Book Title: Kasaypahudam Part 05
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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गा० २२] अणुभागविहत्तीए सामित्तं
१५७ सादिओ किमणादिओ किं धुवो किमडुवो वा ? सादी अधुवो । चदुसंजल०--णवणोकसाय० उक्क० अणुक० ज० किं सादिया किमणादिया किं धुवा किमडुवा ? सादि० अर्बुवा । अज० किं सादिया किमणादिया किं धुवा किमडुवा ? अणादिया धुवा अधुवा वा । अणताणु० चउक्क० उक्क० अणुक्क० ज० किं सादिया अणादिया धुवा अधुवा ? सादि-अधुवा । अज० किं सादि० अणादि० धुवा अधुवा ? सादि० अणादि० धुवा अधुवा वा। आदेसम्मि सव्वपयडीणं सव्वपदा० सादिअधुवा । एवं जाणिदूण णेदव्वं जाव अणाहारि ति ।
* एगजीवेण सामित्त ।
$ २२६. सव्वविहत्तियादिअहियारे अभणिदूण एगजीवेण सामित्तं चेव किमिदि जइवसहाइरियो भणदि ? ण, जहएणुकस्ससामित्तेसु पविदेसु तेसि पि अवगमो होदि सि तदपरूवणादो। ण च अवगयअत्थपरूवयं सुत्तं भवदि, अइप्पसंगादो।)
मिच्छत्तस्स उक्कस्साणुभागसंतकम्मं कस्स ?
२३०. एदं पुच्छासु सव्वमग्गणाहि सव्वोगहणाहि विसेसिदजीवे उवेक्खदे । सेसं सुगमं । क्या अध्रुव है ? सादि और अध्रुव है। चार संज्वलन और नव नोकषायोंका उत्कृष्ट,अनुत्कृष्ट और जघन्य अनुभाग क्या सादि है, क्या अनादि है, क्या ध्रुव है अथवा क्या अध्रुव है ? सादि और अध्रुव है। अजघन्य अनुभाग क्या सादि है, क्या अनादि है, क्या ध्रुव है अथवा क्या अध्रुव है ? अनादि, ध्रुव और अध्रुव है। अनन्तानुबन्धो चतुष्कका उत्कृष्ट, अनुत्कृष्ट और जघन्य अनुभाग क्या सादि है, क्या अनादि है, क्या ध्रुव है अथवा क्या अध्रुव है ? सादि और अध्रुव है। अजघन्य अनुभाग क्या सादि है, क्या अनादि है क्या ध्रुव है अथवा क्या अध्रुव है ? सादि, अनादि, ध्रव और अध्रुव है। आदेशसे सब प्रकृतियोंके सब पद सादि और अध्रव हैं। इस प्रकार जानकर अनाहारी पर्यन्त ले जाना चाहिए।
* एक जीवकी अपेक्षा स्वामित्वका प्रकरण है।
६ २२९ शंका-सर्वविभक्ति आदि अधिकारोंको न कहकर आचार्य यतिवृषभ एक जीवकी अपेक्षा स्वामित्वका ही क्यों कहते हैं ?.
समाधान नहीं, क्योंकि जघन्य और उत्कृष्ट स्वामित्व का कथन कर देने पर उनका भी ज्ञान होजाता है, इसलिये शेष अधिकारोंका प्ररूपण नहीं किया है। यदि कहा जाय कि स्वामित्व के प्ररूपणसे उनका ज्ञान होजाने पर भी उनका कथन कर देते तो क्या हानि थी। किन्तु ऐसा कहना ठीक नहीं है, क्योंकि यह सूत्र ग्रन्थ है और जो जाने हुए अर्थ का कथन करता है वह सूत्र नहीं हो सकता, अन्यथा अतिप्रसंग दोष आयेगा, अर्थात् यदि जाने हुए अर्थ का कथन करनेवाला ग्रन्थ भी सूत्र कहा जा सकता है तो फिर कोई मयादा ही नहीं रहेगी।
* मिथ्यात्व का उत्कृष्ट अनुभागसत्कर्म किसके होता है ?
६२३०. यह पृच्छासूत्र सब मार्गणाओं और सब अवगाहनाओं से युक्त जीव की उपेक्षा करता है । अर्थात् सामान्य जीव की अपेक्षा करता है । शेष अर्थ सुगम है ।
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