Book Title: Kasaypahudam Part 05
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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गा० २२ ]
अणुभागविहत्तीए कालो २६६. आदेसेण णेरइएमु मिच्छत्त--बारसक०--णवणोक० जहण्णाणु० ज० एगस०, उक्क० अंतोमु०। अज० ज० दसवस्ससहस्साणि अंतोमुहुत्तूणाणि, उक्क० तेत्तीसं सागरोवमाणि संपुरणाणि । सम्मत्त० जहण्णाण. जहएणक० एगस० । अज० ज० एगस०, उक० तेत्तीसं सागरो० संपुषणाणि । एवमणंताणु० चउक०। सम्मामि० सम्मत्तभंगो । णवरि जहणणं णत्थि । एवं देवोघं । पढमपुढवि० एवं चेव । णवरि सगहिदी भाणिदव्वा । विदियादि जाव सत्तमि ति वावीसप्पयडीणं जहण्णाणु० ज० अंतोमु०, उक्क० सगहिदी देसूणा । अज. ज. अंतोमु०, उक्क० सगहिदी संपुगणा । सम्मत्त०सम्मामि० उक्कस्सभंगो । अणंताणु०चउक्क० जहण्णाणु० जहएणुक० ओघं । अज० ज० एगस०, सत्तमीए अंतोमुहुत्तं, उक्क० सगहिदी।
३००. तिरिक्खेसु मिच्छत्त--बारसक०--णवणोक० जहण्णाणु० ज० एगस०, उक्क० अंतोमुहुनं । अज० ज० एगसमओ, उक्क० असंखेज्जा लोगा। सम्मत्त० जहएणाणु० जहएणक० एगस० । अज० ज० एगस०, उक्क० तिरिण पलिदोवमाणि पलिदो० असंखे भागेण सादिरेयाणि । एवं सम्मामि० । णवरि जहएणं णत्थि । अणंताणु०चउक० जहणणाणु० जहएणक० एगस० । अज. ज० एगस०, उक्क० अणंत
६९९ आदेशसे नारकियोंमे मिथ्यात्व,बारह कषाय और नव नोकषायोंके जघन्य अनुभागसत्कर्मका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है । अजघन्य अनुभाग सत्कर्मका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त कम दस हजार वर्ष और उत्कृष्ट काल सम्पूर्ण तेतीस सागर प्रमाण है। सम्यक्त्वके जघन्य अनुभागसत्कर्मका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है। अजघन्य अनुभागसत्कर्मका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल सम्पूर्ण तेतीस सागर प्रमाण है। इसीप्रकार अनन्तानबन्धीचतष्कका भङ्ग है। सम्यग्मिथ्यात्वमे सम्यक्त्वक सम इतना विशेष है कि नरकमे उनका जघन्य अनुभागसत्कर्म नहीं रहता। सामान्य देवोंमें इसी प्रकार समझना चाहिए। पहली पृथिवीमें इसी प्रकार होता है। इतना विशेष है कि वहाँ जो अपनी स्थिति है वही कहनी चाहिये। दूसरीसे लेकर सातवीं पृथिवी पर्यन्त बाईस प्रकृतियोंके जघन्य अनुभागस कर्मका जघन्य काल अन्तमुहूर्त और उत्कृष्ट काल कुछ कम अपनी स्थिति प्रमाण है। अजघन्य अनुभागसत्कर्मका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट काल अपनी सम्पूर्ण स्थिति प्रमाण है। सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वमें उत्कृष्ट अनुभागसत्कर्मके समान भंग है । अनन्तानुबन्धीचतुष्कके जघन्य अनुभागसत्कर्मका जघन्य और उत्कृष्ट काल ओघ की तरह जानना चाहिए। अजघन्य अनुभागसत्कर्मका जघन्य काल एक समय और सातवीं पृथिवीमे अन्त. मुहूर्त है तथा उत्कृष्ट काल अपनी स्थितिप्रमाण है।
३००. तिर्यञ्चोंमे मिथ्यात्व, बारह कषाय और नव नोकषायोंके जघन्य अनुभागसत्कर्मका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है। अजघन्य अनुभागसत्कर्मका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल असंख्यात लोकप्रमाण है। सम्यक्त्वके जघन्य अनुभागसत्कर्मका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है। अजघन्य अनुभागसत्कर्मका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल पल्यके असंख्यातवें भागसे अधिक तीन पल्य है। इसी प्रकार सम्यग्मिथ्यात्वमे जानना चाहिए। इतना विशेष है कि तिर्यञ्चोंमे उसका जघन्य अनुभाग नहीं होता। अनन्तानुबन्धीचतुष्कके जघन्य अनुभागसत्कर्मका जघन्य और उत्कृष्ट
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