Book Title: Kasaypahudam Part 05
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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गा० २२] अणुभागविहत्तीए सण्णा
१४३ पत्तजहण्णफदयाणं जहण्णहाणत्तब्भुवगमादो।
® सम्मत्तस्स अणुभागसंतकम्मं देसघादि एगट्ठाणियं वा दुट्ठाणियं वा।
२०२. दंसणमोहणीयक्खवणाए मिच्छत्त-सम्मामिच्छत्ताणि खइय पुणो सम्मतं पि विणासिय कदकरणिज्जो होदूण तस्स कदकरणिज्जस्स चरिमसमए सम्मतस्स जहण्णमणुभागसंतकम्मं तं च देसघादि एगठाणियं उक्कस्सं पुण देसघादि विहाणियं । दारुसमाणसम्मत्तचरिमफद्दयचरिमवग्गणेगपरमाणुम्मि अविभागपलिच्छेदसंवाए लदासमाणफयाणं पि संभवादो दुहाणियत्तं ण विरुज्झदे । 'सम्मत्तस्स जहण्णाणुभागसंतकम्मं देसघादि एगहाणियं। उक्कस्साणुभागसंतकम्म देसघादि वेहाणियं' ति एवमणिदण सम्मत्तस्स अणुभागसंतकम्मं देसघादि एगहाणियं वा दुहाणियं वा ति किमिदि वुत्तं ? सम्मत्ताणुभागसंतकम्मस्स अजहण्णस्स अवत्थाविसेसपदुप्पायण। तं जहा-जं सम्मत्तस्स जहण्णाणुभागसंतकम्मं कदकरणिज्जस्स अपच्छिमउदयणिसेगहिदमणुसमयमोवट्टणाए वादिदावसिह तं देसघादि एगहाणियं । जं पुण अजहण्णं तं देसघादि एगहाणियं पि अत्थि, अहवस्सहिदिसंतकम्मे सम्मत्तम्मि सेसे तदणुभागसंतपनेको प्राप्त हुए है ऐसे जघन्य स्पर्शकोंका यहाँ जघन्य स्थान स्वीकार किया गया है। * सम्यक्त्वका अनुभागसत्कर्म देशघाती है और एक स्थानिक तथा द्विस्थानिक है।
२०२. दर्शनमोहनीयकी क्षपणाके समय मिथ्यात्व और सम्यग्मिध्यात्वका क्षय करके पुन: सम्यक्त्व प्रकृतिका भी नाश करके, कृतकृत्य हाकर, उस कृतकृत्यके अन्तिम समयमें सम्यक्त्वका जघन्य अनुभाग सत्कर्म होता है। वह जघन्य अनुभागसत्कर्म देशघाती और एकस्थानिक होता है तथा उत्कृष्ट अनुभागसत्कर्म देशघाती और द्विस्थानिक होता है। सम्यक्त्वक दारुसमान अन्तिम स्पर्धककी अन्तिम वर्गणाके एक परमाणुमें जो अविभागी प्रतिच्छेदोंकी
समें लतासमान स्पर्धक भी संभव है अतः उसके द्विस्थानिक होने में कोई विरोध नहीं है।
शंका-सम्यक्त्वका जघन्य अनुभागसत्कम देशघाती और एकस्थानिक है और उत्कृष्ट अनुभागसत्कर्म देशघाती और द्विस्थानिक है ऐसा न कहकर 'सम्यक्त्वका अनुभागसत्कर्म देशघाती और एकस्थानिक तथा विस्थानिक है' ऐसा क्यों कहा है ?
समाधान-सम्यक्त्वके अजघन्य अनुभागसत्कर्मकी अवस्था विशेष बतलानेके लिये उस प्रकार नहीं कहा है। वह अवस्था विशेष इस प्रकार है--कृतकृत्य जीवके सम्यक्त्वका जो जघन्य अनुभागसत्कर्म उदयप्राप्त अन्तिम निषेकमें स्थित है जो कि प्रतिसमय अपवर्तनाके द्वारा घात होते होते अवशिष्ट रहा है, वह देशघाती और एकस्थानिक है। किन्तु जो अजघन्य अनुभाग सत्कर्म है वह देशघाती और एकस्थानिक भी है, क्योंकि सम्यक्त्वमें आठ वर्ष प्रमाण स्थितिसत्कर्मके शेष रह जाने पर उसका अनुभागसत्कर्म लतासमान स्पधेकोंमें ही स्थित पाया जाता है, किन्तु उससे ऊपरके स्थिति सत्कर्मों में सम्यक्त्वका अनुभागसत्कम है तो देशघाती ही किन्तु द्विस्थानिक है । सारांश यह है कि सम्यक्त्वका जघन्य अनुभागसत्कर्म तो देशघाती और एक स्थानिक ही है किन्तु अजघन्य अनुभागसत्कर्म देशघाती होने पर भी एकस्थानिक भी है
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