Book Title: Kasaypahudam Part 05
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [अणुभागविहत्ती ४ असंखेज्जा । मणुसपज्जत्त-मणुसिणीसु अट्ठावीसं पयडीणं जहण्णाजहण्ण० संखेज्जा । एवं सव्वसिद्धिम्मि । णवरि सम्मामि० जहएणाणभागो णत्थि । एवं जाणिदूण णेदव्वं जाव अणाहारि ति।
$ ३५७. खेत्तं दुविहं-जहण्णमुक्कस्सयं चेदि । उक्कस्से पयदं । दुविहोणिदे सोओघेण आदेसेण य। ओघेण छब्बीसं पयडीणमुक्करसाणु विहत्तिया जीवा केवडि खेत्ते ? लोगरस असंखे० भागे । अणुक्क० के० खेत्ते ? सबलोगे । सम्मत्त-सम्मामि० उक्करसाणुक्कस्सविहत्ति या के ? लोग० असंखे०भागे। एवं तिरिक्खोघं। णवरि सम्मामि० अणुक्कस्साणु० गस्थि । सेससव्वादेसपदेसु सवपयडीणमुक्करसाणुक्करसाणुभागविहत्तिया जीवा केवडि खेते ? लोग० असंखे० भागे । णवरि सम्मत्त-सम्मामिच्छत्ताणं पदविसेसो जाणियव्यो । एवं जाव जणाहारि ति।
३५८. जहण्णए पयदं । दुविहो णिसो-ओघेण आदेसेण य । ओघेण मिच्छत्त-अटक० जहण्णाजहणाणु० के० खेत्ते ? सव्वलोए। सम्मत्त-सम्मामि० जहण्णाजहण्णाणु० के० खेत्ते ? लोग० असंखे०भागे। अणंताणु०चउक्क०-चदुसंज०-णवणोक० जहरणाण० के० खे०? लोगस्स असंखे०भागे। अज० सव्वलोगे। एवं तिरिक्खोघं। अनुभागविभक्तिवाले जीव असंख्यात हैं। मनुष्य पर्याप्त और मनुप्यिनियों में अट्ठाईस प्रकृतियोंकी जघन्य और अजघन्य अनुभागविभक्तिवाले जीव संख्यात हैं। इसी प्रकार सर्वार्थसिद्धिमें जानना चाहिए । इतना विशेष है कि वहाँ सम्यग्मिथ्यात्वका जघन्य अनुभाग नहीं है। इस प्रकार जानकर अनाहारी पर्यन्त ले जाना चाहिये।
३५७. क्षेत्र दो प्रकारका है-जघन्य और उत्कृष्ट । उत्कृष्टका प्रकरण है। निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश। ओघसे छब्बीस प्रवृतियों की उत्कृष्ट अनुभागभिविक्तवाले जीवोंका कितना क्षेत्र है ? लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्र है। अनुत्कृष्ट अनुभागविभक्तिवाले जीवोंका कितना क्षेत्र है सर्व लोक क्षेत्र है। सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्व की उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट अनुभागविभक्तिवाले जीवोंका कितना क्षेत्र है लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्र है। इसी प्रकार सामान्य तिर्यञ्चोंमें जानना चाहिए। इतना विशेष है कि उनमें सम्याग्मथ्यात्व की अनुत्कृष्ट अनुभागविभक्ति नहीं है। आदेश की अपेक्षा शेष सब स्थानों में सब प्रकृतियों की उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट अनुभागविभक्तिवाले जीवों का कितना क्षेत्र है ? लोकके असंख्यातभाग प्रमाण क्षेत्र है। इतना विशेष है कि सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वके पदा में कुछ विशेषता है सो जान लेना चाहिये । इस प्रकार अनाहारी पर्यन्त लेजाना चाहिये।
.६३५८. जघन्यका प्रकरण है। निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश । ओघसे मिथ्यात्व और आठ कषायों की जघन्य और अजघन्य अनुभागविभक्तिवाले जीवोंका कितना क्षेत्र है ? सर्व लोक क्षेत्र है। सम्यक्त्व और सभ्यग्मिथ्यात्व की जघन्य और अजघन्य अनुभागविभक्तिवाले जीवोंका कितना क्षेत्र है ? लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्र है । अनन्तानुबन्धी चतुष्क, चार संज्वलन और नव नोकषायोंकी जघन्य अनुभागविभक्तिवाले जीवाका कितना क्षेत्र है ? लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्र है। अजघन्य अनुभागविभक्तिवाले जीवोंका सर्व लोकप्रमाण क्षेत्र है। इसी प्रकार सामान्य तिर्यञ्चोंमें जानना चाहिए। इतना विशेष है कि चार
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