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गा० २२ ]
अनुभागविहत्तीए सामित्तं
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असण्णी हदसमुत्पत्तियकम्मेण आगदो जाव संतकम्मादो हेडा बंधदि ताव तस्स जहण्णयमणुभागसंतकम्मं । सम्मत्त० जह० कस्स १ चरिमसमय अक्खीणदंसणमोहणीयस्स | सम्मामिच्छत्तस्स जहण्णाणुभागो णत्थि । अनंताणु० ज० कस्स ? अण्णद० पढमसमयसंजुत्तस्स तप्पा ओग्गविसुद्धस्स । एवं पढमाए पुढवीए । विदियादि जाव सत्तमितिमिच्छत्त- बारसक० णवणोक० ज० कस्स ? अण्णद० सम्माइहिस्स अनंताणुबंधिचक्कं विसंजोइदस्स । अनंताणु० चउक्क० ज० कस्स : अण्णद० पढमसमयसंजुत्तस्स तप्पाग्गविसुद्धस्स ।
$ २७४. तिरिक्खगदीए तिरिक्खेसु मिच्छत्त- बारसक ० णवणोक० ज० कस्स १ अणद० मुहुमेदियस्स हदसमुप्पत्तियकम्मियस्स जाव ण वढावेदि ताव | सम्पत्त० ओघं । सम्म मिच्छत्तस्स णत्थि जहण्णं । अनंताणु० चउक्क० ओघं । पंचिंदियतिरिक्खपंचि०तिरि०पज्ज० मिच्छत्त बारसक० णवणोक० जह० क० ? अण्णद० मुहुमेई दियपच्छायदस्स हदसमुप्पत्तियकम्मियस्स जाव ण वडूदि ताव । सम्मत्त--अनंताणु० चक्क तिरिक्खोघं । सम्मामिच्छत्त० जहणं णत्थि । एवं जोणिणी० । णवरि सम्मत्त ०
अनुभागसत्कर्म किसके होता है ? जो श्रसंज्ञी जीव हतसमुत्पत्तिक कर्मके साथ नरकमें जन्मा है वह जब तक सत्ता में स्थित अनुभागसे कम अनुभागका बन्ध करता है तब तक उसके जघन्य अनुभाग सत्कर्म होता है । सम्यवत्वका जघन्य अनुभागसत्कर्म किसके होता है ? दर्शनमोहका चय करनेवाले जीवके अन्तिम समयमें होता है। सम्यग्मिथ्यात्वका जघन्य अनुभाग कर्म नरकमें नहीं होता। अनन्तानुबन्धीचतुष्कका जघन्य अनुभाग सत्कर्म किसके होता है ? अनन्तानुबन्धीका विसंयोजन करके पुनः उससे संयुक्त हुए तत्प्रायोग्य विशुद्ध परिणामवाले प्रथम समयवर्ती जीवके होता है । इसी प्रकार पहली पृथिवीमें जानना चाहिए। दूसरीसे लेकर सातवीं पृथिवी तकके नारकियोंमें मिध्यात्व, बारह कषाय और नव नोकषायोंका जघन्य अनुभागसत्कर्म किसके होता है ? जिसने अनन्तानुबन्धीचतुष्ककी विसंयोजना की है ऐसे अन्यतर सम्यदृष्टि के होता है । अनन्तानुबन्धी चतुष्कका जघन्य अनुभागसत्कर्म किसके होता है ? अनन्तानुबन्धीकी विसंयोजना करके पुनः उससे संयुक्त हुए तत्प्रायोग्य विशुद्ध परिणामवाले प्रथम समयवर्ती जीवके होता है।
६२७४ तिर्यञ्चगतिमें तिर्यों में मिध्यात्व, बारह कषाय और नव नोकषायोंका जघन्य अनुभागसत्कर्म किसके होता है ? जो हतसमुत्पत्तिक कर्मवाला सूक्ष्म एकेन्द्रिय जीव जब तक जघन्य अनुभाग सत्कर्मको नहीं बढ़ाता है तब तक उसके होता है । सम्यक्त्वके जघन्य अनुभाग सत्कर्मका स्वामी की तरह है । सम्यग्मिथ्यात्वका जघन्य अनुभागसत्कर्म तिर्यञ्चगतिमें नहीं होता । अनन्तानुबन्धीचतुष्कके जघन्य अनुभागसत्कर्मका स्वामी की तरह है । पन्द्रिय तिर्यञ्च और पञ्चेन्द्रिय तिर्यश्व पर्याप्तकों में मिध्यात्व, बारह कषाय और नव नोकषायोंका जघन्य अनुभागसत्कर्म किसके होता है ? जो हतसमुत्पत्तिक कर्मवाला जीव सूक्ष्म एकेन्द्रिय पर्यायसे मरकर आया है वह जब तक वर्तमान अनुभागको नहीं बढ़ाता है तब तक उसके जघन्य अनुभागसत्कर्म होता है। सम्यक्त्व और अनन्तानुबन्धीचतुष्कके जघन्य अनुभाग सत्कर्मका स्वामी सामान्य तिर्यश्व के समान है । सम्यग्मिथ्यात्वका जघन्य अनुभाग सत्कर्म यहाँ नहीं होता । पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्च योनिनी जीवोंमें इसी प्रकार जानना चाहिए। इतना विशेष है कि
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