Book Title: Kasaypahudam Part 05
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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___जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [अणुभागविहत्ती ४ जहण्णाणुभागविहत्ती अजहण्णाणुभागविहत्ती सादियअणुभागविहत्ती अणादियअणुभागविहत्ती धुवाणुभागविहत्ती अद्धवाणुभागविहत्ती एगजीवेण सामि कालो अंतरं णाणाजीवेहि भंगविचओ भागाभागाणुगमो परिमाणाणुगमो खेताणुगमो पोसणाणुगमो कालो अंतरं सरिणयासो भावो अप्पाबहुअं चेदि। भुनगार-पदणिक्खेव-वड्डिविहत्तिहाणाणि ति।
___ २२५. तत्थ सव्वविहत्ति-णोसव्वविहत्तियाणुगमेण दुविहो णिद्दे सो-ओघेण आदेसेण य । ओघेण अहावीसं पयडीणं सव्वाणि फहयाणि सव्वविहत्ती । तदाणि णोसव्वविहत्ती । एवं जाणिदृण णेदव्वं जाव अणाहारि त्ति ।
२२६. उक्स्सवित्ति-अणुक्कस्सविहत्तियाणुगमेण दुविहो णिद्दे सो-ओघेण आदेसेण य । ओघेण अठ्ठावीसं पयडीणं सव्वुक्कस्सचरिमफद्दयचरिमवग्गणाणुभागो उकस्सविहत्ती । तदूणो अणुकस्सविहत्ती। एवं जाणिदूण णेदव्वं जाव अणाहारि ति ।
$ २२७. जहण्णाजहण्णविहत्तियाणुगमेण दुविहो णिसो-ओघेण आदेसैण य। ओघेण सव्वासिं पयडीणं सव्वजहण्णहाणस्स चरिमवग्गणाणुभागो चरिमकिट्टिअणुभागो वा जहएणविहत्ती। तदुवरिमजहण्णविहती। एवं जाणिदूण णेदव्वं जाव अणाहारि ति।
२२८. सादि-अणादि-धुव--अर्द्धवाणुगमेण दुविहो णिद्द सो-ओघेण आदेसेण । अोघेण मिच्छत्त-सम्मत्त-सम्मामि०--अहक. उक्क० अणुक्क० ज० अज० कि अजघन्य अनुभागविभक्ति, सादि अनुभागविभक्ति, अनादि अनुभागविभक्ति, ध्रुव अनुभागविभक्ति, अध्रुव अनुभागविभक्ति, एक जीव की अपेक्षा स्वामित्व, काल, अन्तर, नाना जीवों की अपेक्षा भङ्गविचय, भागाभागानुगम, परिमाणानुगम, क्षेत्रान गम, स्पर्शनानु गम, काल, अन्तर, सन्निकर्ष, भाव और अल्पबदुत्व । तथा भुजगार, पदनिक्षेप, अद्धिविभक्ति और स्थान।।
..२२५. उनमेंसे सर्वविभक्ति और नासर्वविभक्तिक अनुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश। आघसे अट्ठाईस प्रकृतियोंके सब स्पर्धक सर्वविभक्ति हैं। उनसे कम स्पर्धक नोसर्वविभक्ति हैं। इस प्रकार जानकर अनाहारी पर्यन्त ले जाना चाहिये।
२२६. उत्कृष्टविभक्ति और अनुत्कृष्टविभक्ति अनुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश। आघसे अट्ठाईस प्रकृतियोंके सबसे उत्कृष्ट अन्तिम स्पर्धकोंकी अन्तिम वर्गणाओंका अनुभाग उत्कृष्टविभक्ति है। उससे कम अनुभाग अनुत्कृष्टविभक्ति है। इस प्रकार जानकर अनाहारी पर्यन्त ले जाना चाहिए।
२२७. जघन्य और अजघन्य विभक्तिअनुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका हैओघ और आदेश । ओघसे सब प्रकृतियोंके सबसे जघन्य स्थानकी अन्तिम वर्गणाका अनुभाग अथवा अन्तिम कृष्टिका अनुभाग जघन्य विभक्ति है। उससे ऊपरका अनुभाग अजघन्यविभक्ति है। इस प्रकार जानकर अनाहारी पर्यन्त ले जाना चाहिये।
२२८. सादि, अनादि, ध्रुव और अध्रुव अनुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका हैओघ और आदेश। ओघसे मिथ्यात्व, सम्यक्त्व, सम्यग्मिथ्यात्व और आठ कषायोंका उत्कृष्ट, अनुत्कृष्ट, जघन्य और अजघन्य अनुभाग क्या सादि है, क्या अनादि है, क्या ध्रुव है या
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