Book Title: Kasaypahudam Part 05
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [ अणुभागविहत्ती ४ त्तिया सव्वजीवाणं केवडिओ भागो ? अणंतिमभागो। अणुक्क० अणता भागा। सम्मत्तसम्मामि० उकस्ताणुभागविहत्तिया-सव्वजीवाणं केवडिओ भागो ? असंखेज्जा भागा। अणुक्क० केव० ? असंखे०भागो। एवं तिरिक्रवाणं । णवरि सम्मामि० णत्थि भागाभागं ।
३४७. आदेसेण णेरइएमु छब्बीसप्पयडीणमुक्कस्साणु० सव्वजीवा के ? असंखे०भागो। अणुक्क० असंखेज्जा भागा। सम्मत्त० ओघं । सम्मामि० णत्थि भागाभागं । एवं पढमपुढवि-पंचिंदियतिरिक्व-पंचितिरि०पज्ज०-देव-सोहम्मादि जाव अवराइदो त्ति । विदियादि जाव सत्तमि ति एवं चेव । णवरि समत्त० भागाभाग णत्थि । एवं पंचिंदियतिरिक्खजोणिणी-पंचिंदियतिरि० अपज्ज ०--मणुस्सअपज०-- भवण०-वाण-जोदिसिए त्ति । मणुस्साणं णेरइयभंगो । णवरि सम्मामि० ओघं । एवं मिणुस पज्जत्त-मणुस्सिणीसु । णवरि संखेज कायव्वं । एवं सव्वहसिद्धि त्ति देवाणं। णवरि सम्मामिच्छत्तवज । एवं जाणिदण णेदव्वं जाव अणाहारि ति ।
३४८. जहएणए पयदं। दुविहो णि सो-ओघेण आदेसेण य । ओघेण मिच्छत्त-सम्मत्त-सम्मामि०-अट्ठकसाय० जहण्णाण. सव्वजी० के०१ असंखे०भागो। अनुभागविभक्तिवाले जीव अनन्त बहुभागप्रमाण हैं। सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट अनुभागविभक्तिवाले जीव सब जीवोंके कितने भागप्रमाण हैं ? असंख्यात बहुभागप्रमाण हैं। अनुत्कृष्ट अनुभागविभक्तिवाले जीव कितने भागप्रमाण हैं ? असंख्यातवें भागप्रमाण हैं। इसी प्रकार तिर्यञ्चोंमें जानना चाहिए। इतना विशेष है कि उनमें सम्यग्मिथ्यात्वके अनुभागकी अपेक्षा भागाभाग नहीं है। .... ६३४६. आदेशसे नारकियोंमें छब्बीस प्रकृतियोंकी उत्कृष्ट अनुभागविभक्तिवाले जीव सब जीवोंके कितने भागप्रमाण हैं ? असंख्यातवें भागप्रमाण हैं। अनुत्कृष्ट अनुभागविभक्तिवाले असंख्यात बहुभागप्रमाण हैं । सम्यक्त्वका भागाभाग ओघकी तरह जानना चाहिए। सम्यग्मिथ्यात्वका भागाभाग नहीं है। इसी प्रकार पहली पृथिवी, पञ्चेन्द्रियतिर्यञ्च, पञ्चेन्द्रियतिर्यञ्च पर्याप्त, सामान्य देव और सौधर्म स्वर्गसे लेकर अपराजित विमान तकके देवोंमें जानना चाहिए । दुसरी पृथिवीसे लेकर सातवीं पृथिवी तकके नारकियोंमें इसी प्रकार जानना चाहिए। इतना विशेष है कि उनमें सम्यक्त्वका भागाभाग नहीं है। इसी प्रकार पञ्चेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिनी, पञ्चेन्द्रियतिर्यञ्च अपर्याप्त, मनुष्य अपर्याप्त, भवनवासी, व्यन्तर और ज्योतिपी देवामें जानना चाहिए । सामान्य मनुष्योंमें नारकियोंकी तरह भंग है। इतना विशेष है कि सम्यग्मिथ्यात्वका भागाभाग ओघकी तरह है । इसी प्रकार मनुष्य पर्याप्त और मनुप्यिनियोंमें जानना चाहिए। इतना विशेष है कि वहाँ असंख्यातकी जगह संख्यात करना चाहिये। इसी प्रकार सवोर्थसिद्धितकके देवों में जानना चाहिए । इतना विशेष है कि सम्यग्मिथ्यात्वको छोड़ देना चाहिए । इस प्रकार जानकर अनाहारी पर्यन्त ले जाना चाहिये।
विशेषोर्थ-जहाँ सम्यक्त्व या सम्यग्मिथ्यात्वका अनुभाग ही पाया जाता है वहाँ उनकी अपेक्षा भागाभाग नहीं बतलाया है, जैसे नरकमें। . : ३४७. अब जघन्यका प्रकरण है । निर्देश दो प्रकारका है-- श्रोध और आदेश । आपसे मिथ्यात्व, सम्यक्त्व, सम्यग्मिथ्यात्व और आठ कषायोंके जघन्य अनुभागविभक्तिवाले जीव सब
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