणुभागविहत्ती ४ असंखे०भागो । पढमपुढवि० खेत्तं । विदियादि जाव सत्तमि ति छब्बीसंपयडीणं उक्कस्साणुकस्स० लोग० असंखे०भागो एक्क-वे-तिण्णि-चतारि-पंच-छचोदसभागा वा देमूणा। सम्मत्त-सम्मामिच्छत्त० उक्कस्साणुभागस्स मिच्छत्तभंगो।
३६१. तिरिक्खेसु छब्बीसंपयडीणमुक्कस्साणु० लोग० असंखे०भागो सव्वलोगो वा । अणुक० सव्वलोगो। सम्मत्त० उक्क० मिच्छत्तभंगो। अणुक्क० लोग० असंखे० भागो । सम्मामि० उक्क० सम्मत्तभंगो । पंचिंदियतिरिक्ख-पंचि०तिरि०पज्ज०पंचितिरि०जोणिणीसु छब्बीसंपयडीणमुक्क. अणुक० लोग. असंखे०भागो सव्वलोगो वा । सम्मत्त-सम्मामिच्छताणं तिरिक्खोघं । णवरि जोणिणीसु सम्मत्त० अणुकस्सा० णत्थि । पंचिंदियतिरिक्खअपज्ज०छब्बीसंपयडीणमुकस्साणु० लोग० असंखे०भागो । अणुक्क० लोग० असंखे०भागो सबलोगो वा । सम्मत-सम्मामि० उक्कस्साण. लोग० असंखे०भागो सव्वलोगो वा। एवं मणुसअपज्ज० । मणुसतिय०पंचिंदियतिरिक्वस्पर्शन किया है । अनुत्कृष्ट अनुभागविभक्तिवालो ने लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। पहली पृथिवीमें क्षेत्रके समान भंग है। दूसरीसे लेकर सातवीं पृथिवी तकके नारकियों में छब्बीस प्रकृतियों की उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट अनुभागविभक्ति वालो ने लोकके असंख्यातवें भागप्रम ण और चौदह भागों में से क्रमश: कुछ कम एक, दो, तीन, चार, पांच
और छह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वके उत्कृष्ट अनुभाग विभक्तिवालोंका स्पर्शन मिथ्यात्व की तरह है।
३६१. तिर्यञ्चोंमें छब्बीस प्रकृतियोंकी उत्कृष्ट अनुभागविभक्तिवालोंने लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण और सर्व लोकप्रमाण क्षेत्र का स्पर्शन किया है । अनुत्कृष्ट अनुभागविभक्तिवालोने सर्व लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है । सम्यक्त्वकी उत्कृष्ट अनुभागविभक्ति वालोंका स्पर्शन मिथ्यात्वकी तरह है । अनुकृष्ट अनुभागविभक्तिवालोंने लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। सम्यग्मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट अनुभागविभक्तिवालोंका स्पर्शन सम्यक्त्वकी तरह है। पञ्चेन्द्रियतिर्यञ्च, पञ्चेन्द्रियतिर्यञ्च पर्याप्त और पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिनियोंमें छब्बीस प्रकृतियोंकी उत्कृष्ट और अनुष्कृष्ट अनुभागविभक्तिवालोंने लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण और सर्व लोक
या है। सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वका स्पर्शन सामान्य तिर्यञ्चोंकी तरह है। इतना विशेष है कि योनिनी तिर्यञ्चोंमें सम्यक्त्यका अनुत्कृष्ट अनुभाग नहीं है। पञ्चेन्द्रियतिर्यञ्च अपर्याप्त कोंमें छब्बीस प्रकृतियोंकी उत्कृष्ट अनुभागविभक्तिवालोंने लोकके असंख्त
ख्तातष नागप्रमाण क्षेत्रका स्पशन किया है। अनुत्कृष्ट अनुभागविभक्तिवालाने लाकक असंख्यातवें भागप्रमाण और सर्व लोकप्रमाण क्षेत्र का स्पर्शन किया है। सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट अनुभागविभक्तिवालो ने लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण और सर्व लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। इसी प्रकार मनुष्य अपर्याप्तकों में जानना चाहिए। सामान्य मनुष्य,मनुष्य पयोप्त और मनुष्यनियों में पञ्चेन्द्रियतिर्यञ्च,पञ्चेन्द्रियतियञ्च पर्याप्त और पञ्चेन्द्रियतिर्यञ्च योनिनियों के समान भंग है। इतना विशेष है कि सम्याग्मथ्यात्वका स्पर्शन
१. पा. प्रतौ सव्वलोगो वा । सम्मामि० उक्क० सम्मत्तभंगो। पंचिंदिपतिरिक्ख पंचि० तिरि. पज० सम्मत्त इति पाठः।
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