Book Title: Kasaypahudam Part 05
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh

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Page 231
________________ २०२ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [अणुभागविहत्ती ४ तत्तो णिप्फिडिय पंचिंदिएसु उप्पज्जिय संकिलेसमावरिय बद्धकस्साणुभागस्स असंखेज्जपोग्गलपरियट्टमेत्तुक्कस्संतरकालुवलंभादो । * सम्मत्त-सम्मामिच्छत्ताणं जहापयडि अंतरं । ३०७. जहा पयडीणं पयडिविहत्तीए अंतरं परूविदं तहा एत्थ परूवेयव्वं । तं जहा—जहण्णेण एगसमो, उक्क० उवट्ठपोग्गलपरिय। एवं चुण्णिमुत्तमस्सिदूण अंतरपरूवणं करिय संपहि उच्चारणमस्सिदूण अंतरपरूवणं कस्सामो।। ___ ३०८. अंतरं दुविहं-जहण्णमुक्कस्सयं चेदि । उक्कस्सए पयदं । दुविहो जिद्द सो-ओघेण आदेसेण । ओघेण मिच्छत्त-बारसक०-णवणोक० उक्कस्साणुभागंतरं के ? ज० अंतोमु०, उक्क० अणंतकालमसंखेजा पोग्गलपरियट्टा । अणुक्क० जहण्णुक्क० अंतोमु० । एवमणंताणु०चउक्क० । गवरि अणुक्क० ज० अंतोमु०, उक्क० वेछावहिसाग० देसूणाणि । सम्मत्त-सम्मामि० उक्कस्साणु० ज० एगस०, उक्क० अद्धपोग्गलपरियट्ट देसूणं । अणुक्क० णत्थि अंतरं । परावर्तन काल तक भ्रमण करके, वहाँसे निकलकर पंचेन्द्रियोमें उत्पन्न होकर संक्लश परिणामोंको करके उसने उत्कृष्ट अनुभागका बन्ध किया। इस प्रकार उत्कृष्ट अनुभागका उत्कृष्ट अन्तर काल असंख्यात पुद्गलपरावर्तन मात्र पाया जाता है। * सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वका अन्तर प्रकृतिके समान है। ३०७. जैसे प्रकृतिविभक्ति नामक अधिकारमें प्रकृतियोंका अन्तर कहा है वैसे ही यहाँ भी कहना चाहिये। यथा-जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम अर्धपुद्गल परावर्तन प्रमाण है। इस प्रकार चूर्णिसूत्रके आश्रयसे सामान्य अन्तरका कथन करके अब उच्चारणाके आश्रयसे अन्तरका कथन करते हैं। ६३०८. अन्तर दो प्रकारका है-जधन्य और उत्कृष्ट । उत्कृष्टका प्रकरण है । निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश। ओघसे मिथ्यात्व, बारह कषाय और नव नोकषायोंके उत्कृष्ट अनुभागसत्कर्मका अन्तरकाल कितना है ? जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट अन्तरकाल अनन्तकाल अर्थात् असंख्यात पुद्गलपरावर्तनप्रमाण है। अनुत्कृष्ट अनभागका जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है । इसीप्रकार अनन्तानुबन्धीचतुष्कका अन्तरकाल कहना चाहिए। इतना विशेष है कि अनुत्कृष्ट अनुभागसत्कर्मका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तर कुछकम दो छियासठ सागरप्रमाण है। सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वके उत्कृष्ट अनुभागसत्कर्मका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल कुछकम अर्धपुद्गलपरावर्तनप्रमाण है। अनुत्कृष्ट अनुभागसत्कर्मका अन्तरकाल नहीं है। विशेषार्थ-बाईस प्रकृतियोंके उत्कृष्ट अनभागका जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर जैसे चूर्णि सूत्रमें बतलाया है वैसे ही जानना चाहिए । अनुत्कृष्ट अनुभागका जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है, क्योंकि किसी अनत्कृष्ट अनुभागवाले जीवने उत्कृष्ट अनुभागका बन्ध किया और अन्तर्मुहूर्तके पश्चात् उसका घात करके फिर अनुत्कृष्ट अनुभागवाला हो गया तो अनुत्कृष्ट अनुभागका अन्तर अन्तर्मुहूर्त होता है। अनन्तानुबन्धीके अनुत्कृष्ट अनुभागका उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम दो छियासठ सागर है, क्योंकि कोई उपशमसम्यग्दृष्टि वेदकसम्यक्त्वी होकर छियासठ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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