Book Title: Kasaypahudam Part 05
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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गा० २२]
अणुभागविहत्तीए भागाभागो अज० अप्पप्पणो सव्वजी० के० ? असंखेज्जा भागा। अणंताणु०चउक्क०-चदुसंज०णवणोक० जहणाणु० अणंतिमभागो । अन० अणंता भागा।
३४६. आदेसेण णेरइएसु सत्तावीसं पयडीणं जहएणाणु० असंखे०भागो । अज. असंखेज्जा भागा। सम्मामि० णत्थि भागाभागं । एवं पढमपुढवि-पंचिंदियतिरिक्ख-पंचितिरि०पज्ज०--देव-सोहम्मादि जाव अवराइदो त्ति । विदियादि जाव सत्तमि चि एवं चेव । णवरि सम्मत्त० सम्मामिच्छत्तभंगो। एवं जोणिणी-पंचिंदियतिरिक्व० अपज्जत-मणुस्सअपज्ज०-भवण-वाण-जोदिसिए ति ।।
३५०. तिरिक्व ० मिच्छत्त-सम्मत्त-बारसक०-णवणोक० जहण्णाणु० के० ? असंखे०भागो। अज० असंखेजा भागा। अणंताणु० चउक्क० जहण्णाणु० अणंतिमभागो। अज० अणंता भागा। मणुस्स० अहावीस. जहण्णाणु० असंखे०भागो । अज० असंखेज्जा भागा। एवं मणुसपज्ज०-मणुसिणी०। णवरि संखेज कायव्वं । एवं सव्वट्ठसिद्धिदेवाणं । णवरि सम्मामिच्छत्तवज्ज । एवं जाणिदूण णेदव्वं जाव अणाहारि त्ति । जीवोंके कितने भागप्रमाण हैं ? असंख्यातवें भागप्रमाण हैं । अजघन्य अनुभागविभक्तिवाले जीव सब जीवों के कितने भागप्रमाण हैं ? असंख्यात बहुभागप्रमाण हैं। अनन्तानुबन्धीचतुष्क, चारों संज्वलन कषाय और नव नोकषायोंके जघन्य अनुभागविभक्तिवाले जीव सब जीवोंके अनन्तवें भागप्रमाण हैं और अजघन्य अनुभागविभक्तिवाले जीव अनन्त बहुभागप्रमाण हैं।
३४९. आदेशसे नारकियोंमें सत्ताईस प्रकृतियोंके जघन्य अनुभागविभक्तिवाले जीव सब जीवोंके असंख्यातवें भाग प्रमाण हैं और अजघन्य अनुभागविभक्तिवाले जीव असंख्यात बहुभाग प्रमाण हैं। सम्यग्मिथ्यात्वका भागाभाग नहीं है। इसी प्रकार पहली पृथिवी, पञ्चेन्द्रिय
यंञ्च, पञ्चेन्द्रिय तियञ्च पयाप्त, सामान्य देव और सौधर्म स्वर्गसे लेकर अपराजित विमान तकके देवोंमें जानना चाहिए। दूसरी पृथिवीसे लेकर सातवीं पृथिवी तक नारकियोंमें भी इसी प्रकार जानना चाहिए। इतना विशेष है कि सम्यक्त्वका भागाभाग सम्यग्मिथ्यात्व की तरह है। इसी प्रकार तिर्यञ्चयानिनी, पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्च अपर्याप्त. मनुष्य अपर्याप्त, भवनवासी. व्यन्तर और ज्योतिषी देवों जानना चाहिए।
३५०. सामान्य तियेच्चोंमें मिथ्यात्व, सम्यक्त्व, बारह कपाय और नव नोकषायोंकी जघन्य अनुभागविभक्तिवाले जीव कितने भागप्रमाण हैं ? असंख्यातवें भागप्रमाण हैं। अजघन्य अनुभागविभक्तिवाले जीव असंख्यात बहुभागप्रमाण हैं। अनन्तानुबन्धीचतुष्क की जघन्य अनुभागविभक्तिवाले जीव अनन्तवें भागप्रमाण हैं। अजघन्य अनुभागविभक्तिवाले जीव अनन्त वहुभाग प्रमाण हैं। मनुष्योंमें अट्ठाईस प्रकृतियों की जघन्य अनुभागविभक्तिवाले जीव असंख्यातवें भागप्रमाण हैं। अजघन्य अनुभागविभक्तिवाले जीव असंख्यात बहुभागप्रमाण हैं। इसी प्रकार मनुष्य पर्याप्त और मनुष्यनियोंमें जानना चाहिए। इतना विशेष है कि असंख्यातके स्थानमें संख्यात कर लेना चाहिये। इसी प्रकार सर्वार्थसिद्धिके देवोंमें जानना चाहिए। इतना विशेष है कि सम्यग्मिथ्यात्वको छोड़ देना चाहिए। इस प्रकार जानकर अनाहारी पर्यन्त ले जाना चाहिये।
., श्रा० प्रतौ तिरिक्ख. मणुस्स० इति पाठः।
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