Book Title: Kasaypahudam Part 05
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [अणुभागविहत्ती ४ * उक्कस्साणुभागसंतकम्मं सव्वधादी चदुट्ठाणियं ।
$ २१०. जहण्णुक्कस्सविसेणमकाऊण इत्थिवेदस्सेव किण्ण वुलं ? ण, एगहाणियाणुभागस्स संभवे संते दुहाण--तिहाण--चउहाणअणुभागसंतकम्माणं णियमेण संभवो अत्थि त्ति तहाविहपरूवणाए फलाभावादो । जदि एवं तो इत्थिवेद-चदुसंजलणाणं पि तहा परूवणा ण फायव्वा, एगहाणियाणुभागस्स अत्थित्तं पडि विसेसाभावादो त्ति ? ण एस दोसो, तेहि सुत्तेहि अवसेसे जाणाविदे संते पुणो तहापरूवणाए फलाभावादो । सेसं सुगमं ।।
* णवंसयवेदयस्स अणुभागसंतकम्मंजहएणयं सव्वघादी दुट्ठाणियं।
$ २११. एदमोघजहण्णं' ण होदि किंतु आदेसजहण्णं, णqसयवेदोदएण खवगसेढिमारूढस्स चरिमसमयसवेदियस्स उदयगदेगगोवुच्छम्मि जहण्णाणुभागत्तादो। एदं जहण्णाणुभागसंतकम्म पुण कत्थ गहिदं? णव॒सयवेदचरिमाणुभागकंडयम्मि । एत्थेव गहिदमिदि कुदो णव्वदे ? देसघादी एगहाणियं ति अभणिदूण सबघादी दुहाणिय
* तथा उत्कृष्ट अनुभागसत्कर्म सर्वघाती और चतुःस्थानिक होता है।
S२१०. शंका-जघन्य और उत्कृष्ट विशेषण न लगाकर स्त्रीवेदके समान निर्देश क्यों नहीं . किया ?
समाधान नहीं, क्योंकि पुरुषवेदमें एकस्थानिक अनुभागके संभव होने पर द्विस्थानिक, त्रिस्थानिक और चतुःस्थानिक अनुभागसत्कर्म नियमसे संभव है, इसलिए उसप्रकारसे कथन करने में कोई फल नहीं होनेसे वैसा निर्देश नहीं किया।
शंका-यदि ऐसा है तो स्त्रीवेद और चार संज्वलनकषायोंका भी उसप्रकारसे कथन नहीं करना चाहिए, क्योंकि एकस्थानिक अनुभाग उनमें भी संभव है, इसलिये एकस्थानिक अनुभागके अस्तित्वकी अपेक्षा उनमें और पुरुषवेदमें कोई अन्तर नहीं है। अर्थात् पुरुषवेदकी तरह स्त्रीवेद और संज्वलनकषायमें भी एकस्थानिक अनुभाग पाया जाता है और जिसमें एकस्थानिक अनुभाग संभव है उसमें द्विस्थानिक आदि अनुभाग नियमसे संभव हैं, अत: स्त्रीवेद और चार संज्वलनोंके अनुभागसत्कर्मका कथन जिसप्रकार पिछले सूत्रोंमें कर आये हैं उसप्रकार नहीं करना चाहिए था।
समाधान-यह दोष ठीक नहीं है, क्योंकि उन सूत्रोंसे अवशेष बातोंका ज्ञान करा देनेपर पुनः उस प्रकारसे कथन करनेमें कोई फल नहीं है । शेष सुगम है।
* नपुसकवेदका जघन्य अनुभागसत्कर्म सर्वघाती और विस्थानिक होता है ।
६२११. यह ओघ जघन्य नहीं है किन्तु आदेश जघन्य है, क्योंकि ओघसे नपुंसक वेदके उदयसे क्षपकश्रेणी पर चढ़े हुए अन्तिम समयवर्ती सवेदी जीवके उदयगत एक गोपुच्छामें जघन्य अनुभाग होता है।
शंका-तो फिर यह सूत्रोक्त जघन्य अनुभागसत्कर्म कहां ग्रहण किया है।
समाधान-नपुंसकवेदके अन्तिम अनुभागकाण्डकमें यह जघन्य अनुभागसत्कर्म ग्रहण किया है।
शंका-उसे यहां ही ग्रहण किया है यह किस प्रमाणसे जाना ? १. प्रा० प्रती एदमोधभंगो जहएणं इति पाठः । २. ता. प्रतौ चरिमसमवेयस्स इति पाठः ।
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