Book Title: Kasaypahudam Part 05
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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गा० २२]
अणुभागबंधाहियारे भंगविचओ ३३०. एदेण अणंतरं परूविदअट्टपदेण करणभूदेण णाणाजीवेहि भंगविचओ वुच्चदे। - सव्वे जीवा मिच्छत्तस्स उक्कस्सअणुभागस्स सिया सव्वे अविहत्तिया ।
___ ३३१. मिच्छत्तस्से ति णिद्दे सेण सेसकम्मपडिसेहो कदो। उक्कस्सअणुभागस्से ति णिद्दे सो अणुक्कस्साणुभागादणं पडिसेहफलो। सिया कम्हि वि काले सचे जीवा मिच्छत्तस्स उक्कस्साणुभागस्स अविहत्तिया होति, उक्कस्साणुभागसंतकम्मेण सह अवहाणकालादो तेण विणा अवहाणकालस्स बहुत्तवलंभादो । सव्वे जीवा सव्वे अविहत्तिया ति दोवारं सव्वणिद्दे सो ण कायव्वो, पउणरुत्तिदोसप्पसंगादो त्ति ? ण एस दोसो, दोण्हं सव्वसदाणं पुधभूदअत्थेसु वट्टमाणाणं पउणरुचियत्तविरोहादो'। तं जहा--पढमो सव्वसद्दो जीवाणं विसेसणं, विदिओ अविहत्तियाणं विसेसणं । ण च भिएणत्थाहारबहुत्ते वट्टमाणाणं दोएहं सव्वपदाणमेयत्थे वुत्ती, अइप्पसंगादो । ण च जीवाविहत्तियाणमेयत्तं, भिएणविसेसणविसिहाणमेयत्तविरोहादो । विसेसिज्जमाणमुभयत्थ एयमिदि पुणरुत्तदोसो किरण जायदे ? होदु णाम तहाविह
३३०. इस पहले कहे गये करणभूत अर्थपदके अनुसार नाना जीवों की अपेक्षा भंगविचयको कहते हैं।
* कदाचित् सब जीव मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट अनुभागअविभक्तिवाले हैं।
९ ३३१. मिथ्यात्वपदके निर्देशसे शेष कर्मों का प्रतिषेध कर दिया। 'उत्कृष्ट अनुभाग' पदके निर्देशसे अनुत्कृष्ट अनुभागादिकका प्रतिषेध कर दिया। सिया' अर्थात् किसी भी समय सब जीव मिथ्यात्व की उत्कृष्ट अनुभागअविभक्तिवाले होते है। क्योंकि उत्कृष्ट अनुभागसत्कर्मके साथ रहनेका जितना काल है उस कालसे उसके बिना रहनेका काल बहुत पाया जाता है।
शंका-'सव्ये जीवा, सव्वे अविहतिया' इस प्रकार दो बार 'सर्व' शब्दका निर्देश नहीं करना चाहिये, क्योंकि ऐसा करनेसे पुनरुक्तिदोषका प्रसङ्ग आता है।
समाधान-पुनरुक्ति दोष नहीं आता है, क्योंकि भिन्न भिन्न अर्थों में वर्तमान दो 'सर्व, शब्दों के पुनरुक्त होनेमें विरोध है । खुलासा इस प्रकार है-पहला 'सर्व' शब्द जीवोंका विशेषण है और दूसरा 'सर्व' शब्द अविभक्तियों का विशेषण है। इस प्रकार जब दोनों सर्व शब्द भिन्न भिन्न अर्थोके बहुत्वमें विद्यमान हैं तो उनकी एक अर्थमें वृत्ति नहीं हो सकती, अन्यथा अतिप्रसङ्ग दोष आयेगा। अर्थात् यदि भिन्न भिन्न अर्थमं वर्तमान शब्द भी एकार्थवृत्ति कहे जायेंगे तो घट पट आदि सभी शब्द एकार्थवृत्ति हो जायेंगे और उस अवस्थामें घट पट शब्दके भी एक साथ कहनेसे पुनरुक्ति दोषका प्रसङ्ग उपस्थित होगा। यदि कहा जाय कि जीव शब्द और अविभक्तिक शब्द एक हैं सो यह कहना भी ठीक नहीं है, क्योंकि जो शब्द भिन्न भिन्न विशेषणोंसे विशिष्ट हैं अर्थात् जब उन दोनोंके साथ अलग अलग विशेषण लगा हुआ है तो उनके एक होनेमें विरोध है। ..
१. पा० प्रतौ पउणरुत्तिय त्ति विरोहादो इति पाठः ।
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