Book Title: Kasaypahudam Part 05
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [अणुभागविहत्ती ४ पत्तो तस्स एत्थ ग्गहणं कदं। ण च मुहुमणिगोदं मोत्तूण अण्णत्थ दोण्हं पि सुहुमत्तं संभवदि, अणुवलंभादो । तम्हा सुहमणिगोदएइंदियस्से त्ति सिद्धं । तो क्खहि अपज्जतग्गहणं कायव्वं ? ण, तस्स वि मुहुमणि सादो चेव सिद्धीदो। जदि सव्वविसुदमुहुमेइ दियअपज्जत्तयस्स जहण्णाणुभागबंधो जहण्णाणुभागो ति घेप्पदि तो अपज्जत्तविसोहीदो पज्जत्तविसोही अणंतगुणा त्ति सुहुमेइंदियपज्जत्तजहण्णाणुभागबंधो किण्ण घेपदि ? ण, धादिदूण सेसअणुभागसंतकम्मस्स एत्थ ग्गहणादो। ण च एत्थ पञ्चग्गबंधस्स पहाणत्तं, जहण्णाणुभागसंतकम्मं पेक्खिदृण तस्स अणंतगुणहीणत्तादो । मुहुमेइंदियपज्जत्तयस्स अपज्जत्तविसोहीदो अणंतगुणविसोहिणा हदावसेसाणुभागो किण्ण घेप्पदि ? ण, जादिविसेसेण मुहमणिगोदअपज्जत्तयस्स थोवविसोहीए घादिदावसिहाणुभागस्स सुहुमपज्जत्तजहण्णाणुभागं पेक्खिदूण अणंतगुणहीणत्तादो। जादिविसेसेण थोवविसोहीए वि अणुभागघादेण थोवमणुभागसंतकम्मं कीरदि त्ति कदो णव्वदे ? दंसणमोहक्खवणाए मिच्छत्तस्स जहण्णाणुभागसंतकम्मममणिदूण सुहमणिगोदेसु परूवियभी सूक्ष्म है उसका ग्रहण किया है। सूक्ष्म निगोदिया को छोड़कर अन्यत्र दोनों प्रकार की सूक्ष्मता संभव नहीं है, क्योंकि वह अन्य जीवमें नहीं पाई जाती। अतः सूक्ष्मका अर्थ सूक्ष्म निगोदिया एफेन्द्रिय जीव है ऐसा सिद्ध हुआ।
शंका-तो फिर यहां अपर्याप्त पदका ग्रहण करना चाहिये ? समाधान नहीं, क्योंकि सूक्ष्म पदके निर्देशसे ही उसके ग्रहणकी सिद्धि हो जाती है।
शंका-यदि सर्वविशुद्र सूक्ष्म एकेन्द्रिय अपर्याप्त जीवके जो जघन्य अनुभागबन्ध होता है उसे जघन्य अनुभाग स्वीकार करते हो तो अपर्याप्त जीवकी विशुद्धसे पर्याप्त जीवकी विशुद्धि अनन्तगुणी होती है, अत: सूक्ष्म एकेन्द्रिय पर्याप्त जीवके जो जघन्य अनुभागबन्ध होता है उसे क्यों नहीं स्वीकार करते ?
समाधान-नहीं, क्योंकि घाते गये अनुभागमे बचे हुए शेष अनुभागसत्कर्मका यहाँ ग्रहण किया है। यहाँ पर नवीन बंधकी प्रधानता नहीं है, क्योंकि जघन्य अनुभागसत्कर्मको देखते हुए वह अनन्तगुणा हीन है। ।
शंका-सूक्ष्म एकेन्द्रिय पर्याप्त जीवके अपयाप्त जीवकी विशुद्धिसे अनन्तगुणी विशुद्धिके द्वारा घात करने से बचा हुआ जो शेष अनुभाग है उसका क्यों नहीं ग्रहण किया ?
समाधान नहीं, क्योंकि जातिविशेषके कारण सूक्ष्म निगोदिया अपर्याप्त जीवके थोड़ी विशुद्धिके हाने पर भी घात करनेसे जो अनुभाग शेष रहता है वह सूक्ष्म पर्याप्तके जघ य अनुभागको देखते हुए अनन्तगुणा हीन है, अतः यहाँ सूक्ष्म पर्याप्तके अनुभागका ग्रहण नहीं किया।
शंका-थोड़ी विशुद्धिके होते हुए भी जातिविशेषके कारण अपर्याप्त जीव अनुभाग घातके द्वारा अपना अनुभागसत्कर्म थोड़ा कर लेता है यह कैसे जाना ?
समाधान-सूत्रमें मिथ्यात्वका जघन्य अनुभागसत्कर्म दर्शनमोहकी क्षपणामें न बतलाकर जो सूक्ष्मनिगोदियाके बतलाया है उससे जाना जाता है कि अपर्याप्त निगोदिया जीव अनुभाग. घातके द्वारा थोड़ा अनुभाग कर लेता है।
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