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गा० २२ ]
* जहरगुक्कस्से अंतोमुहुत्त । ३२६४. कुदो १ विसेसिदस्स गहणादो !
अणुभागवत्ती कालो....
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हुमस्स हदसमुप्पत्तियकम्मेणावहाणकालस्स जहण्णुकस्स
* एवं सम्मामिच्छत्त अकसाय छष्णोकसायाणं ।
$ २६५. जहा मिच्छत्तस्स जहण्णाणुभागकालपरूवणा कदा तहा एदेसिं पि विसेसाभावादो |
कायव्वा,
* सम्मत्तप्रणताणु बंधि चदुसंजल -- तिरिणवेदाणं जहण्णाणुभागसंतकमित्र केवचिरं कालादो होदि ?
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$ २६६. सुगमं ।
* जहणुक्कस्सेण एगसमझो ।
$ २६७. सम्मतस्स चरिमसमय अक्खीणदंसणमोहणीयम्मि कोध--माण -- माया संजलणाणं तेसिं चरिमसमयपबद्धस्स चरिमसंमयसंकामियम्मि लोभसंजलणस्स चरिमसमयसकसायमि इत्थि - णवुंसयवेदाणं चरिमसमयसवेदम्मि पुरिसवेदस्स चरिमसमयणवकबंधसं कामयम्मि जेण जरा भागसंतकम्मं जादं तेणेदेसिं जहण्णुक्कस्लेण एगसमओ ति जुज्जदे । णाणताणुबंधीणं, तेसिं विदियादिसमए संतविणासाभावादो त्ति ?ण एस
* जघन्य और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है ?
९ २६४. क्योंकि सूक्ष्म एकेन्द्रिय जीवके हतसमुत्पत्तिक कर्मके साथ रहनेके जघन्य और उत्कृष्ट काल का यहाँ ग्रहण किया है।
* इसी प्रकार सम्यग्मिथ्यात्व आठ कषाय और छह नोकषायोंके जघन्य अनुभाग सत्कर्मका काल कहना चाहिये ।
$ २९५. जैसे मिध्यात्व के जघन्य अनुभाग सत्कर्मके कालका कथन किया है वैसे ही इनके भी कालका कथन करना चाहिये । उससे इनमें कोई विशेषता नहीं है ।
* सम्यक्त्व, अनन्तानुबन्धिचतुष्क, संज्वलनचतुष्क और तीनों वेदोंके जघन्य अनुभाग सत्कर्मका कितना काल है ?
$ २९६. यह सूत्र सुगम है ।
* जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है ।
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९ २६७. शंका- क्योंकि सम्यक्त्वका जघन्य अनुभागसत्कर्म दर्शनमोहका क्षय करने वाले अन्तिम समय में होता है, संज्वलन क्रोध, मान और मायाका जघन्य अनुभागसत्कर्म उनके अन्तिम समयबद्धका संक्रमण करनेवाले के अन्तिम समय में होता है, संज्वलन लोभका जघन्य अनुभागसत्कर्म सूक्ष्मसाम्पराय गुणस्थानके अन्तिम समय में होता है । स्त्रीवेद और नपुंसक - वेदका जघन्य अनुभागसत्कर्म उनका वेदन करनेवाले के अन्तिम समयम होता है और पुरुष - वेदका जघन्य अनुभागसत्कर्म पुरुषवेद के नये समयप्रबद्धका संक्रमण करनेवाले के अन्तिम समयम होता है, अतः इनका जघन्य और उत्कृट काल एक समय युक्त है । किन्तु अनन्तानुबन्धीका एक समय काल युक्त नहीं है, क्योंकि एक समय के पश्चात् द्वितीय आदि समयोंमें उनकी सत्ताका
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