Book Title: Kasaypahudam Part 05
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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गा० २२ ]
अणुभागविहत्तीए सामित्तं * छण्णोकसायाणं जहण्णाणुभागसंतकम्मं कस्स ?
२५६. सुगम । * खवगस्स चरिमे अणुभागखंडए वट्टमाणयस्स ।
२६०. चरिमाणुभागकंडयस्स चरिमफालीए वट्टमाणस्से ति किण्ण वुत्तं ? ण, चरिमाणुभागखंडयसव्वफालीसु अणुभागस्स विसेसाभावादो । सव्वुक्कस्सविसोहिस्से ति किरण वुत्तं ? ण, अणियटिपरिणामाणं समाणसमयवट्टमाणसव्वजीवेसु समाणत्तादो ।
* णिरयगदीए मिच्छत्तस्स जहणणाणुभागसंतकम्म कस्स ?
२६१. सुगमं । ॐ असणिणस्स हदसमुप्पत्तियकम्मेण आगदस्स।
$ २६२. जाव हेहा संतकम्मस्स बंधदि तावे हदसमुप्पत्तियकम्मं विसोहीए यहाँ पुरुषवेदके उदयसे ही श्रेणि पर चढ़नेवालेके पुरुषवेदका जघन्य अनुभागसत्कर्म बतलानेका यह कारण है कि इतर वेदके उदयसे श्रेणि पर चढ़नेवाला अपने वेदका जब अन्तिम संक्रमण करता है तब पुरुषवेदका उसके सर्वघाती विस्थानिक अनुभाग रहता है और सर्वघाती द्विस्थानिक अनुभाग जघन्य हो नहीं सकता, अतः पुरुषवेदके उदयसे श्रेणि पर चढ़नेवाला जब पुरुषवेदका अन्तिम संक्रमण करनेको उद्यत होता है तब उसके पुरुषवेदका जघन्य अनुभागसत्कर्म होता है । स्त्रीवेदके समान ही नपुंसकवेदका भी समझना चाहिये ।
* छह नोकषायोंका जघन्य अनुभागसत्कर्म किसके होता है ? ६२५९. यह सूत्र सुगम है। * अन्तिम अनुभागकाण्डकमें वर्तमान क्षपकके होता है।
२६०. शंका-'अन्तिम अनुभागकाण्डककी अन्तिम फालिमें वर्तमान क्षपकके होता है। ऐसा क्यों नहीं कहा ?
समाधान नहीं; क्योंकि अन्तिम अनुभागकाण्डककी सब फालियोंमें जो अनुभाग है उसमें कोई अन्तर नहीं है। जैसा एक फालीमें अनभाग है वैसा ही दूसरीमें है, इसलिए अन्तिम अनुभागकाण्डककी अन्तिम फालिमें वर्तमान क्षपकके होता है ऐसा नहीं कहा।
शंका-'सर्वोत्कृष्ट विशुद्धिवाले जीवके' जघन्य अनुभाग होता है ऐसा क्यों नहीं कहा ?
समाधान-नहीं, क्योंकि अनिवृत्तिकरण गुणस्थानमे होनेवाले परिणाम समान समयवर्ती सब जीवो के समान ही होते हैं, अत: सर्वोत्कृष्ट विशुद्धिवाले जीवके जघन्य अनुभाग होता है ऐसा नहीं कहा।
* नरकगतिमें मिथ्यात्वका जघन्य अनुभागसत्कर्म किसके होता है ? २६१. यह सूत्र सुगम है । * हतसमुत्पत्तिक कम के साथ जो असंज्ञी आकर नारकी हुआ है उसके होता है।
२६२. शंका-सत्तामें स्थिति कर्मोके अनुभागसे जब तक जीव कम अनुभागबंध करता है तबतक ही विशुद्ध परिणामोंसे हतसमुत्पत्तिककर्म उत्पन्न होता है। ऐसी अवस्थामें विशुद्ध होत
१. ता० प्रतौ जाव हेट्ठा संतकम्मस्स बंधदि ताव इत्येतत् सूत्रांशत्वेन निर्दिधम् ।
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