Book Title: Kasaypahudam Part 05
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [अणुभागविहत्ती ४ कालमसंखेज्जा पोग्गलपरियट्टा । पंचिंदियतिरिक्वतिय० णेरइयभंगो । णवरि मिच्छत्तबारसक-णवणोक० अज. ज. अंतोमु० । सम्मत्त-अणंताणु०चउक्क. अज० ज० एगस०, उक्क० सव्वेसिं सगहिदी । णवरि जोणिणीसु सम्मत्त० ज० णत्थि । सम्मामि० सम्मचभंगो। णवरि जहएणं णत्थि। पंचिंदियतिरिक्खअपज्ज०-मणुसअपज्ज० मिच्छत्तसोलसक०-णवणोक० जहण्णाणु० ज० एगस०, उक्क० अंतोमु० । अज० जहएणुक्क० अंतोमु० । सम्मत्त-सम्मामि० उकस्सभंगो ।
३०१. मणुसतिय० मिच्छत्त-अहकसाय० जहण्णाणु० ज० एगस०, उक्क० अंतोमु० । अज० ज० अंतोमु०, उक्क तिरिण पलिदोवमाणि सगदालपुवकोडीहि सादिरेयाणि । णवरि मणुस ] पज्जत्त-मणुसिणीसु परणारस-सत्तपुव्वकोडीहि सादिरेयाणि । सम्मत्त० अणंताणु० चउक्क० पंचिंदियतिरिक्खभंगो। सम्मामि० ज० जहएणुक० अंतोमु० । अज० ज० एगस०, उक्क० सगहिदी । चदुसंज०-तिएिणवेद० ज० जहण्णुक्क० एगस० । अज० ज० खुद्दाभवग्गहणं अंतोमुहुत्तं, उक्क० सगहिदी। छएणोक० जहण्णाणु० जहण्णुक. अंतीमु०। अज० ज० खुदाभवग्गहणं अंतोमु०,
काल एक समय है। अजघन्य अनुभागसत्कर्मका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल अनन्तकाल अर्थात् असंख्यात पुद्गल परावर्तनप्रमाण है। पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्च, पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्च पर्याप्त और पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्च योनिनी जीवोंमे नारकियोंके समान भंग है। इतना विशेष है कि मिथ्यात्व, बारह कषाय और नव नोकषायोंके अजघन्य अनुभागसत्कर्मका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त है। सम्यक्त्व और अनन्तानुबन्धी चतुष्कके अजघन्य अनुभागसत्कर्मका जघन्य काल एक समय और सबका उत्कृष्ट काल अपनी स्थितिप्रमाण है। इतना विशेष है कि पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्च योनिनियोमें सम्यक्त्वका जघन्य अनुभाग नहीं होता। सम्यग्मिथ्यात्वमें सम्यक्त्वक समान भंग है। इतना विशेष है कि उसका जघन्य अनुभागसत्कर्म नहीं होता है । पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्च अपर्याप्त और मनुष्य अपर्याप्तकोंमे मिथ्यात्व, सोलह कषाय और नव नोकषायोंके जघन्य अनुभागसत्कर्मका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल अन्तमुहूर्त है। अजघन्य अनुभागका जघन्य और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है। सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वका उत्कृष्टके समान भंग है।
___३०१. सामान्य मनुष्य, मनुष्य पर्याप्त और मनष्यिनियोंमे मिथ्यात्व और आठ कषायोंके जघन्य अनुभागसत्कर्मका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल अन्तमुहूर्त है । अजघन्य अनुभागका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट काल सेंतालीस पूर्वकोटि अधिक तीन पल्य है। इतना विशेष है कि मनुष्य पर्याप्तकोंमें पन्द्रह पूर्वकोटी अधिक तीन पल्य है और मनु. यिनियोंमें सात पूर्वकोटि अधिक तीन पल्य है। सम्यक्त्व और अनन्तानबन्धीचतुष्कका पञ्चेन्द्रिय तिर्यश्चके समान भंग है। सम्यग्मिथ्यात्वके जघन्य अनुभागसत्कर्मका जघन्य और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है। अजघन्य अनुभागसत्कर्मका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल अपनी स्थितिप्रमाण है। चार संज्वलन और तीनों वेदोंके जघन्य अनुभागसत्कर्मका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है। अजघन्य अनुभागसत्कर्मका जघन्य काल सामान्य मनुष्यमें क्षुद्रभव ग्रहणप्रमाण और मनुष्यपर्याप्त और मनुष्यिनियोंमें अन्तर्मुहूर्त प्रमाण है। तथा उत्कृष्ट काल अपनी स्थितिप्रमाण है । छ नोकषायोंके जघन्य अनुभागसत्कर्मका जघन्य और उत्कृष्ट अन्तमुहूर्त
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