________________
जयधवलास हिदे कसायपाहुडे
[ अणुभागविहत्ती ४
$ १७८. भागाभागाणु० दुविहो णिद्द सो- ओघेण आदेसेण । ओघेण मोह० पंचवड हा णिविहत्तिया सव्वजीवाणं केवडिओ भागो ? असंखे० भागो । अनंतगुणवड्डिविहत्ति ० संखे० भागो । अबडि ० संखेज्जा भागा। एवं सव्वणेरइय--सव्वतिरिक्ख-मणुस्स मणुस अपज्ज०-देव-भवणादि जाव सहस्सारो ति । मणुस्सपज्जत्त- मणुस्सिणिसु छवट्टि - कहाणिविहत्ति० सव्वजीवाणं केव० ? संखे० भागो । अवहि० संखेज्जा भागा । दादि जाव वराइदं ति अनंतगुणहाणि० सव्वजी० के० असंखे ० भागों । अवट्टि • असंखेज्जा भागा। सव्व अनंतगुणहाणि सव्वजी० संखे० भागो । अवद्वि० संखेज्जा भागा । एवं जाणिदूण दव्वं जाव णाहारिति ।
०
एवं भागाभागागमो समत्तो ।
१२०
$ १७६. परिमाणाणु० दुविहो गिद्द सो- ओघेण आदेसेण य । ओघेण मोह ० छवडि-छहाणि-अवद्विदविहत्तिया दव्वपमाणेण केवडिया ? अनंता । एवं तिरिक्खोघं । आदेसेण रइसु सव्वपदा असंखेज्जा । एवं सव्वणेरइय- सव्वपंचिदियतिरिक्ख-मनुस्समणुस्स अपज्ज० -देव-भवणादि० जाव सहस्सारो ति । मणुसपज्ज० - मणुस्सिणीसु सव्वपदा संखेज्जा | आणदादि जाव वराइदं ति दोपदा असंखेज्जा । सव्वह दोपदा संखेज्जा ।
६ १७८. भागाभागानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है - ओघ और आदेश | घसे मोहनीय कर्म की पाँच वृद्धि और छह हानिविभक्तिवाले जीव सब जीवोंके कितने भाग हैं ? असंख्यातवें भाग हैं। अनन्तगुणवृद्धिविभक्तिवाले जीव सब जीवोंके संख्यातवें भाग हैं । अवस्थितविभक्तिवाले जीव सब जीवोंके संख्यात बहुभाग हैं । इसी प्रकार सब नारकी, सब तिर्यञ्च, सामान्य मनुष्य, मनुष्य अपर्याप्त, सामान्य देव, और भवनवासीसे लेकर सहस्रारस्वर्ग तक के देवोंमें जानना चाहिए। मनुष्य अपर्याप्त और मनुष्यिनियों में छह वृद्धि और छह हानिविभक्तिवाले जीव सब जीवों के कितने भाग हैं ? संख्यातवें भाग हैं । अवस्थितविभक्तिव ले जीव सब जीवोंके संख्यात बहुभागप्रमाण हैं । आनत स्वर्गसे लेकर अपराजित विमान तकके देवों में अनन्तगुरणाहानिविभक्तिवाले जीव सब जीवोंके कितने भाग हैं ? असंख्यातवें भाग है । अवस्थितविभक्तिवाले असंख्यात बहुभागप्रमाण हैं । सर्वार्थसिद्धि में अनन्तगुणहानिविभक्तिले जीव सब जीवोंके संख्यातवें भाग हैं । अवस्थितविभक्तिवाले संख्यात बहुभागप्रमारण हैं । इस प्रकार जानकर अनाहारी पर्यन्त ले जाना चाहिये ।
इस प्रकार भागाभागानुगम समाप्त हुआ ।
$ १७९. परिमाणानुगमसे निर्देश दो प्रकारका है-- ओघ और आदेश । श्रघसे मोहनीयकी छह वृद्धि, छह हानि और अवस्थितविभक्तिवाले जीव द्रव्य प्रमाणकी अपेक्षा कितने हैं ? अनन्त हैं । इसी प्रकार सामान्य तिर्यश्वों में जानना चाहिए। आदेशसे नारकियोंमें सब विभक्तिवाले जीव असंख्यात हैं। इसी प्रकार सब नारकी, सब पञ्चेन्द्रियतिर्यञ्च सामान्य मनुष्य, मनुष्य अपर्याप्त, सामान्य देव और भवनवासीसे लेकर सहस्रारस्वर्ग तक के देवोंमें जानाना चाहिए। मनुष्य पर्याप्त और मनुष्यनियों में सब विभक्तिवाले जीव संख्यात हैं । नत स्वर्ग से लेकर अपराजित विमान तक के देवोंमें अनन्तगुणहानि और अवस्थितविभक्तिवाले जीव असंख्यात हैं ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org