Book Title: Kasaypahudam Part 05
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [ अणुभागविहत्ती ४ अणाहारए ति।
एवं पोसणाणुगमो समतो। $ १८२. कालाणु० दुविहो णि सो-ओघेण आदेसेण य । ओघेण मोह० सव्वपदवि. केवचिरं कालादो होंति ? सव्वद्धा । एवं तिरिक्खोघं । आदेसेण रइएसु अणंतगुणवडि०--अवहि विहत्ति० केव० ? सव्वद्धा । सेसपदवि० ज० एगस०, उक०
आवलि. असंखे०भागो । एवं सव्वणेरइय-सव्वपंचिंदियतिरिक्ख-मणुस्स-देव-भवणादि जाव सहस्सारो त्ति । णवरि मणुस्सेसु अणंतगुणहाणिविहत्तियाणं ज० एगस०, उक्क० अतोमु० । मणुसपज्ज०-मणुसिणी. पंचवडि० जह० एगस०, उक्क. आवलि असंखे०जानकर उसे घटित करना चाहिये । इस प्रकार अनाहारी पर्यन्त ले जाना चाहिये।
विशेषार्थ ओघ से छहों हानि, छहों वृद्धि और अवस्थानवाले जीवोंने सर्वलोकका स्पशन किया है। इसी प्रकार तिर्यञ्चोंमें जानना चाहिए। सामान्य नारकियोंमें सब विभक्तिवाले जीवोंने संभव पदोंके द्वारा वर्तमान कालमें लोकके असंख्यातवें भागका स्पर्शन किया है और अतीत कालमें मारणान्तिक और उपपाद पदके द्वारा कुछ कम छह बटे चौदह राजु क्षेत्रका स्पशन किया है और संभव शेष पदोंके द्वारा लोकके असंख्यातवें भागका स्पर्शन किया है। पहले नरकके नारकियोंने लोकके असंख्यातवें भागका स्पर्शन किया है तथा दूसरीसे लेकर सातवीं पृथिवी तकके नारकियोंने वर्तमान कालमें लोकके असंख्यातवें भागका और अतीत कालमें मारणान्तिक और उपपाद पदके द्वारा क्रमसे कुछ कम एक बटे चौदह, कुछ कम दो बटे चौदह, कुछ कम तीन बटे चौदह, कुछ कम चार बटे चौदह, कुछ कम पाँच बटे चौदह और कुछ कम छह बटे चौदह राजु क्षेत्रका स्पर्शन किया है। संभव शेष पदोंके द्वारा लोकके असंख्यातवें भागका स्पर्शन किया है । सब पञ्चन्द्रिय तिर्यञ्च और सब मनुष्योंमें सब विभक्तिवाले जीवोंने अतीत कालमें मारणान
और उपपादके द्वारा सर्व लोकका स्पर्शन किया है और संभव शेष पदोंके द्वारा अतीत कालमें तथा वर्तमान कालमें लोकके असंख्यातवें भागका स्पर्शन किया है। देवोंमें सब विभक्तिवाले जीवोंने वर्तमानमें लोकके असंख्यातवें भागका तथा अतीत कालमें विहारवत्स्वथान, वेदना, कषाय और विक्रिया पदके द्वारा कुछ कम आठ बटे चौदह और मारणान्तिक पदके द्वारा कुछ कम नौ बटे चौदह राजु क्षेत्रका स्पर्शन किया है। इस प्रकार इस स्पर्शनको जानकर यहाँ स्पर्शन यथायोग्य घटित कर लेना चाहिए । तथा अन्य मार्गणाओंमें भी वह जान लेना चाहिए ।
इस प्रकार स्पर्शनानुगम समाप्त हुआ। ६ १८२. कालानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश। आपसे मोहनीयकी सब पद विभक्तिवाले जीवोंका कितना काल है ? सब काल है । इसी प्रकार सामान्य तिर्यञ्चोंमें जानना चाहिये। आदेशसे नारकियोंमें अनन्तगुणवृद्धि और अवस्थितविभक्तिवाले जीवोंका कितना काल है ? सर्वदा है। शेष पद विभक्तिवालोंका जघन्य काल एक समय है
और उत्कृष्ट काल आवलीके असंख्यातवें भागप्रमाण है। इसी प्रकार सब नारकी.सब पञ्चेन्द्रिय. तिर्यञ्च, मनुष्य, सामान्य देव और भवनवासीसे लेकर सहस्रार तकके देवोंमें जानना चाहिए । इतनी विशेषता है कि मनुष्योंमें अनन्तगुणहानिविभक्तिवालोंका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है। मनुष्यपर्याप्त और मनुष्यिनियोंमें पांचों वृद्धि विभक्तिवालोंका जघन्य
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