Book Title: Kasaypahudam Part 05
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [अणुभागविहत्ती ४ णुक्कस्साणुभागरस विहत्तिया इव अविहत्तिया वि सम्वकालमत्थि ति तत्थ एगो चेव भंगो किण्ण परूविदो ? अकम्मेहि ववहाराभावेण एगभंगाणुप्पत्तीए ।
® एवं तिरिण भंगा।
$ ३३६. सिया विहत्तिया चे अविहत्तिओ च । सिया विहत्तिया च अविहत्तिया च । एवमेदे मूलिल्लभंगेण सह तिण्णि भंगा।
ॐ अणुकस्सअणुभागस्स सिया सव्वे अविहत्तिया।
३४०. खवणं मोत्तण अण्णत्थ सम्मत्त--सम्मामिच्छत्ताणमणुक्करसाणुभागस्स संभवाभावादो। ण च दंसणमोहणीयक्रववया सव्वकालमस्थि, तेसिमुक्कस्सेण छम्मासं. तरुवलंभादो।
* एवं तिरिण भंगा।
३४१. सिया अविहत्तिया च विहतिओ च । सिया अविहत्तिया च विहत्तिया च । एवं पुव्विल्लभंगेण सह तिणि भंगा । देसामासियं चुण्णिचुत्तमस्सियूण है उनका यहां अधिकार नहीं है। अत: सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी सत्तासे रहित जीवोंकी अपेक्षा भङ्ग नहीं बतलाया ।
शंका-मिथ्यात्वके अनुत्कृष्ट अनुभागविभक्तिवाले जीवोंकी तरह अनुत्कृष्ट अनुभाग अविभक्तिवाले जीव भी सदा रहते हैं, अत: वहां एक ही भङ्ग क्यों नहीं कहा ?
समाधान नहीं, क्योंकि कर्मसे रहित जीवोंमें भङ्गका व्यवहार नहीं होता, अत: एक भङ्ग नहीं होता।
* इस प्रकार तीन भङ्ग होते हैं।
$ ३३९. कदाचित् अनेक जीव उत्कृष्ट अनुभागविभक्तिवाले हैं और एक जीव उत्कृष्ट अनुभाग अविभक्तिवाला है। कदाचित् अनेक जीव उत्कृष्ट अनुभागविभक्तिवाले हैं और अनेक जीव उत्कृष्ट अनुभाग अविभक्तिवाले हैं। इस प्रकार ये दोनों पहले कहे हुए मूल भङ्ग के साथ मिलकर तीन भङ्ग होते हैं।
* कदाचित् सब जीव अनुत्कृष्ट अनुभागअविभक्तिवाले हैं ।
$ ३४०. क्योंकि क्षपण अवस्थाको छोड़कर अन्यत्र सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वके अनुत्कृष्ट अनुभागका अभाव है। शायद कहा जाय कि दर्शनमोहनीयका क्षपण करनेवाले जीव सदा रहते हैं, अतः सभी जीव अनुत्कृष्ट अनुभागविभक्तिसे रहित नहीं हो सकते, किन्तु ऐसा कहना ठीक नहीं है, क्योंकि दर्शनमोहके क्षपको का उत्कृष्ठसे छमास अन्तरकाल पाया जाता है ।
* इस प्रकार तीन भंग होते हैं।
$ ३४१. कदाचित् अनेक जीव अनुत्कृष्ट अनुभागअविभक्तिवाले और एक जीव उत्कृष्ट अनुभागविभक्तिवाला है। कदाचित् अनेक जीव अनुत्कृष्ट अनुभागअविभक्तिवाले और अनेक जीव अनुत्कृष्ट अनुभागविभक्तिवाले हैं। इस प्रकार पहले कहे गए एक भङ्ग के साथ ये दो भङ्ग
१. श्रा. प्रतौ विहत्तिनो च इति पाठः ॥
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